24 सप्ताह की गर्भवती अविवाहित को गर्भपात की इजाजत
२१ जुलाई २०२२सुप्रीम कोर्ट ने 24 सप्ताह की कुंवारी गर्भवती उस 25 वर्षीय महिला को गर्भपात की मंजूरी दे दी जिसकी याचिका दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि सहमति से गर्भवती होने वाली अविवाहित महिला स्पष्ट रूप से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी नियम, 2003 के तहत इस तरह की श्रेणी में नहीं आती है.
गुरुवार को याचिकाकर्ता की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली एम्स द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड के तहत यह निष्कर्ष निकाला जाए कि क्या महिला के जीवन को खतरे में डाले बिना गर्भपात किया जा सकता है.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सिर्फ इसलिए कि महिला अविवाहित है, गर्भपात से इनकार नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता को सिर्फ इस आधार पर लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए कि वह एक अविवाहित महिला है."
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हाईकोर्ट ने महिला को गर्भपात की इजाजत देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने "गैरजरूरी रूप से प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण" लिया है, क्योंकि नियम 3 (बी) महिला की वैवाहिक स्थिति में बदलाव की बात करता है. इसके बाद विधवापन या तलाक की अभिव्यक्ति होती है. यह माना गया कि वैवाहिक स्थिति में अभिव्यक्ति परिवर्तन को उद्देश्यपूर्ण व्याख्या दी जानी चाहिए.
इस महिला के गर्भपात को लेकर एम्स के निदेशक एक बोर्ड का गठन करेंगे. अगर बोर्ड यह तय करता है कि गर्भपात से महिला के जीवन को कोई खतरा नहीं है तो महिला का गर्भपात कराया जा सकता है. बोर्ड को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट भी सौंपनी होगी.
गर्भपात को लेकर क्या है कानून
सभी जरूरतमंदों को व्यापक गर्भपात देखभाल प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी यानी एमटीपी अधिनियम 1971 में संशोधन किया था. कुछ विशेष मामलों में गर्भपात की ऊपरी समय सीमा को बीस हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया है. इन श्रेणियों में बलात्कार पीड़ित, अनाचार की शिकार और अन्य कमजोर महिलाओं को रखा गया है. दंड संहिता के तहत गर्भपात कराना अपराध है, लेकिन एमटीपी के तहत ऐसे मामलों में अपवादों को अनुमति है. अन्य लोग भी इसका फायदा उठा सकते हैं यदि उनके पास 20 सप्ताह से पहले गर्भपात के लिए डॉक्टर की सहमति है.