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समाज

असहमति और जेल जाने का डर

९ मार्च २०२१

युवा पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी के बाद कई ऐक्टिविस्टों को कानूनी कार्रवाई का भय सताने लगा है. परिवार को भी अपनों की चिंता सता रही है.

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तस्वीर: twitter.com/Disha__Ravi

22 साल की पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को धरती पर बढ़ते तापमान, पर्यावरण का ख्याल रखना, नेटफ्लिक्स पर कार्यक्रम देखना और सोशल मीडिया पर समय बिताना पसंद था लेकिन उनकी जिंदगी पिछले महीने उस वक्त बदल गई जब उनके नाम की चर्चा घर-घर में होने लगी. पुलिस ने उन्हें राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया था. पुलिस का दावा है कि दिशा "टूलकिट" नाम के उस गूगल डॉक्यूमेंट के एडिटरों में से एक हैं जिसे स्वीडन की पर्यावरण ऐक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग ने एक बार ट्वीट कर फिर हटा लिया था. यह टूलकिट किसानों के आंदोलन के समर्थन में बनाई गई थी. दो हफ्ते पहले दिशा ने कोर्ट में कहा, ''अगर विश्व स्तर पर किसानों का विरोध प्रदर्शन उठाना राजद्रोह है तो जेल में रहना बेहतर है.''

10 दिन हिरासत में रहने के बाद उन्हें जमानत मिल गई थी, इसके बाद उनकी मां ने पत्रकारों से कहा था, ''न्याय प्रणाली ने हमारे विश्वास को मजबूत किया है.'' उनकी मां ने अपनी बेटी को शक्तिशाली और निडर बताया था. भारत में ऐक्टिविस्टों के खिलाफ कार्रवाई नई नहीं है, लेकिन दिशा की कहानी ने कार्यकर्ताओं के मन में डर और चिंता भर दिया है. पर्यवेक्षकों का कहना है कि दिशा के साथ जो हुआ है उससे बहुत सारे भारतीयों के मन में अचानक डर पैदा हो गया है कि अगर वे सोशल मीडिया पर कुछ साझा करते हैं तो जेल हो सकती है.

प्रमुख इतिहासकार रामचंद्र गुहा कहते हैं, "उन्होंने ऐसे व्यक्ति को निशाना बनाया जो आमतौर पर दक्षिणपंथी की ओर से निशाने पर नहीं होते, दक्षिण भारत की एक युवा लड़की, जिसके पास मुस्लिम नाम नहीं है और ना ही वह वामपंथी छात्र राजनीति से जुड़ी है. वे जो संदेश भेजना चाहते थे कि वह किसी के भी पीछे जा सकते हैं.''

दिल्ली की सीमाओं पर किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पिछले साल नवंबर से प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि नए कानून से उनकी आय कम हो जाएगी जबकि सरकार का कहना है कि भारतीय कृषि को आधुनिक बनाने के लिए कानून आवश्यक है. पुलिस का कहना है कि दिशा ने जो दस्तावेज साझा किए उससे गलत सूचना फैली और ''भारत की छवि खराब हुई.'' और 26 जनवरी के दिन हुई हिंसा के लिए किसानों को उकसाया होगा.

इस मामले ने कुछ ऐक्टिविस्टों के मन में सवाल पैदा कर दिए हैं. 25 साल के ऐक्टिविस्ट और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता मुकुंड गौडा से पिछले साल बेंगलुरू पुलिस ने पूरे दिन पूछताछ की थी. उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपने इलाके की खराब सड़क का मुद्दा उठाया था. उन्होंने पत्र को सोशल मीडिया पर साझा किया और वह थोड़ी देर में ही वायरल हो गया. गौडा कहते हैं, '' उन्होंने मुझे डराने की कोशिश की कि मुझपर राजद्रोह का मुकदमा हो सकता है.'' बाद में उन्हें छोड़ दिया गया. पुलिस का कहना था कि गौडा ने राजनीति के लिए ऐसा किया लेकिन धमकी देने से इनकार किया. इस कार्रवाई के बाद वे चिंतित हो गए और उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करना बंद कर दिया साथ ही वे कुछ महीनों से ऐक्टिविज्म से दूर हो गए.

एक और ऐक्टिविस्ट तारा कृष्णस्वामी कहती हैं शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर कभी-कभी पुलिस द्वारा पूछताछ की जाती है. भले ही लोग बेंगलुरु में छोटे पैमाने पर नागरिक विरोध प्रदर्शनों में भाग लेते हैं. उनके मुताबिक, ''धमकी कई रूपों में मिलती है. कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का डाटा पूरी तस्वीर नहीं दिखाता-यह बहुत अधिक व्यापक है.''

एए/सीके (एपी)

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