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रिपोर्ट: दिल्ली में बाल तस्करी के मामले 68 फीसदी बढ़े

आमिर अंसारी
२५ सितम्बर २०२३

एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में बाल तस्करी के मामलों में 68 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट कहती है कि महामारी के बाद कई राज्यों में बाल तस्करी के मामले बढ़े हैं.

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दिल्ली में तस्करी की संख्या में 68 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई
दिल्ली में तस्करी की संख्या में 68 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गईतस्वीर: Eckhard Stengel/imago images

गेम्स24x7 और नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा संकलित आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली बाल तस्करी के लिए हॉटस्पॉट बन गई है. रिपोर्ट के मुताबिक तस्करी से बचाए गए एक-चौथाई से अधिक बच्चे दिल्ली से आते हैं.

"भारत में बाल तस्करी" रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में तस्करी की संख्या में 68 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई वहीं उत्तर प्रदेश में तस्करी किए गए बच्चों की संख्या में लगभग छह गुना वृद्धि दर्ज की गई है.

आंकड़ों के मुताबिक 2016 से 2022 के बीच 18 साल से कम उम्र के 13,549 बच्चों को बचाया गया
आंकड़ों के मुताबिक 2016 से 2022 के बीच 18 साल से कम उम्र के 13,549 बच्चों को बचाया गयातस्वीर: Indranil Aditya/NurPhoto/picture alliance

दिल्ली में बाल तस्करी के मामले

रिपोर्ट के मुताबिक जिलों में भी शीर्ष 10 जिलों में से पांच जिले दिल्ली के थे, जहां से तस्करी के शिकार बच्चों को बचाया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश शीर्ष तीन राज्य हैं जहां से बच्चों की तस्करी की गई.

गेम्स24x7 की डाटा साइंस टीम द्वारा एकत्र किया गया डाटा 2016 और 2022 के बीच भारत के 21 राज्यों के 262 जिलों में बाल तस्करी के मामलों में केएससीएफ और उसके सहयोगियों के हस्तक्षेप पर आधारित है. मौजूदा रुझानों की स्पष्ट तस्वीर देने के लिए डाटा को एकत्रित किया गया है.

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होटल और ढाबे में बाल मजदूर

आंकड़ों के मुताबिक 2016 से 2022 के बीच 18 साल से कम उम्र के 13,549 बच्चों को बचाया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन उद्योगों में सबसे ज्यादा बाल मजदूरों को रोजगार मिलता है, वे होटल और ढाबे (15.6 फीसदी) हैं.

इसके बाद एक परिवार के स्वामित्व वाली ऑटोमोबाइल या परिवहन उद्योग (13 प्रतिशत) और कपड़ा क्षेत्र (11.18 फीसदी) हैं. बचाए गए अधिकांश बच्चे (80 प्रतिशत) 13 से 17 वर्ष की आयु के थे.

रिपोर्ट के मुताबिक 13 प्रतिशत बच्चे 9 से 12 वर्ष की आयु के थे और 2 प्रतिशत से अधिक 9 वर्ष से कम उम्र के थे.

देश में बाल तस्करी के मामलों की बढ़ती संख्या पर केएससीएफ के प्रबंध निदेशक एवीएसएम (रिटायर्ड) रियर एडमिरल राहुल कुमार श्रावत ने कहा, "भले ही संख्या गंभीर और चिंताजनक दिखती है, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत ने पिछले दशक में बाल तस्करी के मुद्दे का सख्ती से सामना किया है और इस मुद्दे को काफी ताकत और गति दी है."

पिछड़े राज्यों से बच्चों की तस्करी कर उन्हें ऐसे शहरों या राज्यों में बेच दिया जाता है, जिससे उनका इस्तेमाल छोटे-मोटे उद्योगों या घरेलू काम के लिए किया जा सके.

कई बार तस्कर बच्चों को ऐसे गैंग को भी बेच देते हैं जो भीख मांगने जैसे वाले रैकेट चलाते हैं. एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2019 में देश में मानव तस्करी (बच्चों और वयस्कों समेत) के जितने भी मामले थे, उनमें से सबसे ज्यादा मामले जबरन श्रम, देह व्यापार, घरों में जबरन काम और जबरन शादी के थे.