भारतीय कंपनियों के 2.6 करोड़ डॉलर नहीं दे रहा अमेरिका
३१ अगस्त २०२३भारत सरकार ने अमेरिका से आग्रह किया है कि भारत की दो कंपनियों के धन निकालने पर लगायी गयी रोक हटायी जाए. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि भारत ने अमेरिका से दो हीरा कंपनियों के फंड निकालने पर लगी रोक हटाने को कहा है. इन दोनों कंपनियों पर रूस की हीरा कंपनी अलरोसा के साथ व्यापार करने का आरोप लगा था. अलरोसा रूस की उन कंपनियों में शामिल है, जिन पर यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिका ने प्रतिबंधलगा रखे हैं.
दो सूत्रों के मुताबिक अमेरिका के लगाये प्रतिबंधों की निगरानी करने वाली वित्त मंत्रालय की संस्था ऑफिस ऑफ फॉरेन एसेट्स कंट्रोल (OFAC) ने इस साल की शुरुआत में दोनों भारतीय कंपनियों के फंड फ्रीज कर दिये थे. हालांकि भारत सरकार और दोनों कंपनियों ने मामले की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
प्रतिबंधों का असर
पिछले साल फरवरी में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था जिसके बाद अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंध लगाये थे. वे प्रतिबंध लगाये जाने के बाद यह पहला मामला है जबकि भारत की किसी कंपनी पर कार्रवाई की गयी है.
ओएफएसी ने भारतीय कंपनियों का फंड तब फ्रीज किया जब उनकी यूएई से काम करने वालीं ईकाइयों ने फंड को कच्चे हीरे खरीदने के लिए रूस को देना चाहा. हालांकि यह पता नहीं लग पाया है कि यह धन अलरोसा को दिया जा रहा था या किसी और को.
भारत सरकार के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया, "सरकार ओएफएसी की कार्रवाई से वाकिफ है और इस बारे में बातचीत शुरू कर दी गयी है. समस्या अलरोसा के साथ व्यापारिक संबंधों के संदेह से पैदा हुई.”
इस अधिकारी के मुताबिक इन कंपनियों ने सरकार को बताया है कि यह लेन-देन या तो रूस की उन कंपनियों के साथ हो रहा था, जो प्रतिबंधों के दायरे से बाहर हैं या फिर अप्रैल में प्रतिबंध लगाये जाने से पहले के ऑर्डर का भुगतान किया जा रहा था. इस मामले पर अलरोसा और भारत व अमेरिका के संबंधित मंत्रालयों ने भी कोई टिप्पणी नहीं की है.
अलरोसा से भारत के संबंध
अलरोसा रूस की सरकारी कंपनी है. वह कच्चे हीरों की दुनिया की सबसे बड़ी उत्पादक है. वैश्विक स्तर पर कच्चे हीरे की लगभग 30 फीसदी सप्लाई यही कंपनी करती है.
यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो दुनियाभर में 80-90 फीसदी कच्चे हीरे का आयात करता है और फिर उसकी कटिंग और पॉलिश करता है. ऐसा माना जाता है कि भारत को अपना 60 फीसदी कच्चा माल अलरोसा से प्राप्त होता है.
कच्चे हीरों को शक्ल देने में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है. पिछले वित्त वर्ष में भारत ने 22 अरब डॉलर से ज्यादा के पोलिश किये हीरे निर्यात किये थे. हीरों का यह उद्योग मुख्यतया गुजरात में आधारित है, जहां की कंपनियां यूएई, बेल्जियम और रूस से कच्चे हीरे खरीदती हैं.
लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से स्थानीय हीरा उद्योग खास प्रभावित हुआ है. गुजराती कंपनियों को ज्यादातर हीरे रूस से प्राप्त होते हैं और प्रतिबंधों के चलते इनकी उपलब्धता घटी है, जिस कारण हीरा कारखानों के सामने संकट खड़ा हो गया है.
हाल के महीनों में हीरे के बाजारों में शांति छाई हुई है. उद्योग जगत के अनुमानों के अनुसार सूरत में हीरे चमकाने वाली यानी पॉलिश करने वाली करीब छह हजार ईकाइयां हैं, जो पांच लाख से अधिक कारीगरों को रोजगार देती हैं.
साथ ही, ये ईकाइयां सालाना करीब 21-24 अरब अमेरिकी डॉलर तक का कारोबार भी करती हैं. लेकिन, सूरत डायमंड वर्कर्स यूनियन का एक मोटा अनुमान कहता है कि करीब दस हजार हीरा श्रमिकों को यूक्रेन युद्ध के चलते अपनी नौकरी गंवानी पड़ी है.
मुश्किल में व्यापारी और कारीगर
सूरत के एक अनुभवी हीरा व्यापारी चंदर भाई सूता ने DW को पिछले साल एक इंटरव्यू मेंबताया, "पर्याप्त हीरे नहीं हैं, इसलिए पर्याप्त काम भी नहीं है." वहीं हीरा व्यापारी परेश शाह कहते हैं, "हीरों की सही कीमत भी नहीं मिल रही है."
वह कहते हैं, "कोई नहीं जानता कि यह स्थिति कब और कैसे सुधरेगी. हालांकि, उत्पादन लागत में वृद्धि हुई है. कई ईकाइयां घाटे का सामना करने के बावजूद किसी तरह खुद को बनाए रखने में सफल रही हैं."
अमेरिका भारत में संसाधित यानी पॉलिश किये गये हीरों का सबसे बड़ा बाजार है, लेकिन कई बड़ी अमेरिकी कंपनियां अब रूसी मूल के सामान को खरीदने से इनकार कर रही हैं.
हीरे की आपूर्ति करने वालों का कहना है कि प्रतिबंधों ने रूस के केंद्रीय बैंक और दो प्रमुख बैंकों को वैश्विक स्विफ्ट भुगतान प्रणाली से हटा दिया है. पिछले साल नवंबर में भारत ने रूस के साथ रुपये में व्यापार की सुविधा के लिए नौ बैंकों को "वोस्ट्रो" खाते खोलने की मंजूरी दी थी.
वोस्ट्रो खाते वे होते हैं, जो एक बैंक द्वारा दूसरे बैंक की ओर से खोले गए होते हैं. रुपये में व्यापार करने के पीछे विचार यह था कि इससे रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों के असर को दूर किया जा सके.
हालांकि, इस कदम से समस्या हल नहीं हुई. भारत रुपये में व्यापार को बढ़ावा देना चाहता है, लेकिन अब भी उसे अपनी घरेलू मुद्रा में किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय व्यापार सौदे का इंतजार है.
विवेक कुमार (रॉयटर्स)