ज्ञानवापी मामले में बाबरी की आहट
१३ सितम्बर २०२२ज्ञानवापी मामले में सोमवार 12 सितंबर को बनारस की एक निचली अदालत का जो फैसला आया वो सिर्फ इस सवाल पर था कि हिंदू पक्ष द्वारा दायर की गई अपील सुनवाई के लायक है या नहीं. हिंदू पक्ष की अपील है कि उसे मस्जिद के परिसर में श्रृंगार गौरी की पूजा करने की अनुमति दी जाए.
अदालत का इस अपील को सुनवाई के लायक बताना इस पर सुनवाई करने के लिए हामी भरने तक ही सीमित है. अपील मानी या जाएगी या नहीं इस पर अभी फैसला नहीं आया है. इस सवाल पर अब सुनवाई और जिरह होगी और उसके बाद फैसला आएगा.
हिंदू पक्ष की अन्य मांगें
लेकिन सोमवार के फैसले के बाद मामले पर राजनीति गर्मा गई है. हिंदू पक्ष ने इसके बाद मस्जिद परिसर में और भी बड़े स्तर पर पूजा करने के लिए अदालत से अनुमति मांगने की बात कही है तो मुस्लिम नेता इस मामले में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के हश्र की आहट देख रहे हैं.
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फैसले के बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने पत्रकारों को बताया कि इसके बाद वो मस्जिद के वजुखाने में मिले कथित शिवलिंग की आराधना करने की भी अदालत से अनुमति मांगेंगे.
टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार में छपे जैन के बयान के मुताबिक, "वजुखाने में मिला शिवलिंग अदालत द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से पहले अदृश्य था. लेकिन अब जब वह दिखाई दे रहा है तो हम उसकी आराधना करने के अधिकार की भी मांग करेंगे."
जैन ने यह भी कहा कि यह 'शिवलिंग' उन देवी-देवताओं में से है जिनका जिक्र हिंदू पक्ष ने अपनी अपील में अदृश्य देवी-देवताओं के रूप में किया था. अप्रैल 2022 में सिविल न्यायाधीश ने मस्जिद के अंदर एक वीडियो सर्वेक्षण की अनुमति दी थी और उसी में वजुखाने के पानी के नीचे एक फव्वारा-नुमा चीज दिखाई दी थी जिसे हिंदू पक्ष तब से शिवलिंग बताता आया है.
बाबरी की राह पर?
इतना ही नहीं, अखबार के मुताबिक जैन ने यह भी कहा है कि वो इस 'शिवलिंग' के अर्घ को खोजने के लिए मस्जिद की दीवार गिराने की भी अदालत से अनुमति मांगेंगे. इसके अलावा 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग की भी अनुमति मांगी जाएगी जिससे उसकी उम्र का पता लगाया जा सके.
मामले में अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी. विश्व हिंदू परिषद् ने अदालत के फैसले को "संतोषजनक" बताते हुए कहा है कि इससे "ज्ञानवापी मंदिर मुक्ति की पहली बाधा पार" हो गई है.
हालांकि मुस्लिम पक्ष ने कहा है कि वो निचली अदालत के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में रिव्यू याचिका दायर करेगा. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले को निराशाजनक बताया.
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बोर्ड के महासचिव खालिद सैफुल्ला रहमानी ने एक बयान जारी कर फैसले को "निराशाजनक और दुखदायी" बताया और कहा है कि इससे "देश की एकता प्रभावित" होगी.
सांसद और एआइएमआइएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस फैसले पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसा लग रहा है कि यह मामला भी उसी दिशा में बढ़ रहा है जिसमें बाबरी मामला बढ़ा था. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मुस्लिम पक्ष फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जरूर जाएगा.