इस्राएल और हमास के संघर्ष में पिसते थाईलैंड के लोग
१ नवम्बर २०२३इस्राएल में काम करने वाले थाईलैंड के कॉन्ग साएलाओ को अपनी नौकरी पर बड़ा नाज था. 26 साल के कॉन्ग हर सुबह अपनी इलेक्ट्रिक साइकिल से खेतों में जाते थे और सूरज डूबने तक एवोकाडो तोड़ते थे.
कॉन्ग करीब सात हजार किमी दूर थाईलैंड में रह रहीं अपनी पत्नी को पैसे भेजते थे. साथ ही, वह हरे-भरे पेड़ों के बागों में खींची अपनी सेल्फियां भी भेजा करते थे. कॉन्ग की पत्नी सुनट्री ने डीडब्ल्यू को बताया कि उन्होंने घर बनाने और बच्चा पैदा करने की योजना बना रखी थी.
7 अक्टूबर को इस जोड़े के सारे सपने चकनाचूर हो गए. हमास के लड़ाकों ने किरबेत मदो के बागों पर हमला कर दिया और कॉन्ग को अगवा कर लिया. उन्हें पास में ही गाजा पट्टी ले जाया गया और तब से उनकी कोई खबर नहीं है.
इस्राएल-फलीस्तीनियों के संघर्ष में पिसते थाई लोग
इस्राएल ने कहा है कि हमास ने जिन करीब 220 लोगों को बंधक बनाया है, उनमें से 54 थाईलैंड के लोग हैं. यूरोपीय संघ और अमेरिका समेत कई देश हमास को आतंकी संगठन करार देते हैं. थाईलैंड की सरकार ने कहा है कि इस संघर्ष में 32 थाई लोग मारे गए हैं, जो विदेशी पीड़ितों की सबसे बड़ी संख्या है.
थाईलैंड के जो लोग इस्राएल में काम करने जाते हैं, उन्हें राजनीतिक रूप से तटस्थ माना जाता है. एक समूह के रूप में वे ज्यादा सरोकार नहीं रखते और खुद में सीमित रहते हैं. कॉन्ग की पत्नी बताती हैं कि उनके पति ज्यादातर थाईलैंड के ही अपने साथी कर्मचारियों के साथ रहते थे.
सुनट्री रोते हुए कहती हैं, "उनके साथ ही ऐसा क्यों हुआ? वह तो बस निर्दोष कर्मचारी थे, जो अपना पेट पालना चाहते थे."
थाईलैंड में भी बहुत सारे लोग हैरानी जता रहे हैं कि 7 अक्टूबर को हुए आतंकी हमले में इतने सारे थाई लोग निशाने पर कैसे आ गए.
इस्राएल काम करने कैसे पहुंचे थाईलैंड के लोग
अभी यह साफ नहीं है कि क्या हमास के आतंकी हमले में थाईलैंड के लोगों को जानबूझकर निशाना बनाया गया. हां, यह जरूर साफ है कि थाईलैंड से इतने सारे लोगों का इस्राएल जाकर काम करना इस्राएल-फलीस्तीनियों के इतिहास से जुड़ा है.
1980 के दशक के उत्तरार्ध तक इस्राएल के खेतों में कम वेतन पर मजदूरी करने वाले ज्यादातर लोग फलीस्तीनी थे. फिर 1987 में जब फलीस्तीनियों ने पहली बार इस्राएल के खिलाफ बड़ा विद्रोह किया, तो हालात तेजी से बदल गए. इस विद्रोह को इंतिफादा कहा जाता है. इसके बाद इस्राएल ने वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी के बीच आवाजाही पर पाबंदियां लगा दीं. इससे फलीस्तीनी मजदूरों की तादाद में तेजी से कमी आई.
इस्राएल के तेल अवीव शहर में स्थित एनजीओ काव लाओव्ड मजदूरों के अधिकारों के लिए काम करता है. एनजीओ की सदस्य आसिया लादिजिंसकाया कहती हैं, "इस्राएल को राजनीतिक माहौल के साथ प्रशासनिक और सैन्य सुरक्षा संबंधी फैसलों पर से अपने उद्योगों की निर्भरता घटाने के लिए विदेशों से कर्मचारियों की भर्ती करनी पड़ी."
90 के दशक में थाईलैंड के प्रवासी कर्मचारी इस्राएल के कृषि क्षेत्र का मुख्य आधार बन गए. हालिया सर्वे बताते हैं कि इस्राएल के खेतों में करीब 10 हजार फलीस्तीनी मजदूर काम करते हैं, जबकि मौजूदा संघर्ष शुरू होने से पहले करीब 30 हजार थाई लोग इस्राएल के खेतों और बागों में काम कर रहे थे.
सुरक्षा में विफलता से नाराज लोग
अभी इस्राएल वीजा बढ़ाने और आर्थिक मदद की पेशकश करके थाई प्रवासी कर्मचारियों को अपने देश लौटने से रोकने की कोशिश कर रहा है. वहीं थाईलैंड अपने ज्यादा से ज्यादा नागरिकों को घर वापस लाने की हरसंभव कोशिश कर रहा है. हाल ही में थाईलैंड के प्रधानमंत्री सेरेथा थावीसीन ने इस्राएल में रह रहे थाईलैंड के लोगों से लौट आने की अपील की थी. उन्होंने कहा था, "अभी हर रोज करीब 1,000 थाईलैंडवासियों को निकाला जा सकता है. मैं चाहूंगा कि वे सभी लौट आएं."
ऐसे ही एक कर्मचारी काटचाकोन पुडटासोन अपने देश लौटकर बहुत खुश हैं. वह एक पिकअप ट्रक के पीछे बैठकर हमास के हमलावरों से भागने में कामयाब हो गए थे. 40 साल पुडटासोन बताते हैं, "उन्होंने हमारा पीछा किया और वे अंधाधुंध गोलियां दाग रहे थे." पुडटासोन जब भाग रहे थे, तो एक गोली उनके घुटने में लगी. उनके बगल में जो शख्स बैठा हुआ था, उसके चेहरे पर गोली लगी. गड्ढों और धूल से भरी सड़क पर हमलावर देर तक इनका पीछा करते रहे, लेकिन आखिरकार ये लोग बचने में सफल रहे.
पुडटासोन के साथी का इस्राएल के अस्पताल में इलाज चल रहा है, जबकि वह खुद वीलचेयर पर अपने देश लौटे हैं. गोली लगने से जख्मी उनका घुटना तो कुछ दिनों में ठीक हो जाएगा, लेकिन यकीनन अब वह इस्राएल वापस नहीं जाना चाहते हैं. पुडटासोन ने बताया कि इस्राएल में शहर से दूर जिस खेत में वह काम करते थे, वहां हमास के हमला करने से पहले सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे. वह बताते हैं, "हमारे बम शेल्टर असल में कंक्रीट के साधारण से पाइप थे." जब कभी रॉकेट और गोलीबारी की आवाजें सुनाई देतीं, तो वह मन ही मन कहते, "अगर हम पर कभी कोई बम गिरा, तो हम सब मारे जाएंगे."
NGO काव लाओव्ड की लादिजिंसकाया कहती हैं कि उनका संगठन इस समस्या से वाकिफ है. उनकी सिफारिश है कि खेतिहर मजदूर ज्यादा खतरे वाले दिनों में काम न करें, क्योंकि अगर उन्हें किसी दूर खेत से सायरन की आवाज सुनाई भी दी, तो उनके पास मिसाइल हमले से बचने के लिए सुरक्षित जगह ढूंढने का वक्त नहीं होगा. वह कहती हैं, "बहुत सारे प्रवासी श्रमिक ऐसी साधारण इमारतों में रहते हैं, जिनमें आधुनिक सुरक्षा वाले कमरे नहीं हैं." वहीं हमले के बाद इस्राएल ने मौजूदा 600 आश्रयों के अलावा खेतिहर इलाकों में 430 नए बंकर बनाने का वादा किया है.
इस्राएल और थाईलैंड, दोनों दे रहे प्रलोभन
थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक स्थित इस्राएली दूतावास के मुताबिक इस साल के अंत तक गाजा पट्टी के साथ सीमा क्षेत्र में काम करते रहने वाले विदेशी श्रमिकों को मुआवजे के लिए करीब 47 लाख यूरो का बजट रखा गया है. हालांकि, थाईलैंड के प्रधानमंत्री थावीसीन ने इस प्रस्ताव पर नकारात्मक प्रतिक्रिया दी है. मीडिया से बातचीत में थावीसीन ने कहा, "यह अस्वीकार्य है. वहां थाईलैंड के लोगों की जिंदगियां दांव पर लगी हैं." थावीसीन ने यह एलान भी किया है कि जो कर्मचारी इस्राएल छोड़कर थाईलैंड वापस आएंगे, उनके आर्थिक नुकसान की कुछ हद तक भरपाई के लिए थाईलैंड सरकार उन्हें करीब 400 यूरो (15,000 थाई बात) देगी.
इस्राएल से लौटने वाले पुडटासोन कहते हैं कि वह आर्थिक मदद की इस घोषणा से खुश हैं. हालांकि, अब जो थाई लोग बेरोजगार हो गए हैं, उन्हें नहीं पता कि अब आगे वे अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे कर पाएंगे. वह कहते हैं, "मेरे तीन-चार साथी इस्राएल के खेतों में फिर से काम करने लगे हैं. अब इस्राएली टैंक उनकी सुरक्षा कर रहे हैं." हालांकि, इस्राएल में पुडटासोन को जो दर्दनाक अनुभव झेलने पड़े, उसके बाद अब इस्राएल का अध्याय उनके जीवन से खत्म हो गया है.
जूलियन कुंग, थाईलैंड से