गाजा से रिफ्यूजी क्यों नहीं लेना चाहते मिस्र और जॉर्डन?
१९ अक्टूबर २०२३मिस्र ने गुरुवार को गाजा से लगती सीमा खोलने पर सहमति जतायी ताकि लोगों की मदद के लिए सामग्री लाये ट्रक सीमा पार कर सकें. लेकिन लोगों को सीमा पार कर सुरक्षित इलाकों में जाने देने पर फिलहाल कोई प्रगति नहीं हो पायी है.
मिस्र की सीमा गाजा से लगती है जबकि जॉर्डन की सीमा वेस्ट बैंक से लगती है. दोनों ही देशों ने गाजा से शरणार्थियों को लेने से साफ इनकार कर दिया है.
ना मिस्र तैयार, ना जॉर्डन
बुधवार को मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी ने कहा कि यह युद्ध सिर्फ हमास के खिलाफ नहीं है बल्कि "लोगों को नागरिकों को बाहर धकेलने, मिस्र में भेज देने के लिए है.” उन्होंने चेतावनी दी कि यह क्षेत्र की शांति को अस्थिर कर सकता है.
जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला द्वीतीय ने भी मंगलवार को ऐसा ही बयान देते हुए कहा था, "ना मिस्र कोई शरणार्थी लेगा, ना जॉर्डन.” चूंकि दोनों देश मुस्लिम बहुल हैं और जॉर्डन में फलीस्तीनी लोगों की बड़ी आबादी रहती है, इसलिए बहुत से लोगों के मन में यह सवाल है कि ये दोनों देश फलीस्तीनियों को अपने यहां शरण देने से क्यों इनकार कर रहे हैं.
इसकी एक वजह तो उस डर से जुड़ी है कि इस्राएल फलीस्तीनियों को स्थायी तौर पर निकाल देना चाहता है ताकि उनकी अपने देश की मांग कमजोर हो जाए.
अल-सिसी ने यह भी कहा कि बड़ी संख्या में लोगों के आने से मिस्र से सिनाई प्रायद्वीप में भी उग्रवादियों के आने का खतरा बढ़ जाएगा, जहां से वे इस्राएल पर हमले कर सकते हैं और दोनों देशों के बीच 40 साल पहले हुई शांति संधि खतरे में पड़ सकती है.
ऐतिहासिक पलायन
पलायन फलीस्तीन के इतिहास का एक अहम अध्ययाय रहा है. 1948 में जब इस्राएल अस्तित्व में आया, तब सात लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए थे. फलीस्तीनी उस पलायन को नकबा के नाम से याद करते हैं, जिसका अर्थ होता है विनाश.
उसके बाद 1967 में अरब-इस्राएल युद्धमें इस्राएल ने वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया और तीन लाख से ज्यादा फलीस्तीनियों को विस्थापित कर दिया. इनमें से अधिकतर जॉर्डन चले गये थे.
1948 के बाद से ही इस्राएल ने फलीस्तीनी शरणार्थियों को घर नहीं लौटने दिया है और वह किसी भी शांति संधि में इन लोगों की वापसी पर सहमत नहीं हुआ. उसे डर है कि इससे यहूदी बहुमत खतरे में पड़ सकता है.
इन विस्थापितों और उनकी संतानों की आबादी अब मिलकर 60 लाख हो चुकी है. अधिकतर लोग वेस्ट बैंक, गाजा, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन के शरणार्थी कैंपों में रह रहे हैं. बहुत से लोग शरणार्थी शिविरों को छोड़कर अन्य देशों में जा बसे हैं. बड़ी संख्या में शरणार्थियों ने खाड़ी देशों में अपनी नयी जिंदगी शुरू कर ली.
मिस्र को डर है कि अगर वह शरणार्थियों को लेता है तो इतिहास एक बार फिर से दोहराया जाएगा और गाजा के लोग उसके यहां सदा के लिए रह जाएंगे. इसकी एक वजह तो यह है कि मौजूदा युद्ध किस तरह खत्म होगा, इसका कोई अनुमान संभव नहीं हो पा रहा है.
युद्ध के बाद क्या?
इस्राएल का कहना है कि उसका मकसद हमास का समूल नाश है. हालांकि ऐसा हो पाएगा या नहीं, इस बारे में पुख्ता तौर पर कोई कुछ नहीं कह सकता. और अगर ऐसा होता भी है तो उसके बाद गाजा पर किसका अधिकार और शासन होगा, इस बारे में इस्राएल ने कोई संकेत नहीं दिया है.
इस कारण अरब देशों को डर है कि इस्राएल गाजा पर कब्जा कर लेगा, जिससे विवाद और बढ़ सकता है. हालांकि इस्राएली सेना ने कहा है कि उसके कहने पर जो लोग गाजा छोड़कर जाएंगे, उन्हें युद्ध के बाद लौटने दिया जाएगा. लेकिन मिस्र इस बात पर भरोसा नहीं कर पा रहा है.
अल-सिसी ने कहा कि अगर इस्राएल ने कह दिया कि उसने हमास उग्रवादियों का पूरी तरह सफाया नहीं किया है तो युद्ध बरसों तक खिंच सकता है. उन्होंने सुझाव दिया है कि इस्राएल गाजा के लोगों को नेगेव मरुस्थल में स्थान दे, जो गाजा पट्टी से लगता है.
क्राइसिस ग्रुप इंटरनेशनल के उत्तर अफ्रीका में प्रोजेक्ट निदेशक रिकार्डो फाबियानी कहते हैं, "इस्राएल की मंशा में स्पष्टता ना होना अपने आप में एक समस्या है. इस कारण पड़ोसियों में डर है.”
मिस्र खुद आर्थिक संकट से गुजर रहा है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि उसके यहां करीब 90 लाख शरणार्थी रह रहे हैं जिनमें से करीब तीन लाख इसी साल सूडान में जारी युद्ध के कारण आए हैं.
हमास को लेकर चिंताएं
मिस्र को अपने यहां उग्रवादियों के आने का डर भी सता रहा है. उसका कहना है कि अगर उग्रवादी उसके यहां आ गये और इस्राएल के खिलाफ वहीं से युद्ध करने लगे तो उसके अपने यहां भी अशांति फैल सकती है.
2007 में हमास द्वारा गाजा पर शासन शुरू करने के बाद से ही मिस्र ने गाजा में इस्राएल की नाकाबंदी का समर्थन किया है. उसने हमास और अन्य फलीस्तीनियों द्वारा सीमा पर बनायी सुरंगों को नष्ट किया है जो वे लोग सामान और लोगों को लाने-ले जाने के लिए इस्तेमाल कर रहे थे.
मिस्र सिनाई में लंबे समय तक इस्लामिक स्टेट से जूझता रहा है. फाबियानी कहते हैं कि अब सिनाई में काफी हद तक शांति है और मिस्र नहीं चाहेगा कि उसके दोबारा भड़कने की जरा भी गुंजाइश पैदा हो.
वीके/सीके (एपी)