ज्यादा गर्मी और भुखमरी का सीधा संबंध
२३ अगस्त २०२३दुनियाभर में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के हालात के बीच इस नए अध्ययन में पाया गया है कि गर्मी अगर ज्यादा हो तो सिर्फ कुछ ही दिनों में उसकी वजह से दिहाड़ी कमाई पर जी रहे करोड़ लोग भुखमरी में धकेले जा सकते हैं.
उदाहरण के तौर पर भारत में अगर चरम तापमान एक हफ्ते तक रहा तो मुमकिन है कि उसकी वजह से 80 लाख अतिरिक्त लोगों को गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़े. अध्ययन के नतीजे 'नेचर ह्यूमन बिहेवियर' पत्रिका में छपे हैं.
आय पर असर तुरंत
अध्ययन के लिए 150 देशों का निरीक्षण किया गया, विशेष रूप से ऐसे देशों का जो ट्रॉपिकल और सब-ट्रॉपिकल इलाकों में स्थित हैं. चरम गर्मी के दिनों में अगर भोजन ना मिलने की संभावना में एक प्रतिशत से भी कम की बढ़ोतरी हो तो उसकी वजह से इन 150 देशों में लाखों, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर भूख का सायामंडरा सकता है.
विश्व बैंक का अनुमान है कि 2022 में वैश्विक आबादी के करीब 30 प्रतिशत हिस्से को मध्यम दर्जे से लेकर गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा. अभी तक खाने की उपलब्धता पर गर्मी का असर फसलों की पैदावार कम होने तक ही सीमित था, जिसका असर महीनों या सालों बाद दिखता था.
लेकिन इस नए अध्ययन ने दिखाया है कि इस असर को अगर आय से जोड़ कर देखा जाए तो असर तुरंत देखा जा सकता है. अध्ययन के मुख्य लेखक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के कैरोलिन क्रोगर कहते हैं, "अगर आज गर्मी हो जाए तो संभव है कि कुछ ही दिनों के अंदर लोगों के काम ना कर पाने की वजह से खाद्य असुरक्षा पैदा हो जाएगी. वो कमा नहीं पाएंगेऔर खाना खरीद नहीं पाएंगे."
इस तरह के नतीजे उन तरह के कामों में सबसे ज्यादा दिखाई देते हैं जिनमें आय उत्पादकता से बहुत करीब से जुड़ी होती है, जैसे खेतों में फसलों की कटाई या ऐसा काम जिसमें किसी भी उत्पाद के एक एक टुकड़े को बनाने के हिसाब से आय मिलती है.
जितनी गर्मी, उतना नुकसान
उदाहरण के तौर पर पश्चिम बंगाल में ईंट ढोने वाली महिलायें एक दिन में जितनी ईंटें उठाती हैं उन्हें उसके हिसाब से पगार मिलती है. जिस दिन गर्मी की वजह से मजबूर हो कर वो कम ईंटें उठाती हैं, उस दिन उनकी आय में 50 प्रतिशत तक का नुकसान हो जाता है.
कुछ और रिपोर्टों की मदद से इस अध्ययन के नतीजों को समझा जा सकता है. सीरिया में रहने वाले लोहार मुराद हद्दाद सुबह जल्दी उठते हैं और फिर वो और उनके पांच भाई बारी बारी से भारी काम करते हैं ताकि दिन में होने वाले तेज तापमान से बचा जा सके.
हद्दाद कहते हैं, "यह गर्मी हमारी जान ले रही है. मेरे छह बच्चे हैं और मैं मुश्किल से उनका ख्याल रख पा रहा हूं. लेकिन अगर मैं काम नहीं करूंगा तो बिल्कुल भी गुजारा नहीं हो पाएगा."
क्रोगर कहते हैं, "कम आय, ज्यादा कृषि आधारित रोजगार और ज्यादा संवेदनशील रोजगार वाले देशों में और मजबूत असर दिखाई देता है."
क्रोगर ने पाया कि ऐसे लोग जिन्होंने हाल ही में एक गर्मी भरे हफ्ते का अनुभवकिया है उनके स्वास्थ्य समस्याओं और "मौजूदा आय पर जीने में दिक्कतों" का सामना करने की ज्यादा संभावना है.
पोषण पर भी असर
इससे उनकी आय काफी गिर जाती है. ये असर क्युमुलेटिव हैं, यानी एक हफ्ते में जितने ज्यादा गर्म दिन होंगे असर उतना ही तेज होगा. 2021 में 470 अरब संभावित श्रम घंटे - जो दुनियाभर में प्रति व्यक्ति लगभग डेढ़ हफ्तों के काम के बराबर है - चरम गर्मी की भेंट चढ़ गए.
यह नतीजे ऐसे समय में आये हैं जब खाद्यान्न के दाम लगातार बरकरार रहने वाली महंगाई की चपेट में हैं. इसके अलावा दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक देश भारत ने फसलों को हुए नुकसान की वजह से निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. लेकिन सिर्फ आपूर्ति और दाम ही समस्या नहीं हैं.
शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि बढ़ते तापमान की वजह से ऐसी कई मुख्य फसलों और दालों में आवश्यक पोषक तत्वों की भी कमी हो सकती है जिन पर दुनिया के अधिकांश हिस्से निर्भर हैं.
क्रोगर कहते हैं, "बीते एक या दो सालों में गर्मी के कई रिकॉर्ड टूटे, इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि जो चीजें हमने देखीं उनमें से कुछ तो और खराब हो सकती हैं. लेकिन कुछ ऐसी चीजें भी हैं, जिनसे मदद मिल सकती है, जैसे माइक्रो-बीमा और श्रम कानून. तराजू अभी भी झुक सकता है."
संयुक्त राष्ट्र के आईपीसीसी जलवायु विज्ञान सलाहकार समिति के मुताबिक, संभव है कि 2080 तक करोड़ों लोग हर साल कम से कम 30 कथित "घातक गर्म दिनों" से प्रभावित होंगे. अगर दुनिया ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के पेरिस जलवायु लक्ष्य को हासिल भी कर ले तब भी ऐसा हो सकता है.
सीके/एए (एएफपी)