होलोकॉस्ट पर झूठ फैलाने वाली पोस्ट हटाएगा फेसबुक
१३ अक्टूबर २०२०कोरोना महामारी की शुरुआत में इस वायरस को ले कर झूठी बातें फैलाने वाली एक फिल्म "प्लैन्डेमिक" सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई. जब तक फेसबुक और यूट्यूब का इस पर ध्यान गया, यह काफी नुकसान कर चुकी थी. वीडियो के वायरल होने से दुनिया भर में लाखों लोगों ने इसे देखा और इस पर भरोसा भी किया.
इसी तरह जर्मनी में 1940 के दशक में यहूदियों का जो नरसंहार हुआ, उसे ले कर भी इंटरनेट में कई तरह की झूठी बातें मौजूद हैं.
अमेरिका में तो ऐसे कई लोग हैं जो इन फेक पोस्ट और पेजों के कारण यह मानने लगे हैं कि होलोकॉस्ट कभी हुआ ही नहीं और यह केवल लोगों को भ्रमित करने के लिए फैलाया गया झूठ है. अमेरिकी चुनाव से महज तीन सप्ताह पहले फेसबुक ने इस तरह के पोस्ट डिलीट करने का फैसला लिया है. हालांकि इसकी मांग लंबे समय से उठती आ रही थी. इस साल की शुरुआत से ही होलोकॉस्ट का सामना कर चुके लोग फेसबुक का ध्यान इस ओर खींच रहे थे. इसके लिए सोशल मीडिया पर #NoDenyingIt के तहत एक कैम्पेन भी चलाया गया. इस हैशटैग के साथ पिछले 75 दिनों से हर रोज होलोकॉस्ट के तजुर्बे सुनाते हुए एक वीडियो पोस्ट किया जा रहा था.
यहूदी विरोधी भावनाएं
फेसबुक ने कहा है कि यह फैसला लेते हुए उसने इस बात को ध्यान में रखा कि "दुनिया भर में यहूदी विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं और लोगों में होलोकॉस्ट को ले कर कई अवधारणाएं भी हैं - खास कर युवा लोगों में." मार्क जकरबर्ग ने अपने ब्लॉग पोस्ट में लिखा है कि वे उम्मीद करते हैं कि उनकी कंपनी की नई नीति लोगों को समझने में मदद करेगी कि बोलने की आजादी के अंतर्गत क्या सही है और क्या नहीं. उन्होंने लिखा, "मैंने जब डाटा देखा कि किस तरह से यहूदी विरोधी भावनाओं का विस्तार हो रहा है, तो मेरी अपनी सोच का आयाम भी बढ़ा." मार्क जकरबर्ग खुद भी यहूदी हैं.
फेसबुक के अलावा इंस्टाग्राम से भी ऐसी पोस्ट हटाई जाएंगी. दोनों कंपनियां मार्क जकरबर्ग की ही हैं. लेकिन उन्होंने माना कि तकनीकी सिस्टम को ट्रेन करने में अभी कुछ वक्त लग सकता है और कई मामलों में फैसले मशीन पर नहीं छोड़े जा सकते, बल्कि इंसानी हस्तक्षेप की जरूरत पड़ेगी.
1941 से 1945 के बीच हुए यहूदी नरसंहार में करीब 60 लाख यहूदियों की जान ली गई. यहूदियों को ट्रेनों में भर कर यातना शिविरों में भेजा जाता था, जहां उन्हें प्रताड़ित किया जाता था और गैस चैंबर में डाल कर उनकी जान ली जाती थी.
आईबी/एनआर (एएफपी, डीपीए)
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