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अमित शाह ने फिर छेड़ी सीएए की बात

६ मई २०२२

भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि कोविड का असर कम हो जाने के बाद नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू किया जाएगा. सीएए-एनआरसी को लेकर देश में पहले भी खासा विवाद हो चुका है.

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सीएए एनआरसी
सीएए एनआरसीतस्वीर: picture alliance / Pacific Press

भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (सीएए) एक सच्चाई है और कोविड का असर कम हो जाने के बाद इसे लागू किया जाएगा. पश्चिम बंगाल में गुरुवार को एक जनसभा में उन्होंने यह बात कही, जिसके बाद सीएए का विवाद फिर से खड़ा होने की आशंका है.

क्या बोले अमित शाह?

सिलिगुड़ी में एक रैली में अमित शाह ने कहा, "ममता दीदी, आप तो यही चाहती हो कि घुसपैठ चलती रहे, मगर कान खोलकर तृणमूल वाले सुन लें, सीएए वास्तविकता था, वास्तविकता है और वास्तविकता रहने वाला है. इसलिए आप कुछ नहीं बदल सकते हो."

अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस पर कानून के बारे में अफवाह फैलाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, "आज मैं उत्तर बंगाल में आया हूं. मैं आपको स्पष्टता करके जाता हूं, तृणमूल कांग्रेस सीएए के बारे में अफवाहें फैला रही है कि सीएए जमीन पर लागू नहीं होगा. मैं आज कहकर जाता हूं, कोरोना की लहर समाप्त होते ही सीएए को हम जमीन पर उतारेंगे."

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अमित शाह के इस बयान को ममता बनर्जी ने "गंदी बात” करार दिया. सीएए के संदर्भ में उन्होंने कहा, "यह उनकी योजना है. वे बिल को संसद में पेश क्यों नहीं कर रहे हैं? मैं आपको बता रही हूं कि हम किसी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन नहीं चाहते. हम चाहते हैं कि हम सब साथ रहें. एकता ही हमारी ताकत है. यही स्वामी विवेकानंद ने कहा था. एक साल बाद वह आए थे. हमने चुनाव में उनके साथ जो किया था, उसके बाद वह अपना मुंह छिपाए बैठे थे. हर साल आते हैं, गंदी बात करते हैं.”

सीएए पर विवाद

नागरिकता संशोधन कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियमों को आसान बनाया गया है. लेकिन इस कानून से मुसलमानों को बाहर रखा गया है. पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम 11 साल देश में रहना अनिवार्य था जिसे घटाकर 6 साल किया गया है.

सीएए विधेयक को पहली बार 19 जुलाई 2016 को लोकसभा में पेश किया गया और 12 अगस्त 2016 को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया. 8 जनवरी 2019 को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया लेकिन यह राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका. उसके बाद सरकार ने नए सिरे से इसे लोकसभा में पेश किया. 9 दिसंबर 2019 को लोकसभा में इसे पास किया गया और दो दिन बाद विधेयक राज्यसभा में भी पास हो गया. 21 दिसंबर 2019 को भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के साथ ही यह एक कानून बन गया.

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लेकिन इस दौरन बड़ी संख्या में जनता में यह धारणा रही कि ये कानून ठीक नहीं है. संसद में विधेयक पर बहस के दौरान विपक्ष के सभी सांसदों ने इसे असंवैधानिक बताया था. इसके विरोध में देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रदर्शन हुए थे. यह कानून नागरिकता का अधिकार कुछ विशेष समुदायों को देता है, सिर्फ एक समुदाय - मुसलमानों - को छोड़ कर जबकि भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर नागरिकता का प्रावधान नहीं है.

सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भी हुई जिसमें 83 लोग मारे गए. असम, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय और दिल्ली में विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा हुई थी. इसके अलावा दिल्ली के शाहीन बाग में महिलाओं द्वारा कई महीने लंबा धरना भी दिया गया था, जिसेकोविड महामारी शुरू होने के बाद खत्म किया गया.

फिलहाल क्या है स्थिति?

सीएए लागू तो हो गया है लेकिन उस पर नियम बनाने का काम पूरा नहीं हो पाया है. नियमानुसार किसी भी कानून के लागू होने के छह महीने के भीतर उस पर नियम बनाने होते हैं. यदि संबंधित मंत्रालय ऐसा नहीं कर पाता है तो उसे संसद से अतिरिक्त समय लेना होता है, जो एक बार में तीन महीने से ज्यादा नहीं होता.

पिछले साल दिसंबर में अल्पसंख्यक मंत्रालय ने लोकसभा को एक सवाल के जवाब में बताया था कि कानून की वैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और मामला अभी न्यायालय में है. कई राज्यों ने कानून को चुनौती दी है जिनमें राजस्थान और केरल की याचिका कोर्ट में है. मेघालय, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पंजाब विधानसभाओं ने इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास किए हैं.

वीके/एए (रॉयटर्स)

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