230 किलो पेपर सालाना खाते हैं जर्मन
२६ फ़रवरी २०११कागज की जरूरत पूरी करने के लिए अक्सर सेल्यूलोज के पौधे वाले खेत लगाए जाते हैं. क्या इसका कोई विकल्प नहीं कि जंगल बचाए जा सकें. सबसे सटीक उपाय है कागज पुराने कागज से बनाना, न कि लकड़ी से.
कम नहीं ज्यादा
1980 में बिन कागज के ऑफिसों का सपना देखा जा सकता था. उस समय जानकारों को लगता था कि इंटरनेट, इमेल जैसे इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कारण पेपर की आवश्यकता कम हो जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जर्मनी के पर्यावरण विभाग की आल्मुट राइषर्ट कहती हैं, "हम एक ओर तो ज्यादा कागज का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि छपाई तेज हो गई है. एक दो क्लिक ज्यादा होने से सीधे कई सौ पेपर खराब हो जाते हैं. पहले ऐसा नहीं था. तब एक ओरिजिनल कॉपी होती थी और फिर इसे सबको दिया जाता."
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की वजह से कुछ कम नहीं हुआ है. बल्कि ज्यादा छपाई हो रही है. इस तथ्य की पुष्टि यूरोप के एक शोध में सामनी आई. कई लोग सुरक्षा के लिए प्रिंट करते हैं, कि भूल न जाएं न कि कंप्यूटर में सेव करते हैं.
रिकॉर्ड तोड़ इस्तेमाल
कागज के लिए भूख बढ़ रही है. अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी दुनिया में सबसे ज्यादा कागज खाते हैं. जर्मनी में हर आदमी सालाना 230 किलो पेपर का इस्तेमाल करता है. यह दुनिया की तुलना में औसतन चार गुना ज्यादा है. आल्मुट राइषर्ट बताती हैं, "हम प्रति व्यक्ति इतना कागज उपयोग करते हैं जितना अफ्रीका और एशिया कुल मिला कर करते हैं. जब हम यह सोचे कि वहां की जनसंख्या कितनी है और अगर वहां भी पेपर का इस्तेमाल बढ़ जाता है तो जल्द ही ऐसी स्थिति आ जाएगी कि नए कागज बनाना संभव नहीं होगा. इसलिए पुराने कागज को फिर से उपयोग में लेना ही पड़ेगा."
पेड़ से मिलने वाले ताजे रेशे के अलावा पुराने पेपर से भी नया पेपर बनाया जा सकता है. हां खाद्य पदार्थों को पैक करने के लिए इसका उपयोग नहीं हो सकता. इसलिए पर्यावरण के लिए अच्छा है कि हम पुराने पेपर से नया पेपर बनाएं. पर्यावरण और पेपर फोरम के युप ट्राउथ कहते हैं, "पुराने कागज का एक बड़ा फायदा है. यहां रेशा पहले से मौजूद है जिसे हमें सिर्फ घोलना है. जब हम लकड़ी से कागज बनाते हैं तो हमें उसे रसायनों में पकाना पड़ता है. इसमें बहुत ज्यादा ऊर्जा और पानी खर्च होता है. और इससे निकलने वाला गंदा पानी भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है. जब मैं कागज रिसाइकल करता हूं तो यह नहीं होता."
पुराने से नया
लकड़ी से कागज बनाने में रिसाइकलिंग की तुलना में तीन चार गुना ऊर्जा की खपत होती है और पांच गुना ज्यादा पानी इस्तेमाल होता है. साथ ही लकड़ी से कागज बनाने में बहुत ज्यादा लकड़ी लगती है. यह बहुत अहम है क्योंकि वर्षा वनों पर लकड़ी के लिए दबाव बढ़ता जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र की खेती और आहार संस्था एफएओ ने इस बाच की चेतावनी दी है.
कागज की बढ़ती जरूरत का असर है कि दुनिया भर में नई लकड़ी और सेल्यूलोज बनाने के उद्योग बढ़ते जा रहे हैं. खासकर दक्षिणी अमेरिका और एशिया में. वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर के मार्कस रैडे कहते हैं, "सुमात्रा में कागज की जरूरत पूरी करने के लिए लगाए गए नीलगिरी और बबूल के पेड़ों के कारण वहां के वन खत्म हो रहे हैं."
जीन्स बदल कर हमने जिन पेड़ों को बनाया वह पर्यावरण के लिए फायदेमंद नहीं है बल्कि भारी प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन सकते हैं. क्योंकि ये बदले हुए जीन अगर एक बार प्रकृति शामिल हो गए तो वह सब कुछ बदल सकते हैं. और इस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होगा. इसलिए यह कोई उपाय नहीं हो सकता. बेहतर यही है कि हम कम से कम कागज का इस्तेमाल करें और इसे रिसाइकल करें.
रिपोर्टः डॉयचे वेले/आभा मोंढे
संपादनः ईशा भाटिया