सुंदरबन में खारे पानी से बीमार हो रही हैं महिलाएं
१ नवम्बर २०१८गीली साड़ी, चेहरे पर थकान और हाथ में मछली पकड़ने का जाल. हर शाम जब शोम्पा पाल घर लौटती हैं तो ऐसी ही दिखाई देती हैं. रोजाना चार घंटे बिद्याधारी नदी में खड़े होकर झींगे पकड़ने वाली शोम्पा हर दिन लगभग 100 रुपये तक कमा लेती हैं. सुंदरबन क्षेत्र में शोम्पा जैसी कई महिलाएं हैं, जो यह काम करती हैं. हालांकि इस काम के लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. तालाब और नदी का पानी इतना खारा है कि महिलाओं को त्वचा के रोग या प्रजनन अंगों में संक्रमण की समस्या हो रही है.
जयपुर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर) में प्रोफेसर बारुन कांजीलाल कहते हैं, ''इस काम के लिए कुशलता की ज्यादा जरूरत नहीं है. इससे गरीब महिलाओं की कुछ अतिरिक्त कमाई हो जाती है, लेकिन स्वास्थ्य का बहुत बड़ा जोखिम है.''
सुंदरबन क्षेत्र में रिसर्च कर रहे कांजीलाल का कहना है कि उन्होंने इस क्षेत्र में पश्चिम बंगाल की तुलना में गर्भाशय के कैंसर की दर कुछ अधिक है. वह कहते हैं, "सुंदरबन में 50 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले आंखों से जुड़ी समस्या ज्यादा है."
जलवायु परिवर्तन की मार
2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक अध्ययन से पता चला कि बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में खारा पानी और गर्भवती महिलाओं में उच्च रक्तचाप, एक्लेम्पसिया या प्री-एक्लेम्पिया जैसी समस्याएं हैं. हालांकि डब्ल्यूएचओ और कांजीलाल, दोनों का ही मानना है कि खारे पानी और यहां महिलाओं को होने वाली बीमारियों के बीच संबंध को जानने के लिए वैज्ञानिक शोध की कमी है और इसकी वजह से जलवायु परिवर्तन और बाढ़ की मार झेल रहे इस क्षेत्र में समस्या से निपटने में रुकावटें आ रही हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि दक्षिण एशिया के तटीय इलाकों में सूखे और बाढ़ के चलते ताजे पानी की कमी हो रही है और खारा पानी बढ़ रहा है. उनका मानना है कि दुनिया के सबसे बड़े डेल्टा सुंदरबन में आ रहे ये बदलाव महिलाओं के लिए खासतौर पर खतरनाक हैं.
हजारों फीट नीचे भी पानी नहीं
बांग्लादेश के तटीय इलाकों में समुद्र के जलस्तर के बढ़ने और तूफान से पीने का पानी दूषित हो रहा है. ताजे पानी के लिए कुओं की गहरी खुदाई करनी पड़ रही है. बांग्लादेश में एक अंतरराष्ट्रीय चैरिटी संस्था वॉटर ऐड के निदेशक खैरुल इस्लाम का कहना है, ''दक्षिणी बांग्लादेश के कुछ इलाकों में अगर दो हजार फीट की गहराई तक भी खुदाई की जाए तो ताजा पानी मिलना मुश्किल हो सकता है.''
दक्षिणी बांग्लादेश के एक गांव के रहने वाले किशोर मंडल पीने का पानी मुफ्त में नहीं मिलता. वह मानसूनी बरसात के पानी को ड्रमों में स्टोर हैं. वह कहते हैं, ''मैं जुलाई से नवंबर तक हर हफ्ते पीने के पानी के 30 लीटर वाले तीन कंटेनर खरीदता हूं. हम हर महीने 240 टका (2.80 डॉलर) पीने के पानी के लिए अलग रखते हैं. महिलाएं और लड़कियां दो किलोमीटर दूर से इन कंटेनरों को लाती हैं.''
मंडल की पत्नी तृप्ति बताती हैं कि अगर पीने के पानी की कमी हो जाए तो महिलाओं को तालाब के खारे पानी को मजबूरन पीना पड़ता है. इसकी वजह है कि महिलाओं के बजाए बकरियों को मीठा पानी पिलाया जाता है.
वह कहती हैं, ''साफ पानी पिलाने के लिए हमारी बकरियों को महिलाओं से अधिक प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि अगर बकरियां खारा पानी पिए तो उन्हें डायरिया हो जाएगा.'' वह बताती हैं कि इस क्षेत्र में बकरियों से कई प्रकार की बचत हो जाती है और इसलिए उन्हें जीवित रखना जरूरी है.
माहवारी का कपड़ा हो रहा गंदा
पानी की कमी वजह से महिलाओं की स्वच्छता पर भी बुरा असर पड़ा है. सुंदरबन के गांव दुल्की की महिलाएं माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े खारे पानी में धोती है. इससे कपड़ा गंदा और सख्त हो जाता और सूखने के बाद दोबारा इस्तेमाल करते वक्त दिक्कत होती है. इससे कई बार संक्रमण या घाव की समस्या हो जाती है.
पड़ोस के सोनागांव की महिला नमिता मनडोल ने हाल ही में अपने गर्भाशय से डेढ़ किलो का ट्यूमर निकलवाया है. इसके लिए उन्हें प्राइवेट क्लीनिक में करीब ढाई लाख रुपये देने पड़े. वह बताती है कि उन्हें करीब सात अन्य महिलाओं के बारे में पता है, जो ऐसे ट्यूमर की समस्या से जूझ रही हैं. ये महिलाएं लंबे वक्त तक पानी में खड़े होकर झींगे पकड़ने का काम करती हैं.
इंटरनेशनल फू़ड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक तटीय क्षेत्रों में खारे और दूषित पानी की समस्या यहां से पलायन करने का कारण बन रही है. लोगों में अपने गांव-घर को छोड़कर शहरों की तरफ जा रहे हैं.
वीसी/एके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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