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समलैंगिकों के मुद्दे पर भारत की आलोचना

१३ जनवरी २०१५

संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने भारत पर समलैंगिक सेक्स पर रोक लगाकर असहिष्णुता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है. सत्ताधारी पार्टी के एक मंत्री ने पिछले दिनों समलैंगिकों को सामान्य बनाने की योजना की घोषणा की थी.

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तस्वीर: Reuters/M. Segar

नई दिल्ली के दौरे पर गए संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि वे समलैंगिकता के अपराधीकरण का दृढ़ विरोध करते हैं. भारत का ब्रिटिश कब्जे के समय से चला आ रहा कानून समलैंगिक सेक्स पर रोक लगाता है. बान की मून ने कहा, "मुझे गर्व है कि मैं सभी लोगों की बराबरी का समर्थन करता हूं, उन लोगों का भी जो लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर हैं." उन्होंने कहा कि वे इसके बारे में इसलिए बोल रहे हैं क्योंकि आपसी सहमति से समलैंगिक वयस्कों के बीच रिश्ते को अपराध बनाने वाला कानून निजता और भेदभाव से आजादी के मौलिक अधिकार का हनन करता है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा, "उन कानूनों को लागू न भी किया जाए तो भी वे असहिष्णुता को बढ़ावा देते हैं."

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में अपने एक फैसले से समलैंगिक सेक्स पर फिर से प्रतिबंध लगा दिया था. फैसले में कहा गया था कि 1861 के कानून को बदलने का अधिकार संसद के पास है, ना कि न्यायपालिका के पास. इससे पहले 2009 में दिल्ली हाइकोर्ट ने गे सेक्स पर प्रभावी तरीके से कानून बनाते हुए अपने फैसले में कहा था कि "प्रकृति के आचरण के खिलाफ शारीरिक संबंधों पर प्रतिबंध" लगाना मौलिक अधिकारों का हनन है.

बान की मून की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब गोवा में सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी के एक मंत्री रमेश तावडकर ने समलैंगिकों को सामान्य बनाने की अपनी योजना की घोषणा की थी. इस बीच आलोचना के बाद तावडकर ने यह कहते हुए पलटी मारी कि इस मुद्दे पर उन्हें गलत समझा गया और उन्हें गलत तरीके से पेश किया गया. प्रांत के युवा मामलों के मंत्री ने सोमवार को कहा कि शराब छुड़ाने के केन्द्रों की तरह समलैंगिकों के इलाज के लिए भी सेंटर खोले जाएंगे, "हम उन्हें नॉर्मल बना देंगे. हम एल्कोहल एनोनिमस की तरह सेंटर बनाएंगे. उन्हें ट्रेन करेंगे और दवा भी देंगे." तावडकर द्वारा जारी प्रांतीय युवा नीति में लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडरों को लांछित ग्रुप बताया गया है जिन पर ध्यान देने की जरूरत है.

तावडकर की टिप्पणियों की गे अधिकार कार्यकर्ताओं ने व्यापक आलोचना की है और उन्हें अपमानजनक बताया है. अभियानकर्ताओं का कहना है कि समलैंगिक कार्रवाईयों के खिलाफ शायद ही कानूनी कार्रवाई की जाती है, लेकिन पुलिस इसका इस्तेमाल ब्लैकमेल करने और पैसा वसूलने के लिए करती है. भारत में समलैंगिकता को व्यापक पैमाने पर अस्वीकार किया जाता है जिसकी वजह से कई लोगों को दोहरी जिंदगी जीनी पड़ती है. हिंदू कट्टरपंथी संगठन समलैंगिक संबंधों को बीमारी और पश्चिम का सांस्कृतिक आयात बताते हैं.

एमजे/आरआर (एएफपी)