नेपाल में समलैंगिकों की परेड
नेपाल के समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर समुदाय ने काठमांडू में समलैंगिकों की सालाना 'गायजात्रा' परेड में लगातार पांचवें साल हिस्सा लिया.
अल्पसंख्यकों का हित
काठमांडू की सड़कों पर सैकड़ों समलैंगिक और किन्नर झूमते, नाचते, गाते परेड में शामिल हुए. नेपाल में मनाए जाने वाले गायजात्रा पर्व का मतलब है गायों का पर्व. इस दिन उन लोगों को याद किया जाता है जिनकी उस साल मृत्यु हो गई हो. पारंपरिक तौर पर यह एकलौता दिन हुआ करता था जब महिलाएं पुरुषों के और पुरुष महिलाओं की पोशाक पहन सकते हैं. पिछले पांच सालों से एलजीबीटी समुदाय इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना लगा है.
परंपरा से ऊपर
सैकड़ों सालों से धार्मिक रीति रिवाजों में बंधे नेपाल में लोकतंत्र और भाईचारे की हवा प्रवेश कर चुकी है. भूख, गरीबी और रूढ़िवाद से जूझने के बावजूद हिन्दू बहुल देश नेपाल दक्षिण एशिया का पहला देश है जिसने 2007 में समलैंगिकता को कानूनी दर्जा दिया.
शादी के रास्ते
नेपाल की सर्वोच्च अदालत द्वारा समान सेक्स में शादी के बारे में सर्वे की मांग के बाद अब सरकारी कमेटी भी नए संविधान में इसे कानूनी दर्जा दिए जाने की सलाह दे रही है. ऐसा हो जाने पर समलैंगिक दंपतियों के पास संपत्ति खरीदने, बच्चा गोद लेने, साथ में खाता खोलने या फिर एक दूसरे की संपत्ति के उत्तराधिकार का हक होगा. देश की सभी राजनीतिक पार्टियां प्रस्ताव का समर्थन कर रही हैं.
जवां हौसला
पर्यटकों की भीड़ भाड़ वाले इलाके थामेल से शहर के मुख्य चौराहे तक नाच गाने से भरपूर इस परेड को देखने सड़क के दोनों ओर लोग खड़े थे. नेपाल के युवाओं को उम्मीद है कि बहुत जल्द हवा में ताजगी होगी. अरेंज शादियों को ही नहीं प्रेम विवाह को भी समाज में और जगह मिलेगी.
तीसरा लिंग
2006 में नेपाल में राजशाही की जगह लोकतंत्र ने ली. विश्लेषकों के मुताबिक उस समय अन्य अल्पसंख्यकों के अलावा अधिकार मांगने वालों में सबसे आगे समलैंगिक थे. 2007 में देश के उच्चतम न्यायालय ने इन्हें तीसरे लिंग का दर्जा दिया.
बदलाव की लहर
"मेरा देश, मेरा संविधान, मेरे अधिकार, मेरी पहचान, मेरा गर्व", यह रहा इस साल की समलैंगिक परेड का स्लोगन. परेड में कई लोग बैनरों के साथ शामिल हुए जिन पर समलैंगिकों के विवाह को कानूनी दर्जा देने की मांग लिखी थी. प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने इस काम को इस साल के अंत तक अंजाम देने का वादा किया है.