मूड बदलने वाली रोशनी
३० जनवरी २०१४जी हां, रोशनी से जीवन भी रोशन होता है. अगर सही रोशनी का इस्तेमाल किया जाए तो मूड खराब नहीं होगा. आखिर पृथ्वी का सारा कारोबार भी तो रोशनी के स्रोत सूर्य से ही चलता है. वही तो दुनिया की हर चीज की चमक फीकी या तेज करता है.
जर्मनी जैसे देशों में सर्दियों का महीना रोशनी और मूड के रिश्ते को अच्छी तरह समझा देता है. जब कई दिनों तक सूरज देवता के दर्शन नहीं होते, तो मूड खराब होने लगता है. लोग अवसाद में जाने लगते हैं. उन्हें फिर तलाश होती है, सूरज की चटकीली किरणों की. दूसरे देशों से आकर यूरोप और जर्मनी में रहने वाले लोगों को अक्सर दिक्कत होती है.
लाइट का कारोबार
जर्मन लाइट कंपनी लिश्टेरॉयम ने इस बात को ध्यान में रखते हुए आधुनिक प्रकाश व्यवस्था तैयार कर दी है. सजावट में ऐसी रोशनी का इस्तेमाल, जो इंसानों के मूड को अच्छा बनाए रखे. कंपनी के लाइट प्लानर मिल्को मुरालटर कहते हैं कि उनकी पूरी परिकल्पना के पीछे भी सूरज ही है, "जब रोशनी होती है, तो हम आंखें खोलते हैं और जब अंधेरा होता है, तो हम सोने चले जाते हैं क्योंकि सूरज ही हमारे लिए रोशनी का पैमाना है. हम इसे बेहतर तो नहीं बना सकते लेकिन इसे हासिल कर सकते हैं."
स्वीमिंग पूल और दफ्तरों के अलावा रोशनी के आधुनिक उपकरणों का खास इस्तेमाल मेडिकल क्षेत्र में हो रहा है. इलाज के लिए रोशनी का सहारा लिया जा रहा है. बर्लिन के शारिटे अस्पताल ने रोशनी को लेकर खास कंसेप्ट तैयार किए हैं. यहां कि प्रमुख क्लाउडिया श्पीस का कहना है, "सूरज की रोशनी के हिसाब से हम ढल चुके हैं. इसी वजह से रात में अच्छी तरह सो पाते हैं. हमने यहां क्लीनिक की छत पर हरी लाइट लगाई है, जो सुरक्षा का भाव देती है. हमने अस्पताल के आईसीयू को किसी घर के ड्राइंग रूम की तरह तैयार किया है."
ग्राहकों की रोशनी
इसके अलावा मार्केटिंग के लोग भी रोशनी के बदलाव पर रिसर्च कर रहे हैं. उनका मानना है कि अगर किसी शॉपिंग मॉल में ग्राहकों की मनपसंद रोशनी लगा दी जाए, तो वे ज्यादा खरीदारी कर सकते हैं और उनका मूड भी अच्छा रहेगा. हाल के दिनों में आम घरों में भी एलईडी लाइटों का चलन बढ़ा है, जो सिर्फ 8,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से लगवाया जा सकता है. आजकल तो पूरी पूरी छतों पर ही रोशनी की चटाई बिछा दी जाती है.
रिपोर्टः सी माखहाउस/एजेए
संपादनः ईशा भाटिया