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भारत सरकार का ट्विटर पर नया कानूनी शिकंजा

१६ जून २०२१

मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि सरकार ने ट्विटर से सोशल मीडिया मध्यस्थ का कानूनी संरक्षण रद्द कर दिया है. हिंसा के एक मामले में किये गए ट्वीटों को लेकर ट्विटर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई है.

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Symbolbild Indien Twitter
तस्वीर: Diptendu Dutta/AFP

मीडिया में आई कई खबरों में सरकारी सूत्रों के हवाले से दावा किया जा रहा है कि नए आईटी नियमों का पालन ना करने की वजह से केंद्र सरकार ने ट्विटर के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है. इन खबरों के मुताबिक सूचना प्रौद्योगिकी कानून के अनुच्छेद 79 के तहत ट्विटर को बतौर सोशल मीडिया इंटरमीडियरी या मध्यस्थ मिला संरक्षण रद्द कर दिया गया है. सरकार या ट्विटर ने इसे ले कर अभी तक कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी है, लेकिन सरकारी सूत्रों के हवाले से कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि अब ट्विटर पर पोस्ट की गई किसी भी कानूनी रूप से आपत्तिजनक सामग्री के लिए ट्विटर के खिलाफ भी आरोप दर्ज किए जा सकते हैं.

सरकारी सूत्रों ने यह भी कहा कि 15 जून तक भारत में मौजूद सभी बड़ी सोशल मीडिया मध्यस्थ कंपनियों में सिर्फ ट्विटर ने अभी तक उन अधिकारियों की नियुक्ति नहीं की है जिनकी नियुक्ति को नए आईटी नियमों के तहत अनिवार्य बना दिया गया है. इसके साथ ही एक आपराधिक मामले में ट्विटर के खिलाफ शिकायत दर्ज किए जाने का पहला मामला भी सामने आ गया है. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में एक मुस्लिम बुजुर्ग व्यक्ति पर कुछ लोगों द्वारा हमले के बारे में किए गए कुछ ट्वीट को ले कर कुछ पत्रकारों और ट्विटर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.

पहला मामला दर्ज

कुछ ही दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें कुछ युवक गाजियाबाद में सूफी अब्दुल समद नाम के एक बुजुर्ग को मारते हुए नजर आ रहे हैं. समद का कहना था कि उन्हें मारने वालों ने उन्हें 'वन्दे मातरम' और 'जय श्री राम' कहने को मजबूर भी किया था और बाद में जबरदस्ती उनकी दाढ़ी भी काट दी थी. ट्विटर पर कई लोगों ने इस घटना की निंदा की थी और इसे हिन्दू धर्म के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने की साजिश का हिस्सा बताया था. लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस का दावा है कि यह सब समद और उन युवकों के आपसी झगड़े की वजह से हुआ था और इसमें कोई भी सांप्रदायिक गतिविधि नहीं थी.

पुलिस का कहना है कि उसने 14 जून को ट्विटर पर ही एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह सूचना सार्वजनिक कर दी थी, जिसके बाद ट्विटर को मामले को सांप्रदायिक हिंसा बताने वाले ट्वीटों को हटा देना चाहिए. लेकिन चूंकि ट्विट्टर ने वे ट्वीट नहीं हटाए, इसलिए एफआईआर में ट्वीट करने वालों के साथ साथ ट्विटर का भी नाम शामिल कर लिया गया है. जिन लोगों का नाम एफआईआर में है उनमें राणा अयूब, सबा नकवी, मोहम्मद जुबैर जैसे जाने माने पत्रकार, 'द वायर' समाचार वेबसाइट और सलमान निजामी, शमा मोहम्मद और मस्कूर उस्मानी जैसे कांग्रेस पार्टी के नेता शामिल हैं.

सरकार सख्त

इनमें से कई लोगों ने अब अपने ट्वीटों को हटा दिया है. पत्रकार राणा अयूब ने एक नए ट्वीट में लिखा कि इस मामले पर उनके ट्वीट कई मीडिया संस्थानों द्वारा छापी गई खबरों और इंटरनेट पर पहले से चल रहे एक वीडियो के आधार पर थे. उन्होंने कहा कि अब जब पुलिस के द्वारा मामले का एक अलग वर्णन दिया जा रहा है, वह सच के सामने आने का इंतजार करेंगी. मोहम्मद जुबैर ने ट्वीट कर कहा कि वह पहले ट्वीट किए गए वीडियो हटा रहे हैं.

इस बीच केंद्रीय सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने ट्वीट कर इस बात की पुष्टि की कि ट्विटर नए दिशा निर्देशों के पालन में असफल रहा है. उन्होंने स्पष्ट रूप से यह तो नहीं कहा कि ट्विटर का कानूनी संरक्षण हटा लिया गया है, लेकिन उन्होंने कंपनी पर फेक न्यूज या भ्रामक खबरों के खिलाफ लड़ाई में मनमानी करने का आरोप लगाया. उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी विदेशी कंपनी को लगता है कि वहग अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में देश के कानून के पालन से बच जाएगी, तो ये उसका भ्रम है.

ट्विटर ने अभी तक पूरे मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

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