भारत में हैं 2000 से ज्यादा राजनीतिक पार्टियां
१४ मार्च २०१९ट्वेंटी 20 पार्टी, मदर इंडिया पार्टी, राष्ट्रीय पावर पार्टी, सभी जन पार्टी, द ह्यूमनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, द इम्पीरियल पार्टी ऑफ इंडिया, वतन जनता पार्टी ये भारत में मौजूद दो हजार राजनीतिक दलों में से कुछ के नाम हैं. आमतौर पर चुनाव के समय लोगों को कुछ ही राजनीतिक दलों का ध्यान रहता है लेकिन भारत में राजनीतिक दल की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. ज्यादातर दल वैसे आपको नजर नहीं आएंगे लेकिन चुनाव के समय इनकी भी सक्रियता बढ़ जाती है.
कितने तरह के राजनीतिक दल
भारत के निर्वाचन आयोग के अनुसार राजनीतिक दल तीन तरह के होते हैं. सबसे पहले आते हैं राष्ट्रीय दल. इस समय भारत में कुल सात राजनीतिक पार्टियों को राष्ट्रीय दल का दर्जा मिला हुआ है. ये पार्टियां हैं — भारतीय जनता पार्टी, इंडियन नेशनल कांग्रेस, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए जरूरी है कि कम से कम तीन राज्यों में 11 लोकसभा सीट जीती हो या चार राज्यों में छह फीसदी वोट मिले हों या फिर चार राज्यों में स्टेट पार्टी का दर्जा प्राप्त हो.
दूसरे नंबर पर राज्य स्तरीय दल आते हैं. निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के अनुसार ऐसे दलों की संख्या 50 है. ये वो दल होते हैं जो अपने राज्य की विधानसभा में कम से कम तीन सीट या कुल सीट का तीन फीसदी सीट जीतने में सफल होने के अलावा छह फीसदी वोट भी पाए हुए हों.
तीसरी श्रेणी में सामान्य राजनीतिक दल आते हैं, जिनका सिर्फ निर्वाचन आयोग में रजिस्ट्रेशन होता है. इस समय इनकी संख्या 2293 है.
अधिकृत दलों का फायदा
राष्ट्रीय पार्टी बन जाने पर सबसे ज्यादा फायदा चुनाव चिन्ह का होता है. पूरे देश में राष्ट्रीय पार्टी एक ही चुनाव निशान पर लड़ सकती है. इससे मतदाताओं में इस पार्टी की अलग छवि रहती है. राज्य स्तरीय पार्टी केवल अपने राज्य में एक चुनाव निशान पर लड़ सकती है. इसके अलावा इन दलों को रियायती दरो पर जमीन मिलती है, जिसपर वो अपना कार्यालय बना सकते हैं.
उत्तर प्रदेश में सरकार में शामिल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर इस वजह से नाराज चल रहे हैं कि उनके दल को अभी तक कार्यालय हेतु भवन का आवंटन नहीं हुआ है. इसी तरह पिछली 2012 में उत्तर प्रदेश की विधान सभा में पीस पार्टी के चार विधायक जीत गए और इसके अध्यक्ष डॉ अयूब ने भी अपनी पार्टी के लिए अलग सरकारी भवन की मांग उठा दी थी.
चुनाव प्रचार के लिए इनको मुफ्त में दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर समय भी मिलता है. इसके अलावा इनको फ्री में मतदाता सूची की प्रतिलिपि भी उपलब्ध कराई जाती है.
वहीं दूसरी ओर सामान्य दल जिनकी संख्या हजारो में है, उनको भी कम फायदे नहीं हैं. चुनाव के दौरान उनके उम्मीदवार को भी समान मौका मिलता है. इसमें मतगणना एजेंट, बूथ एजेंट इत्यादि शामिल हैं. कई बार देखने में आया है कि तमाम ऐसे छोटे मोटे दल किसी बड़ी पार्टी के लिए कवर अप की तरह काम करते हैं.
अकसर यह भी हो जाता है कि कई कैंडिडेट ऐसी पार्टी से खड़े होकर पूरे चुनाव का समीकरण ही बिगाड़ देते हैं. इस वजह से चुनाव के दौरान हर लड़ने वाली पार्टी का ख्याल रखा जाता है.
राजनीतिक दलों को चंदा भी मिलता है. इस बात की हमेशा आशंका रहती है कि कहीं इन राजनीतिक दलों का इस्तेमाल ब्लैक मनी को ठिकाने लगाने के लिए तो नहीं किया जा रहा है. चंदा देने पर इनकम टैक्स में छूट और चंदे की कोई सीमा न होने के कारण इन दलों का महत्व बना रहता है.
बहुत से छोटे दल, जिनका प्रभाव सीमित इलाके या जाति विशेष तक रहता है, वो चुनाव के समय बड़ी बड़ी पार्टियों के लिए सरदर्द बन जाते हैं. ऐसे में वो गठबंधन का हिस्सा भी बन जाते हैं. अगर त्रिशंकु लोकसभा या विधान सभा हुई, तो इन पार्टियों के एक भी जीते उम्मीदवार की पूछ बढ़ जाती है.
कैसे बनता राजनीतिक दल
भारत का निर्वांचन आयोग राजनीतिक दलों को रजिस्टर करता है. ये सब लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के सेक्शन 29ए के अंतर्गत होता है. इसके लिए निर्धारित प्रारूप पर राजनीतिक दल को अपना आवेदन देना पड़ता है. सभी जरूरी कागज के साथ दस हजार रुपये की फीस भी जमा करनी होती है.
रजिस्ट्रेशन से पहले अखबारों में विज्ञापन दिया जाता है जिससे अगर किसी को कोई आपत्ति है, तो वो सामने आ जाएं. चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार साल 5 मार्च 2019 को 16 और 8 मार्च 2019 को ही सात नए राजनितिक दलों ने रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन कर डाला, यानी चुनाव आते ही राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ने लगी.
क्या चुनाव भी लड़ते हैं?
ऐसा नहीं होता. इतनी भारी संख्या में राजनीतिक दल होने के बावजूद ये हमेशा चुनाव नहीं लड़ते हैं. इस समय भी 2000 के लगभग राजनितिक दल हैं. अगर पिछले लोकसभा 2014 के आंकड़े देखे तो केवल 464 राजनीतिक दलों ने चुनाव में हिस्सा लिया. जिसमें छह राष्ट्रीय दल, 39 राज्य स्तरीय दल और 419 अन्य रजिस्टर्ड दल थे. वहीं उससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में कुल दलों की संख्या, जिन्होंने चुनाव में हिस्सा लिया था वो 363 थी.
हालांकि सब राजनितिक दल चुनाव नहीं लड़ते हैं लेकिन फिर भी ये सैकड़ों की संख्या ही बहुत ज्यादा है. इससे सबसे पहला असर ये पड़ता है कि बैलट पेपर लंबा हो जाता है. अब जब ईवीएम से चुनाव होते हैं, तो एक ईवीएम में अधिकतम 16 कैंडिडेट्स का नाम आ सकता है, जिसमें नोटा भी शामिल है. अगर किसी क्षेत्र में कैंडिडेट 15 से एक भी ज्यादा हो गए, तो दूसरी ईवीएम साथ में जोड़नी पड़ेगी. वैसे ज्यादातर जगह पर कैंडिडेट 15 हो ही जाते हैं और दो मशीन हर बूथ पर लगानी पड़ती हैं.
अधिक राजनितिक दल होने से चुनाव चिन्ह की भी दिक्कत बढ़ जाती है. सीढ़ी, शंख, टीवी, बल्ला, रेडियो, फोन, मोटरसाइकिल, ट्रेक्टर, जेसीबी मशीन, छत का पंखा, कप प्लेट, कंप्यूटर और तमाम चीजें चुनाव चिन्ह के रूप में प्रयोग करनी पड़ती हैं. ऐसे में फ्री सिम्बल्स की लिस्ट लम्बी हो जाती है. ज्यादा पार्टियां, ज्यादा कैंडिडेट का मतलब है चुनाव मैनेजमेंट का खर्चा बढ़ जाता है. आदर्श आचार संहिता के लिए ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है.