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भारत में अमेरिका विरोधी लहर

१९ दिसम्बर २०१३

बहुत समय के बाद ऐसा हुआ है कि भारत के सभी राजनीतिक दल और पूरा देश किसी एक मुद्दे पर एकजुट होकर उठ खड़े हुए हैं. इस समय पूरे भारत में अमेरिका के प्रति व्यापक रोष देखने को मिल रहा है.

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Indien Neu-Delhi Aktion gegen US-Botschaft
तस्वीर: Findlay Kember/AFP/Getty Images

भारत सरकार ने पहली बार अमेरिका के प्रति जिस प्रकार का कड़ा रुख अपनाया है, वह अभूतपूर्व है. शीत युद्ध के दौरान भी जब भारत तत्कालीन सोवियत संघ का नजदीकी सहयोगी था, कभी देश भर में ऐसा अमेरिका विरोधी गुस्सा देखने को नहीं मिला. मुद्दा भारत की उप वाणिज्य दूत देवयानी खोबरागड़े की न्यू यॉर्क में हुई गिरफ्तारी और उनके साथ कथित दुर्व्यवहार है, जिसे अक्सर हर बात पर चुप रहने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने "निंदनीय" और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एवं पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने "घृणास्पद एवं बर्बर" बताया है.

देवयानी पर आरोप है कि उन्होंने संगीता रिचर्ड नाम की आया को अनुबंध के मुताबिक वेतन नहीं दिया और अमेरिका के न्यूनतम वेतन कानून का जानबूझ कर उल्लंघन किया. जब उन्हें गिरफ्तार किया गया, उस समय वह अपने बच्चों को स्कूल छोडने गई थीं. उन्हें न केवल हथकड़ी लगाकर आठ घंटे तक हवालात में नशेड़ियों और अन्य अपराधियों के साथ रखा गया, बल्कि उनकी शारीरिक एवं वैयक्तिक गरिमा का अतिक्रमण करने वाली सघन जांच भी की गई जिसमें उन्हें निर्वस्त्र करके उनके गुप्तांगों की जांच भी शामिल है. उनके राजनयिक होने के तथ्य को पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया गया.

देवयानी खोबरागड़े
तस्वीर: picture-alliance/AP

लगातार नरमी

मनमोहन सिंह सरकार का ही नहीं, उनसे पहले की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का भी रिकॉर्ड अमेरिका के प्रति अत्यधिक नरमी का रहा है. जब जॉर्ज फर्नांडिस रक्षा मंत्री थे, तब एक अमेरिकी हवाई अड्डे पर उनकी सघन जांच की गई और उनके मोजे तक उतरवा लिए गए. मीरा शंकर की भी उस समय सघन जांच की गई, जब वह अमेरिका में भारत की राजदूत थीं. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि हरदीप सिंह भी इस अनुभव से गुजर चुके हैं. इस तरह की अनेक अन्य घटनाएं हो चुकी हैं और लगभग हर साल किसी न किसी भारतीय राजनयिक के खिलाफ घरेलू कर्मचारी के साथ बदसलूकी का मामला दर्ज कर लिया जाता है. इसलिए जब देवयानी के साथ यह दुर्व्यवहार हुआ तो पूरे देश के सब्र का बांध टूट गया. भारत सरकार ने अमेरिका को स्पष्ट शब्दों में जता दिया कि उसके राजनयिकों को भी वही सुविधाएं दी जाएंगी और उनके साथ भी वही सलूक किया जाएगा जो वह भारतीय राजनयिकों के साथ करेगा.

नतीजतन अमेरिकी राजनयिकों और दूतावास को मिलने वाली विशेष सुविधाओं पर रोक लगा दी गई. अमेरिकी दूतावास की सुरक्षा के विशेष प्रबंध थे और बरसों से उसके पीछे की एक पूरी सड़क को आम जनता के लिए बंद कर दिया गया था. अब उसे खोल दिया गया है. अमेरिकी वाणिज्य दूतावास में काम करने वालों को दिये गए विशेष परिचय पत्र वापस ले लिए गए हैं और अब उनका राजनयिक का दर्जा समाप्त हो गया है, ठीक उसी तरह जिस तरह अमेरिका ने देवयानी खोबरागड़े को राजनयिक मानने से इनकार कर दिया था.

दूतावास के निकट बैरिकेड हटाया गया
तस्वीर: Findlay Kember/AFP/Getty Images

किसका है कसूर

भारत को अमेरिका का ‘रणनीतिक साझीदार' बनाने में मनमोहन सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. अमेरिका के साथ भारत के संबंध निश्चय ही बेहद महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन्हें बनाए रखने की जिम्मेदारी अकेले भारत की नहीं है. इस समय पूरे देश में चुनावी माहौल है. प्रधानमंत्री पद के लिए बीजेपी के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को कमजोर नेता मनमोहन सिंह के बरक्स मजबूत और कड़े फैसले लेने में सक्षम नेता के रूप में उभारा जा रहा है. ऐसे में देवयानी खोबरागड़े कांड पर पूरे देश में पैदा हुए रोष एवं आक्रोश को नजरंदाज करना मनमोहन सिंह के लिए संभव नहीं था. खास कर चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद. इसलिए अमेरिका के खिलाफ शायद न चाहते हुए भी उन्हें कड़ा रुख अपनाना पड़ रहा है क्योंकि अब यह मुद्दा "राष्ट्रीय स्वाभिमान और अस्मिता" का बन गया है. भारत सरकार ने अमेरिका पर ‘धोखाधड़ी' करने का संगीन आरोप भी लगाया है और देवयानी को पूर्ण राजनयिक का दर्जा देकर संयुक्त राष्ट्र स्थित स्थायी मिशन में नियुक्त कर दिया गया है.

दरअसल इस पूरे मामले में अमेरिकी विदेश विभाग की संलिप्तता है. उसके विशेष एजेंट मार्क जे स्मिथ की शिकायत पर देवयानी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. इसके ठीक दो दिन पहले संगीता रिचर्ड के पूरे परिवार को दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने वीजा देकर अमेरिका भिजवा दिया. संगीता की मां एक अमेरिकी राजनयिक के घर में काम कर चुकी हैं और पिता इस समय भी अमेरिकी दूतावास में कर्मचारी हैं. जून में संगीता अचानक लापता हो गई थीं और उनका पासपोर्ट भी रद्द कर दिया गया था. कहा जाता है कि वह अमेरिका में ही बसना चाहती हैं. भारत में सरकार, सभी राजनीतिक दल और जनता इस घटनाक्रम के पीछे अमेरिकी विदेश विभाग की साजिश देख रहे हैं.

अमेरिका ने अभी तक इस घटनाक्रम पर आधिकारिक रूप से खेद व्यक्त नहीं किया है और न क्षमा मांगी है. यदि उसने ऐसा नहीं किया, तो अगले छह माह तक भारत के साथ उसके संबंधों के सुधारने की उम्मीद नहीं की जा सकती. भारत अमेरिकी संबंधों में स्थायी तनाव आना कठिन है क्योंकि दोनों ही देशों के हित एक दूसरे के साथ जुड़े हैं, लेकिन इस समय आया तनाव और गतिरोध बना रहेगा यदि अमेरिका ने अपनी अंतरराष्ट्रीय दादागिरी वाली छवि को सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया.

ब्लॉगः कुलदीप कुमार

संपादनः अनवर जे अशरफ

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