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बलात्कार की समस्या

७ दिसम्बर २०१३

पिछले साल 16 दिसंबर को दिल्ली को एक चलती बस में एक युवती के साथ अमानुषिक हिंसा के साथ सामूहिक बलात्कार किये जाने की घटना और उसके बाद हुई उसकी मृत्यु ने राजधानी ही नहीं, पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया.

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तस्वीर: Reuters

युवा छात्र-छात्राओं के साथ-साथ आम नागरिक भी दिल्ली की सडकों पर कड़ी सर्दी, पुलिस के डंडों और तेज पानी की बौछारों की परवाह किये बगैर चार-पांच दिन तक प्रदर्शन करते हुए डटे रहे. इसके बाद बलात्कार-संबंधी कानून को और सख्त बनाया गया. मीडिया ने भी इस काम में आगे बढ़कर हाथ बंटाया और लोगों को उम्मीद बंधी कि शायद अब ऐसे जघन्य अपराधों के खिलाफ जनचेतना पैदा होगी और इनमें कमी आएगी. लेकिन यह उम्मीद पूरी नहीं हुई. दुर्भाग्यवश यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ उसकी घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई है.

हर 22 मिनट पर बलात्कार

दिल्ली से सटे गुड़गांव में पिछले दो दिसंबर को 24 घंटों के भीतर तीन बलात्कार होने की खबर है और इनमें दो मामलों में बलात्कार की शिकार नाबालिग लडकियां थीं. अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित समझी जाने वाली मुम्बई में पिछले आठ माह में बलात्कार की 237 घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें से आठ घटनाएं सामूहिक बलात्कार की थीं. जहां तक पूरे देश का सवाल है, भारत में हर 22 मिनट में एक बलात्कार होता है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख नवी पिल्लै का कहना है कि बलात्कार भारत की "राष्ट्रीय समस्या" है.

अक्सर गांवों और कस्बों में होने वाले यौन उत्पीड़न और बलात्कार की घटनाओं की तो कहीं रिपोर्ट तक नहीं होती और इस तरह वे आधिकारिक आंकड़ों से बाहर रहती हैं. अधिकांश मामलों में पीड़िता शर्म और संकोच के कारण कुछ बोल ही नहीं पाती और उसे रोकने के पीछे समाज का दबाव भी काम करता है. ऐसे मामलों में अक्सर दोष उसी के सर मढ़ दिया जाता है. जिन मामलों में पीड़ित लड़की हिम्मत दिखाती भी है, उनमें भी उसे न्याय मिलने की राह कांटों से भारी होती है. पिछले कुछ दिनों के भीतर दो ऐसे मामले प्रकाश में आये हैं जिन्होंने इस समस्या से सरोकार रखने वालों की नींद तो उड़ा ही दी है, साथ ही यह भी उजागर कर दिया है कि समाज के प्रभावशाली वर्ग के सदस्यों के दुष्कर्मों का पर्दाफाश करना कितना मुश्किल है.

जज पर लगे आरोप

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भारत में महिलाओं के शोषण के पीछे भारतीय संस्कृति और परंपरा का भी हाथ हैतस्वीर: Indranil Mukherjee/AFP/Getty Images

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ जूडीशियल साइंसेज, कोलकाता की एक स्नातक ने नवंबर को कानून की एक प्रतिष्ठित पत्रिका में एक ब्लॉग लिखा जिसमें उसने यह बताया कि पिछले वर्ष दिसंबर में जब दिल्ली समेत देश भर में बलात्कार के खिलाफ धरने-प्रदर्शन हो रहे थे, उसी समय उसके दादा की उम्र के सर्वोच्च न्यायालय के एक अवकाशप्राप्त न्यायाधीश ने एक पांच-सितारा होटल के कमरे में उसे यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया था. वह उन दिनों किसी मामले की जांच कर रहे थे और ट्रेनी के रूप में वह युवती उनकी सहायता कर रही थी. इस ब्लॉग के छपने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस आरोप की जांच करने के लिए तीन न्यायाधीशों की एक समिति गठित की.

इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है और अखबारों में छपी खबरों का कहना है कि युवती के आरोप निराधार नहीं पाये गए हैं. विवाद के केंद्र में न्यायमूर्ति एके गांगुली हैं जो पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष हैं. वह अपने को निर्दोष बताते हैं लेकिन उनके इस्तीफे की मांग लगातार उठ रही है और एक गैर सरकारी संस्था ने बुधवार को उनके खिलाफ कोलकाता पुलिस के पास शिकायत भी दर्ज कराई है.

तरुण तेजपाल पर आरोप

एक दूसरी घटना ने पूरे देश और मीडिया की आत्मा को झकझोर कर रख दिया है. तहलका के प्रधान संपादक और प्रसिद्ध लेखक तरुण तेजपाल पर आरोप है कि उन्होंने अपनी एक युवा सहयोगी के साथ गोवा में यौन दुर्व्यवहार किया. नए कानून के अनुसार इस तरह का दुर्व्यवहार बलात्कार की श्रेणी में ही आता है. यह महिला पत्रकार तरुण तेजपाल के मित्र की पुत्री ही नहीं, उनकी अपनी पुत्री की निकट मित्र भी है. घटना के कुछ दिन बाद उसने तहलका की प्रबंध संपादक शोमा चौधरी को, जो स्वयं यौन उत्पीड़न के खिलाफ लिख और बोल चुकी हैं, इस बारे में ईमेल लिखा.

लेकिन इसके बाद के घटनाक्रम से स्पष्ट हो गया कि न केवल तरुण तेजपाल ने बल्कि शोमा चौधरी ने भी इस अपराध पर काफी हद तक पर्दा डालने की कोशिश की. इस समय तेजपाल गोवा पुलिस के हिरासत में हैं. लाखों भक्तों द्वारा पूजे जाने वाले संत आसाराम बापू भी बलात्कार के आरोप में जेल में हैं और उनके पुत्र नारायण साई भी लगभग दो माह फरार रहने के बाद पुलिस की गिरफ्त में आ गए हैं.

एक सामाजिक परेशानी

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तस्वीर: AFP/Getty Images

यौन उत्पीड़न का संबंध सत्ता और अधिकार से है और बलात्कार इसका चरम रूप है. यौन उत्पीड़न की घटनाएं शक्ति प्रदर्शन के प्रयास से पैदा होती हैं और इनमें दूसरे पक्ष की इच्छा या सहमति को कोई महत्व नहीं दिया जाता. अक्सर इनमें एक पक्ष ताकतवर और दूसरा कमजोर होता है. यह शक्ति शारीरिक भी हो सकती है और आर्थिक एवं सामाजिक भी. यह दूसरे के अस्तित्व को नकारने और उसे कुचलने का भी प्रयास है. इसलिए आपसी रंजिश का बदला लेने और जातीय एवं सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में भी बलात्कार का सहारा लिया जाता है.

जो लोग यह मानते हैं कि महिलाएं पश्चिमी वस्त्र पहन कर पुरुषों को आकर्षित करती हैं और एक अर्थ में स्वयं ही यौन उत्पीड़न को आमंत्रित करती हैं, उन्हें इस सच्चाई को देखना चाहिए कि भारत में बलात्कार की शिकार होने वाली अधिकांश महिलाएं पारंपरिक वस्त्र ही पहनती हैं और यौन उत्पीड़न का संबंध सत्ता विमर्श से है, वस्त्रों से नहीं. इसलिए तरुण तेजपाल, आसाराम बापू और न्यायमूर्ति गांगुली के मामले अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे पता चलेगा कि भारतीय न्यायव्यवस्था प्रभावशाली लोगों को सजा देने में सक्षम है या नहीं.

ब्लॉगः कुलदीप कुमार

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन