बॉलीवुड में जाने को बेताब मिस अर्थ निकोल फारिया
२५ दिसम्बर २०१०मिस अर्थ का खिताब जीतने वाले पहली यह भारतीय महिला मॉडलिंग तो पंद्रह साल की उम्र से ही कर रही है. अब मौका मिलने पर बॉलीवुड में भी किस्मत आजमाना चाहती है. किसी भारतीय सुंदरी ने दस वर्षों के लंबे अंतराल के बाद कोई विश्व स्तरीय प्रतियोगिता जीती है. फारिया भले मिस अर्थ यानी धरती सुंदरी बन गई हों, लेकिन उनके पांव धरती पर ही हैं.
निकोल कहती है, "मेरे लिए मॉडलिंग बॉलीवुड में प्रवेश की सीढ़ी है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं मॉडलिंग छोड़ दूंगी." बीस वर्षीय फारिया बताती हैं कि खासकर मिस अर्थ का खिताब जीतने के बाद उन्हें बॉलीवुड से ढेरों ऑफर मिल रहे हैं. लेकिन उनको सही ब्रेक मिलने का इंतजार है. वह कहती है कि मिस अर्थ के विजेता के तौर पर अपने नाम के एलान के बाद पहले तो उन्हें भरोसा ही नहीं हुआ. उसके बाद अचानक वह खुशी से भर उठीं.
निकोल कहती है, "वह बचपन से ही अभिनय के क्षेत्र में जाना चाहती थी. मॉडलिंग इसकी पहली सीढ़ी थी. इसलिए उन्होंने मॉडलिंग शुरू की. शुरूआत में निकोल को रैंप से डर लगता था कि वह ठीक से चल पाएगी या नहीं. लेकिन सोलह साल की उम्र में पहली बार रैंप पर उतरने के बाद उनको मॉडलिंग से प्यार हो गया. उसके बाद निकोल ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. मिस फेमिना इंडिया खिताब जीतने के बाद पिता ने निकोल को मिस अर्थ प्रतियोगिता में जाने की प्रेरणा दी. निकोल कहती है कि किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए उस दिशा में ठोस प्रयास जरूरी है.
मिस अर्थ के तौर पर निकोल के कंधों पर पर्यावरण की दिशा में काम कर धरती को बचाने की अहम जिम्मेदारी भी आ गई है. वह इससे उत्साहित हैं. वह कहती है, "मेरे लिए यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. मैं इस खिताब का सही अर्थों में इस्तेमाल करना चाहती हूं. मेरा सफर तो अभी शुरू ही हुआ है. मैंने पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही कई कंपनियों के साथ करार पर हस्ताक्षर किए हैं."
मिस अर्थ कहती है कि फिलहाल कई चीजें हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं. ग्लोबल वार्मिंग इसी का नतीजा है. उनकी पहली प्राथमिकता लोगों को पर्यावरण प्रदूषण के खतरों से आगाह करना है ताकि वह लोग पर्यावरण की रक्षा में अपने अपने तरीके से योगदान कर सकें. वह बारिश के पानी के संरक्षण, जल संरक्षण, पौधे लगाने और साइकिल रिक्शा का इस्तेमाल बढ़ा कर प्रदूषण घटाने को बढ़ावा देना चाहती है. निकोल कहती है कि छोटी छोटी कोशिशों से प्रकृति का बचाव संभव है. धरती ने हमें बहुत कुछ दिया है. अब उसे इसका बदला चुकाने की बारी हमारी है.
पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में शामिल होने का अनुभव कैसा रहा, इस सवाल पर निकोल बताती है, "यह आश्चर्यजनक था. विदेश में यह मेरा पहला अनुभव था. वहां विभिन्न देशों और संस्कृतियों से 83 सुंदरियां आई थी. उनकी भाषाएं भी अलग थीं. लेकिन सबके बीच एक अपनापन था. मुझे उनके साथ घुलने मिलने और उनकी संस्कृतियों को जानने का मौका मिला. वियतनाम के लोग भी बेहद मिलनसार हैं. यह अनुभव बेहद लाजवाब था और मुझे आजीवन याद रहेगा."
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः ए कुमार