बहरीन में विदेशी सेना की तैनाती पर अमेरिका बेफिक्र
१५ मार्च २०११अमेरिका का कहना है कि विदेशी सेनाओं का बहरीन जाना 'हमला' नहीं हैं. इसलिए उसने कहा कि वह इन देशों से अपनी सेनाएं वापस बुलाने को नहीं कहेगा. बहरीन शिया बहुल देश है लेकिन वहां सुन्नी शाह का शासन है. देश में पिछले कुछ हफ्तों से सरकार विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं. मिस्र और ट्यूनीशिया की तर्ज पर वहां भी लोग सरकार के हटने की मांग कर रहे हैं.
बहरीन अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से अहम देश हैं. वहां उसकी नौसेना के फिफ्थ फ्लीट का बेस है. सोमवार को गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) में साझा सुरक्षा समझौता हुआ जिसके बाद बहरीन में सेनाएं तैनात करने का फैसला किया गया. इस बारे में अमेरिकी व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जे कारने ने कहा, "हम क्षेत्र के देशों से संयम बरतने को कह रहे हैं. हम बहरीन की सरकार और जीसीसी के बाकी सदस्य देशों से अपील करते हैं कि काबू रखें. अपनी जायज चिंताएं जाहिर कर रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ किसी तरह का बल प्रयोग न किया जाए."
क्लिंटन भी मिलीं
अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने सोमवार को पैरिस में संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्लाह बिन जायद अल-नाहयान से मुलाकात की. एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि क्लिंटन ने खतरनाक हालात पर चिंता जाहिर की और धैर्य बरतने की अपील की.
बहरीन में प्रदर्शनकारियों ने बहरीन की राजधानी मनामा के केंद्रीय हिस्से पर कब्जा कर लिया है जहां व्यापारिक गतिविधियां होती हैं. इसके बाद बहरीन में सऊदी अरब के एक हजार से ज्यादा सैनिक तैनात किए गए हैं. संयुक्त अरब अमीरात ने भी 'तनाव दूर करने के लिए' 500 पुलिसकर्मियों को भेजने की बात कही है. हालांकि जीसीसी के बाकी सदस्यों के हिस्सा लेने की फिलहाल पुष्टि नहीं हो पाई है. जीसीस में कुवैत, ओमान और कतर भी शामिल हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ए कुमार