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बस दो मिनट और सोने दो!

२८ मार्च २०१३

सारी रात जगना और दिन भर सोना, स्कूली बच्चों की इस आदत से सभी मां बाप परेशान रहते हैं. सुबह जल्दी उठ कर पढ़ने की जगह बच्चे किताब हाथ में ले कर सोना पसंद करते हैं. लेकिन इसमें बच्चों की कोई गलती नहीं!

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तस्वीर: Fotolia© auremar #47175777

रविवार को यूरोप के अधिकतर देशों में रोशनी बचाने के लिए घडियां एक घंटा आगे कर दी जाएंगी. घड़ियों में इस फेर बदल के कारण रविवार रात लोग एक घंटा कम सो पाएंगे. इससे सबसे ज्यादा दिक्कत होगी स्कूल के बच्चों को. बच्चों के लिए सुबह जल्दी उठना बहुत ही मुश्किल काम होता है. खास तौर से टीनेजर यानी 13 से 19 साल के बीच के बच्चों को. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसमें दोष उनका नहीं बल्कि उनके शरीर में हॉर्मोन्स का है.

यह उम्र ही ऐसी है

मां बाप अक्सर बच्चों की सोने की आदतों से परेशान रहते हैं. बच्चे देर रात तक जाग कर टीवी देखते हैं या कंप्यूटर के सामने बैठे रहते हैं और फिर सुबह भी देर से ही जगते हैं. सिर्फ मस्ती ही नहीं, पढ़ाई के मामले में भी उनका यही रवैया रहता है - दिन में सोना और रात में देर तक जग कर पढ़ना. दरअसल इस उम्र के बच्चों को अपनी जैविक घड़ी में किसी भी तरह का बदलाव करने के लिए अन्य लोगों की तुलना में तीन गुना ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. अलार्म बजते ही हम झट से बिस्तर छोड़ देते हैं या फिर उसके साथ जूझते रहते हैं, यह हमारी जीन संरचना पर निर्भर करता है. बर्लिन के सेंटर फॉर स्लीप मेडिसिन के डॉक्टर थोमास पेनजेल बताते हैं, "हम कितनी देर सोते हैं और नींद में हम किन चरणों से गुजरते हैं, यह उम्र के साथ बदलता है."

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शिशुओं को होती है 16 घंटे की नींद की जरूरततस्वीर: Gabees/Fotolia

दिन भर बिस्तर में

डॉक्टर पेनजेल का कहना है कि नवजात शिशुओं को करीब 16 घंटे की नींद की जरूरत होती है, जबकि 15 साल के बच्चे को करीब आठ घंटे की. प्यूबर्टी के बाद नींद कुछ ज्यादा आने लगती है. लेकिन इसके बावजूद स्कूली बच्चे देर से ही सोते हैं. उनका शारीरिक संतुलन कुछ इस तरह से है कि छुट्टी वाले दिन वे पूरा पूरा दिन बिस्तर से नहीं निकलते. स्कूल का काम, दोस्तों से गपशप, टीवी और कंप्यूटर उन्हें पूरा हफ्ता लम्बी नींद से दूर रखते हैं. लेकिन सप्ताहांत में जब स्कूल नहीं जाना होता तब ज्यादा देर सो कर वे हिसाब बराबर कर लेते हैं. माता पिता अक्सर बच्चों की इस आदत को गलत ठहराते हैं और उन्हें हर रोज जल्दी सोने और जल्दी उठने की सलाह देते हैं. लेकिन डॉक्टरों की मानें तो यह उनके हाथ में ही नहीं है.

सोते सोते पढ़ाई

बर्लिन के चारिटे अस्पताल के सेंटर फॉर स्लीप मेडिसिन की डॉक्टर हाइडी डांकर होप्फे बताती हैं, "इस तरह से सोना वाकई काम करता है. सारी रात जग कर जब आप अगले दिन सोते हैं तो आप ज्यादा अच्छी तरह सो सकते हैं." कितने घंटे की नींद शरीर के लिए जरूरी है, यह हर व्यक्ति के लिए अलग होता है, लेकिन औसतन यह छह और नौ घंटे के बीच होता है. इस दौरान हमारा शरीर कई चरणों से गुजरता है, जिन से हम रात भर गुजरते रहते हैं.

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पढ़ते पढ़ते सो जाने से चीजें नींद में भी याद रहती हैंतस्वीर: picture-alliance/dpa

इसमें तीन चरण होते हैं: लाईट स्लीप यानी कच्ची नींद, डीप स्लीप यानी गहरी नींद और रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम) यानी जिस दौरान आंख की पुतलियां हिलती रहतीं हैं. थोमास पेनजेल बताते हैं, "हर चरण की अपनी एहमियत है. डीप स्लीप इम्यून सिस्टम के लिए बहुत जरूरी है. इस से शरीर के विकास वाले हॉर्मोन्स पर असर पड़ता है ताकि हम उम्र के साथ साथ ठीक से बड़े हो सकें. आरईएम याददाश्त और पढ़ाई के लिए जरूरी है." कई बच्चे किताब हाथ में ले कर सो जाते हैं. डॉक्टर पेनजेल के अनुसार इसमें कुछ गलत नहीं है, बल्कि यह पढ़ाई का अच्छा तरीका हो सकता है, क्योंकि जब आप पढ़ते पढ़ते सो जाते हैं, तो वे चीजें आप नींद में भी याद रखते हैं.

सुबह जल्दी उठ कर पढने की नसीहतें तो बच्चे वैसे भी मुश्किल से ही मानते हैं, अब इस तरह की रिसर्च उनके हक में ही जाती दिखती है.

रिपोर्ट: मीम फिलिपसन/आईबी

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

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