"रोचक और उपयोगी है मंथन"
२२ मार्च २०१३मंथन जैसा प्रोग्राम आज भारत क्या विश्व के लिए बहुत जरूरी हैं. मंथन मैं हर हफ्ते देखता हूं. अगर आप मंथन सप्ताह में दो दिन कर दें तो बहुत अच्छा होगा.
राजबहादुर सिंह, जिला छिंदवाडा, मथ्य प्रदेश
मंथन बहुत ही शानदार प्रोग्राम है. इसमें दी गई जानकारियां बहुत ही रोचक और उपयोगी होती है. मैं टुमॉरो टुडे देखा करता था. मंथन में सवालों के जवाब देने को भी अपनाया जाना चाहिए. भारतीय दर्शकों के लिए मंथन का हिंदी संस्करण बनाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
रोहित महाले, नासिक, महाराष्ट्र
मैं मंथन के लिए दो सुझाव देना चाहता हूं. एक तो इसका समय आधा घंटा से एक घंटा कर देना चाहिए और दूसरा यह कार्यक्रम आपको रविवार को देना चाहिए. मंथन एक वैज्ञानिक शो है. शनिवार को स्कूल खुले रहते हैं और बच्चे इस प्रोग्राम को मिस कर जाते हैं और हम में से कई लोगों के लिए इस कार्यक्रम के विडियो इंटरनेट पर देखना संभव नहीं है.
रितेश सिंह
किराये पर कोख और बच्चे की गारंटी, मोबाइल पर आपकी यह रिपोर्ट पढ़ी. कैसा वक्त आ गया है. सरोगेट मां बन गयी है जो बच्चे को पैदा करके अभी यह नहीं मानती कि यह मेरा बच्चा है. सिर्फ पैसे के लिए नौ माह तक बच्चे की पीड़ा सहती रही. आज वैज्ञानिक युग ने मां की परिभाषा को ही बदल कर रख दिया है. आपकी दो और रिपोर्टे कोहेनूर नहीं लौटाएगा ब्रिटेन और प्यार की जंग लड़ता ईरानी युवा वर्ग भी काफी अच्छी लगी.
प्रकाश चन्द्र वर्मा, अम्बेडकर रेडियो लिस्नर्स क्लब, अलवर, राजस्थान
मैं डीडब्ल्यू हिंदी रेडियो का नियमित और पुराना श्रोता रहा हूं, लेकिन रेडियो कार्यक्रम बंद होने के बाद दिल को दुख पहुंचा. सीधा संपर्क नहीं रहा. आपसे जानकारी हासिल करने और संपर्क करने के लिए डीडब्ल्यू हिंदी की वेबसाइट पर आना पड़ता है. आपकी वेबसाइट आकर्षक, ज्ञानवर्धक तथा सूचनाप्रद होती है. डीडब्ल्यू हिंदी के साथ संबंध बरकरार रखने के लिए एसएमएस और ईमेल नियमित भेजता रहता हूं. मासिक पहेली प्रतियोगिता में भाग लेता हूं और अपने दोस्तों को भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता रहता हूं.
डॉं. हेमंत कुमार, प्रियदर्शिनी रेडियो लिस्नर्स क्लब, जिला भागलपुर, बिहार
तकनीक के इस बदलते वक्त में संचार के माध्यम इंटरनेट और फेसबुक आज के महत्वपूर्ण साधन हैं, लेकिन इससे जितना फायदा एक ग्रुप को होता है उतना आम आदमी को नहीं. फेसबुक अब बीमारी का आकार ले रहा है और हम 'हू केयर्स' की पॉलिसी को अपना रहे हैं.
मैं डीडब्ल्यू उस समय से सुन रहा हूं जब मैं स्कूल में था. डीडब्ल्यू से मुझे और मेरे क्लब को अनेकों उपहार मिल चुके है. हमारे काफी सारे क्लब सदस्य आपकी विशेष पहेली प्रतियोगिता में भी हिस्सा लेते हैं, परंतु किसी को भी उपहार नहीं मिला. क्या आजकल एसएमएस या ईमेल एंट्री को महत्व दिया जा रहा है?
आनंद मोहन बैन, परिवार बंधु क्लब, जिला दुर्ग, छत्तीसगढ़
संकलनः विनोद चड्ढा
संपादनः ईशा भाटिया