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पाकिस्तान के लोगों को क्यों नहीं मिल रही हैं दवाएं

अनस अहमद
२५ अक्टूबर २०२३

पाकिस्तान के लाखों लोग दवाओं की बढ़ती कीमत से परेशान हैं. इनमें से बहुत से लोगों को दवाएं काले बाजार से खरीदनी पड़ रही हैं. आर्थिक संकट ने दवा बनाने वाली छोटी कंपनियों में ताले जड़वा दिए हैं.

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महंगाई और आर्थिक संकट की वजह से पाकिस्तान के लोगों को दवाएं नहीं मिल रहीं
पाकिस्तान में दवाओं की भारी किल्लत हैतस्वीर: DW

35 साल के यासिर अली पाकिस्तान में दिहाड़ी मजदूर हैं. एक दिन में वह मुश्किल से 1200 पाकिस्तानी रुपये कमा पाते हैं. उनके भाई को मिर्गी की बीमारी है और उसे रोज दवा लेनी पड़ती है. डीडब्ल्यू से बातचीत में यासिर ने बताया मिर्गी की दवा का एक पैकेट करीब 300 पाकिस्तानी रुपये में आता है. दवा की इतनी किल्लत है कि वही दवा अब उन्हें चार से पांच गुनी ऊंची कीमत देकर खरीदनी पड़ रही है.

वह अकेले नहीं हैं जिन्हें दवाओं की इतनी ऊंची कीमत देनी पड़ रही हो. खालिद अंजुम पिछले दो दशकों से पाकिस्तान में दवा के थोक व्यापारी रहे हैं. उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि चीजें एक साल पहले की तुलना में कई गुनी ज्यादा कीमत पर बिक रही हैं. उन्होंने कीमतों को "पूरी तरह अप्रत्याशित." बताया है. खालिद ने इसके साथ ही कहा, "अब दवाओं की कमी और उनके गायब होने से हमारे सामने नई चुनौती आ गई है."

दवा की कमी से पैसे बनाता ड्रग माफिया

मौजूदा समस्या का एक बड़ा कारण है देश में भारी महंगाई. पाकिस्तान को ज्यादातर दवाएं विदेशों से आयात करनी पड़ रही हैं या फिर कम से कम उनमें इस्तेमाल होने वाली चीजें. दूसरी तरफ रुपये की कीमत गिरती जा रही है ऐसे में पाकिस्तानी कंपनियों के लिए विदेशी उत्पादकों से इन्हें खरीद पाना मुश्किल हो गया है.

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पाकिस्तान के निवर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान के सहयोगी रहे डॉक्टर फैजल सुल्तान ने डीडब्ल्यू से कहा, "अब हमारे सामने स्थिति यह है कि कई अहम दवाइयों की पाकिस्तान के बाजार में या तो कमी है या फिर दवाइयां है ही नहीं."

पाकिस्तान के कई अस्पतालों में भी दवाओं की भारी कमी है
दवाओं की जम कर कालाबाजारी हो रही हैतस्वीर: Abdul Majeed/AFP

दूसरे लोगों ने पाकिस्तान के ड्रग माफिया की ओर ध्यान दिलाया. ये वो व्यापारी हैं जो दवाओं का बड़ा भंडार जमा कर लेते हैं ताकि उन्हें दवाओं की कमी होने के बाद भारी मुनाफे पर बेच सकें.

2023 में दवा नियंत्रण अधिकारियों ने कई ठिकानों पर छापे मारे और पाकिस्तान के कई हिस्सों से दवाएं बरामद की.

अस्पतालों में जीवनरक्षक दवाएं नहीं

मरीजों को इस साल अप्रैल में बड़ा झटका तब लगा जब पाकिस्तान की सरकार ने जरूरी दवाओं की कीमत में 14 प्रतिशत और गैर जरूरी दवाओं में 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी को मंजूरी दे दी. यह फैसला सितंबर से लागू हुआ, इसका असर सीधे 80 हजार दवाओं पर हुआ.

इस कदम का उद्देश्य दवाओं और पाकिस्तान के उत्पादकों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता लगातार बनाए रखना था. दवाओं की कीमत बढाना कोई अनोखी बात नहीं थी. बीते पांच सालों के दौरान सरकार ने 15 बार इसकी मंजूरी दी.

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हालांकि एक बार में कीमत को इतना बढ़ाना और ऊपर से दवाओं के आयात की दिक्कतें और जमाखोरी की वजह से मामला उलटा पड़ गया. इस बार कीमतें बढ़ाने के बाद 200 से ज्यादा जीवनरक्षक और जरूरी दवाएं लगभग गायब हो गई हैं और आम लोगों की मुश्किलें चरम पर हैं.

देश की आर्थिक हालत बेहद खराब है और लोगों को खाना, दवाई जैसी बुनियादी चीजों को जुटाने में परेशानी हो रही है
मुफ्त भोजन के लिए कतार में लगे गरीब पाकिस्तानीतस्वीर: DW

वकील और सामाजिक कार्यकर्ता नूर मेहर ड्रग्स लॉयर फोरम के भी सदस्य हैं. उनका कहना है कि अस्पतालों पर भी बुरा असर पड़ा है. मेहर ने कहा, "लगभग 100 जीवनरक्षक दवाएं... यहां तक कि अस्पताल में भी मरीजों के लिए उपलब्ध नहीं हैं."

पेशावर का काला बाजार मजबूत हुआ

पाकिस्तान के फार्मासिस्ट एसोसिएशन के मुताबिक देश के 24 करोड़ की आबादी के लिए करीब 4,000 लाइसेंसी फार्मेसी हैं. एसोसिएशन का कहना है, "इसके अलावा एक लाख दूसरे अवैध व्यापारी भी हैं जो दवाएं बेचते हैं."

दवा व्यापारी खालिद अंजुम का कहना है कि खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत की राजधानी पेशावर में दवाओं की कालाबाजारी करने वाले अपने ग्राहकों को कोई भी दवा मुहैया करा सकते हैं.

खालिद ने डीडब्ल्यू से कहा, "ऑर्डर करने पर दवाएं एक हफ्ते के भीतर आपके घर पर डिलीवर की जा सकती हैं और यह वही दवाएं हैं जो स्थानी मेडिकल स्टोर या छाटे शहरों की फार्मेसियों में बिना पर्चे के बेची जाती हैं."

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पाकिस्तान का छोटा सा "दवा उद्योग खत्म हो चुका है" 

एक तरफ कालाबाजारी फल फूल रही है तो दूसरी ओर पाकिस्तान का घरेलू दवा उद्योग आखिरी सांसें गिन रहा है. ताजा संकट से पहले पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्से में कम से कम 600 दवा की रजिस्टर्ड फैक्ट्रियां थीं. हालांकि दवा बनाने वाली घरेलू कंपनियां विदेशी सप्लायरों पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. पाकिस्तान दवा बनाने के लिए 90 फीसदी कच्चा माल एशियाऔर दुनिया के अलग-अलग देशों से मंगाता है. इनमें जर्मनी, चीन और भारत जैसे देश भी शामिल हैं.

दवाओं की कमी से पाकिस्तान के अस्पताल भी जूझ रहे हैं
अस्पतालों में भी जीवनरक्षक दवाइयों की कमीतस्वीर: Xinhua/IMAGO

ओबैद अली ने दो दशकों तक पाकिस्तान में दवा के संघीय नियंत्रक के रूप में काम किया है. फिलहाल वह सेंटर फॉर क्वालिटी साइंसेज से जुड़े हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में ओबैद ने इस बात की पुष्टि की, "पाकिस्तान की सरकार एक भी मानक दवा घरेलू स्तर पर नहीं बना रही है."

जो दवाएं पाकिस्तान में घरेलू या विदेशी कंपनियां बना रही हैं वो अंतरराष्ट्रीय दवा के स्तर की नहीं हैं ऐसे में उनका निर्यात भी नहीं हो सकता है. इसके साथ ही आर्थिक संकट ने इन फैक्ट्रियों का अस्तित्व खतरे में डाल दिया है.

पाकिस्तान के फार्मास्यूटिकल मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन मंसूर काजी ने बताया कि करीब 200 छोटे दवा संयंत्र पाकिस्तान में जारी महंगाई और आर्थिक मुश्किलों के कारण पूरी तरह बंद हो चुके हैं. काजी ने कहा, "पाकिस्तान में लघु दवा उद्योग खत्म हो चुका है."