पाकिस्तान में गरीबी की ऐसी मार शहर छोड़ने को मजबूर लोग
१३ अक्टूबर २०२३सलमा फहीम पिछले चार महीने से अपने पति मोहम्मद से बात नहीं कर पाई हैं. मोहम्मद ने जून में अपनी पत्नी और बच्चों को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत में अपने पैतृक गांव में छोड़ दिया था क्योंकि वह कराची में अपने परिवार का खर्च उठा नहीं पा रहे थे.
सलमा को गांव में रहने के कारण कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें पानी लाने के लिए एक घंटा पैदल चलना पड़ता है और बिना गैस के लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना पड़ता है. सलमा कहती हैं, "मुझे यहां रहना पसंद नहीं है. मुझे कराची में रहना पसंद था."
एक गृहिणी के तौर पर सलमा की मुश्किलें कम होने के बजाय बढ़ गई हैं. इस बीच मोहम्मद भी इस फैसले से खुश नहीं हैं. वह कहते हैं, "कोई दूसरा रास्ता नहीं था."
आम जनता पर महंगाई की मार
आर्थिक संकट से जूझ रहे देश पाकिस्तान में रोज के इस्तेमाल की चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं. रुपये की कीमत भी लगातार कमजोर हो रही है. इसका सबसे ज्यादा असर शहरों में रहने वाले कम आय वाले परिवारों पर पड़ रहा है.
बहुत से परिवार शहर छोड़कर अपने गांवों में वापस जाने का फैसला कर रहे हैं क्योंकि वहां रहना शहर की तुलना में कम खर्च वाला है. फर्नीचर लोडर का काम करने वाले फहीम का कहना है कि उनकी मासिक आय 35,000 रुपये है और इतनी कम रकम पर गुजारा करना उनके लिए असंभव है.
इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को भी गांव भेज दिया. फहीम कहते हैं, "कम से कम मेरे पास गांव में अपना घर है, इसलिए किराया बच जाता है. लेकिन मुझे अपने बच्चों की बहुत याद आती है."
कई विकासशील देशों की तरह पाकिस्तान भी बड़ी मात्रा में तेल, गैस और अन्य वस्तुओं के आयात पर निर्भर है. पहले कोविड-19 महामारी, फिर यूक्रेन में युद्ध और फिर पिछले साल आई बाढ़ ने पाकिस्तान को आर्थिक रूप से बुरी तरह प्रभावित किया है.
ईंधन और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों ने सितंबर में मुद्रास्फीति को 31.4 प्रतिशत तक पहुंचा दिया, जो अगस्त के 27.4 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है. देश की नयी कार्यवाहक सरकार, जिसने अगस्त में कार्यभार संभाला है वह कीमतें कम करने के लिए बहुत कुछ नहीं कर सकती है.
इस साल जुलाई में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा अनुमोदित तीन अरब डॉलर के ऋण कार्यक्रम ने दिवालियापन के जोखिम को अस्थायी रूप से तो टाल दिया, लेकिन आयात प्रतिबंधों में ढील समेत बेलआउट से जुड़े सुधार हुए और ऊर्जा और ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी हटाए जाने से महंगाई और बढ़ी है.
देश में अगले साल जनवरी में होने वाले आम चुनाव से पहले राजनीतिक तनाव के कारण आर्थिक संकट भी गहरा गया है.
खर्च में कटौती ही रास्ता
निकट भविष्य में राहत की उम्मीद नहीं होने से लोग अपने खर्च में कटौती का सहारा ले रहे हैं. इसलिए कुछ लोग अपने पैतृक गांवों की ओर जा रहे हैं. पेशे से प्लंबर वसीम अनवर कहते हैं, "अपने गांव लौटने का फैसला आसान नहीं था." अनवर मई में अपनी पत्नी और पांच बच्चों के साथ लाहौर से लगभग चार घंटे की दूरी पर एक छोटे शहर में चले गए.
उनका कहना है कि उनका वेतन शहर में मकान का किराया, किराने का सामान, मेडिकल खर्च और ट्यूशन फीस को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं था. अनवर के मुताबिक, "हालांकि यहां काम के इतने अवसर नहीं हैं, लेकिन मेरे अन्य खर्चों को लगभग आधा कर देने से काफी राहत मिली है."
हाल के महीनों में ग्रामीण क्षेत्रों में लौटने वाले लोगों की कुल संख्या पर कोई निश्चित आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. गैलप पाकिस्तान के कार्यकारी निदेशक बिलाल गिलानी कहते हैं, "हमारे कई सर्वेक्षण बताते हैं कि खर्च में कटौती ही लोगों का मुद्रास्फीति की इस बाढ़ से निपटने का मुख्य तरीका है. क्योंकि उनके पास अन्य विकल्प नहीं हैं जैसे कि ओवरटाइम काम करना या पार्ट टाइम जॉब करना."
क्या कर रही कार्यवाहक सरकार
पाकिस्तान की मौजूदा कार्यवाहक सरकार ने कहा है कि उसे उम्मीद है कि मुद्रास्फीति जल्द ही कम हो जाएगी, लेकिन चेतावनी दी है कि ऊर्जा की बढ़ती कीमतों और ईंधन की कीमतों में और बढ़ोतरी के कारण नवंबर में कीमतें ऊंची रहेंगी.
कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवार-उल-हक काकड़ ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "हम अपने सीमित जनादेश के कारण देश की आर्थिक दिशा नहीं बदल सकते हैं, लेकिन हम अपने लोगों की पीड़ा को कम करने की कोशिश कर रहे हैं."
उन्होंने कहा, "अवैध विदेशी मुद्रा सट्टेबाजों, गेहूं, चीनी और उर्वरक के जमाखोरों और तेल उत्पादों के तस्करों के खिलाफ हमारी कार्रवाई सफल रही है." उन्होंने आगे कहा कि अधिकारियों ने बिजली चोरी करने वाले नागरिकों से 15 अरब रुपये से अधिक की वसूली भी की है.
गरीबों को राहत कैसे पहुंचाएं?
नीति विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को बिक्री शुल्क जैसे करों को कम करके लक्षित सब्सिडी प्रणाली शुरू करके अल्पावधि में गरीब परिवारों की मदद करनी चाहिए, जिससे राजकोषीय घाटे को कम करने में भी मदद मिल सकती है.
कराची स्थित कलेक्टिव फॉर सोशल साइंस रिसर्च के निदेशक हारिस गजदार का कहना है कि लक्षित ऊर्जा सब्सिडी और भी बड़ा अंतर ला सकती है अगर वे एक विशिष्ट समूह के लिए निर्धारित की जाएं.
गजदार ने कहा, "रिवर्स माइग्रेशन" की हालिया प्रवृत्ति का तत्काल बड़ा आर्थिक प्रभाव नहीं होगा, क्योंकि अर्थव्यवस्था में तेजी आने के बाद श्रमिक वर्ग शहरों में लौट आएगा. इससे दीर्घकालिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं, उदाहरण के लिए इस दौरान कई बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा."
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)