नानी की कहानी सुनाते बिजनेसमैन
१० मई २०१३दक्षिण भारत के पनयाकोट्टेई में स्कूल के कुछ बच्चे चेन्नई से आए मेहमानों को घेरकर खड़े हैं. स्कूल में मैदान के एक कोने में कुछ बूढ़ी महिलाएं चुपचाप बैठी हैं. चेन्नई से आए मेहमान उनकी कहानियां सुनेंगे और कहानी सुनाने के उनके खास तरीके का विश्लेषण करेंगे.
इनमें से एक हैं 80 साल की अयम्मा. सफेद साड़ी पहनी अयम्मा के बाल भी सफेद हैं, उन्हें लड़कों की तरह छोटा काट दिया गया है. अयम्मा की आवाज बुढ़ापे से कांपती तो है, लेकिन कहानी सुनाते वक्त उनका भावुक अंदाज लाजवाब है.
स्कूल के बच्चे और मेहमान अयम्मा की कहानी बड़े ध्यान से सुनते हैं. अयम्मा राजा हरिश्चंद्र की कहानी सुना रही हैं. हरिश्चंद्र से एक साधु नाराज हो गए थे और इस वजह से उन्हें अपना साम्राज्य, धन और परिवार छोड़ना पड़ा था. अयम्मा कहानी सुनाते वक्त गीत भी गाती हैं. अयम्मा के कहानी सुनाने के तरीके को तमिल में कदईयुम पाट्टुम कहते हैं. कदई का मतलब कहानी और पाट्टु का मतलब गाना होता है. तमिल नाडु की यह पुरानी परंपरा है. इन कहानियों में राजा और रानियों, शिकारियों या जानवरों की बात होती है. ज्यादातर कहानियों से सीख भी मिलती है, ताकि बच्चे चोरी करने या झूठ बोलने से बचें. हर गांव अपने खास अंदाज से कहानी सुनाता है. कुछ दशकों पहले तक माएं और नाना नानी अपने परिवारों में बच्चों को यह कहानियां सुनाया करते थे.
सुनने का शौक
कई साल पहले अयम्मा ने हरिश्चंद्र की कहानी सुनी. उस वक्त उनके गांव में हरिश्चंद्र पर आधारित एक नाटक का आयोजन हुआ. उन्हें यह इतना पसंद आया कि वह अकेले में भी इसके गीत गाती रहतीं. आजकल इस तरह के नाटकों का आयोजन भी कम होने लगा है. अयम्मा कहती हैं कि उनके नाती को इस तरह की कहानियां पसंद नहीं आतीं. उन्हें जानवरों की कहानियों में मजा आता है.
ज्ञानसुंदरी 52 साल की हैं और उनका पांच साल का पोता भी कहानियां सुनना नहीं चाहता. उनकी बेटी पास के शहर में रहती हैं और ज्ञानसुंदरी को बच्चे के साथ कम वक्त मिलता है. जब उनका पोता आता है तो वह रात को उसे लोरियां सुनाती हैं लेकिन दिन में वह टीवी देखना पसंद करता है. "मैं अपनी बेटी से कहती हूं कि वह अपने बच्चों को कहानियां सुनाया करे." ज्ञानसुंदरी का मानना है कि इससे बच्चे बैठकर सुनना सीखते हैं. ज्ञानसुंदरी ने उनकी जानकारी में सारी कहानियों को अपनी बेटी को लिखकर दे दिया है.
पनयाकोट्टेई गांव की बैठक में 35 साल की भानुमति सात देवियों की कहानी सुना रही हैं. वह कहती हैं कि 15 से 20 साल के उनके बच्चों को इनमें कोई दिलचस्पी नहीं. उन्हें लगता है कि बच्चों को कहानियां सुनाना जरूरी है लेकिन बच्चे उनका मजाक उड़ाते हैं और कहते हैं कि उन्हें ऐसी पुराने जमाने वाली कहानियां अच्छी नहीं लगतीं. भानुमति का अनुभव भारत के ज्यादातर शहरों में देखने को मिलता है. अब गांव भी इससे नहीं बच पा रहे. सैटेलाइट टीवी के जरिए अब हर घर में सीरियल देखे जाते हैं और परंपरा को इससे नुकसान हो रहा है.
ज्यादातर युवा पढ़ाई और नौकरी गांवों को छोड़कर शहर जा रहे है. इसकी वजह से युवा अपनी परंपरा से और दूर हो जाते है. डीडब्ल्यू से बात कर रहे एक तमिल युवक ने कहा, "हमारी पीढ़ी को कहानी सुनना पसंद नहीं, हम फिल्में देखना पसंद करते हैं."
लेकिन अब भी सारे युवा ऐसा नहीं सोचती. कई का मानना है कि केवल किताबें पढ़ने और इंटरनेट से जीवन के मूल्यों को सीखा नहीं जा सकता. अगर समाज या परिवार में बड़े बुजुर्ग इनके बारे में बताते हैं तो समझने में आसानी होती है.
पुरानी परंपरा और नई सोच
कहानी सुनाने की नानी की आदत अब शोधकर्ताओं के काम आ रही है. लोककथा विशेषज्ञ एरिक मिलर चन्नेई से पनयाकोट्टेई आए हैं और लोगों के बीच इन परंपराओं को लेकर जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं. मिलर का कहना है कि लोककथाओं के जरिए लोगों में संपर्क की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है, "यह दिलचस्प और मजेदार है और कहानी सुनने के बाद लोग बहस करते हैं कि यह किस चीज के बारे में था. लोग अच्छा महसूस करते हैं औरयह बौद्धिक और भावना के स्तर पर अच्छा है. ज्यादातर लोगों को यह पसंद आता है."
मिलर अब लोगों को कहानी सुनाने की शैली सिखा रहे हैं. इनमें कॉलेज के छात्र और उद्योगी भी हैं. लोककथा की परंपरा को अब भाषा और बोलचाल बेहतर करने में लगाया जा रहा है. कॉरपोरेट ट्रेनिंग भी अब नानी की कहानी को अपनी रणनीति में शामिल कर रही है.
रिपोर्टः पिया चंदावरकर/एमजी
संपादनः आभा मोंढे