दो करोड़ साल पुरानी झील के राज
७ फ़रवरी २०१२इस झील तक पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों को बर्फ में करीब चार किलोमीटर गहरा छेद करना पड़ा. लेक वोस्तोक अंटार्कटिका की सबसे बड़ी सबग्लेशियल झील है. वैज्ञानिक झील के नीचे के जीवन के बारे में जानकारी हासिल करना चाहते हैं. उनका मानना है कि ऐसा करने से वे नए प्रकार के सूक्ष्मजीवों के बारी में जानकारी पा सकेंगे.
रूस की आरआईए समाचार एजेंसी को एक सूत्र ने इस बारे में बताया,"हमारे वैज्ञानिकों ने 3768 मीटर तक छेद किया तब वह झील की सतह तक पहुंच पाए हैं." आर्कटिक एंड अंटार्कटिक साइंटिफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रवक्ता सेर्जी लेसेनकोव ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा कि यह एक "महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि" है. लेसेनकोव ने कहा कि झील के ऊपर बर्फ में गैस के बुलबुले मिले हैं. यह जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए हो रहे शोध में मददगार साबित होंगे, "क्योंकि इसकी निचली सतह चार लाख साल पहले बनी, इसलिए गैस के अणुओं की सरंचना को देख कर पता किया जा सकता है कि चार लाख साल पहले वातावरण कैसा था. इसी के आधार पर जलवायु परिवर्तन को पहचाना जा सकता है और भविष्य में होने वाले बदलावों का अनुमान लगाया जा सकता है."
हालांकि अब तक इसकी आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं की गई है. सूत्रों का कहना है कि सरकार को जल्द ही इसकी घोषणा करेगी. एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्टिन सीगर्ट ने इस बारे में कहा, "अगर यह सच है और यह सफल है तो यह एक मील का पत्थर साबित होगा. रूसियों के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि वे कई सालों से इस पर काम कर रहे हैं." सीगर्ट ने कहा कि लेक वोस्तोक में मौजूद जीवों के बारे में जानकारी मिलने से वैज्ञानिक यह भी समझ पाएंगे कि क्या सौर मंडल में अन्य जगहों पर भी जीवन मौजूद है. लम्बे समय से वैज्ञानिक इस बात पर चर्चा करते आए हैं कि क्या बृहस्पति और शनि के चांद पर भी जीवन हो सकता है. यहां भी झीलें पाई गई हैं और वे लेक वोस्तोक जैसी ही हैं.
1957 में पहली बार पूर्व सोवियत संघ के एक वैज्ञानिक ने इस झील के होने का दावा किया था. 1989 में इस पर काम शुरू किया गया और 1996 में पहली बार इसके होने की पुष्टि की गई.
रिपोर्ट: एएफपी/ईशा भाटिया
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