1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

तालिबान से बातचीत के लिए शांति परिषद

७ अक्टूबर २०१०

अफगानिस्तान में युद्ध की शुरुआत की नौवीं वर्षगांठ के दिन राष्ट्रपति हामिद करजई ने एक शांति परिषद का गठन किया है और इस्लामी कट्टरपंथी तालिबान से हिंसा त्यागने की अपील की है.

https://p.dw.com/p/PYkE
तस्वीर: DW

विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से बना शांति परिषद सरकार से स्वतंत्र होगा और कट्टरपंथी तालिबान विद्रोहियों के साथ हथियार डलवाने के लिए बातचीत करने की कोशिश करेगा. तालिबान ने अफगान सरकार से बातचीत करने से मना कर दिया है.

अफगान राजधानी में अत्यंत सुरक्षा वाले राष्ट्रपति भवन में 70 सदस्यों वाली शांति परिषद को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति करजई ने कहा, "हर प्रांत, हर जिले और हर गांव में उम्मीद की जा रही है कि आपके प्रयासों से स्थायी शांति संभव होगी." राष्ट्रपति ने शांति परिषद को अपनी सरकार के पूरे समर्थन का भरोसा देते हुए कहा, "देश की सेवा के इच्छुक विपक्ष को, चाहे वह तालिबान हो या कोई और, हम इस मौके का इस्तेमाल करने और सहयोग करने की अपील करते हैं."

शांति परिषद का गठन इस्लामी विद्रोहियों के साथ बातचीत के जरिए शांति की स्थापना की राह पर राष्ट्रपति करजई की सबसे महत्वपूर्ण पहलकदमी है. इसके गठन का फैसला जून में काबुल में हुए शांति जिरगा में हुआ था.

तालिबान के साथ बातचीत से शांति की उम्मीद की जा रही है तो उसे सिर्फ समर्थन नहीं मिल रहा है . काबुल के राजनीतिशास्त्री सैफुद्दीन सायहून कहते हैं कि उन्हें विश्वास है कि बातचीत अफगान जनता की कीमत पर होगी.

तालिबान ने हमेशा ही नाटो के नेतृत्व वाली सेना की वापसी को बातचीत की शर्त बताया है. तालिबान शासित अफगानिस्तान के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व वाली सेना की कार्रवाई शउरू होने की नौवीं वर्षगांठ पर तालिबान ने अपना विरोध दुहराया है और देश के 75 फीसदी हिस्से पर कब्जा होने का दावा किया है. तालिबान के एक बयान में कहा गया है, "अमेरिकियों और उनके साथियों के खिलाफ जिहाद और प्रतिरोध पहले से कहीं अधिक मजबूत है."

उधर अफगान रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय सैनिकों की पूरी वापसी पर कोई बहस नहीं होगी.

अमेरिकी दैनिक वाल स्ट्रीट जरनल ने तालिबान कमांडरों और अमेरिकी प्रतिनिधियों के हवाले से कहा है कि तालिबान के बातचीत को अस्वीकार करने के फैसले को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का समर्थन है. उनके अनुसार पाकिस्तानी एजेंट तालिबान को बातचीत में हिस्से लेने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं. कुनार प्रांत के एक तालिबान कमांडर ने अखबार को बताया है कि आईएसआई अफगान विद्रोहियों से असैनिक लक्ष्यों पर भी हमला करवा रही है. जो उनके आदेश को नहीं मानता है उसे गिरफ्तार किए जाने की धमकी दी जाती है.

पिछले दिनों में अफगान सरकार और तालिबान लड़ाकों के बीच गोपनीय बातचीत की खबरें आई हैं. करजई काफी समय से शांति वार्ताओं का पक्ष ले रहे हैं. एक ब्रिटिश दैनिक ने गुरुवार को लिखा है कि अफगान और अमेरिकी सरकारों ने हाल में नाटो के सबसे गंभीर दुश्मन हक्कानी गुट से संपर्क किया है. हक्कानी नेतृत्व उत्तरी वजीरिस्तान में स्थित है. यह पूछे जाने पर कि क्या हक्कानी और अफगान तथा अमेरिकी सरकारों के बीच बात चल रही है, एक पाकिस्तानी अधिकारी ने सिर्फ इतना कहा, "आप गलत नहीं हैं." उधर अफगान पाकिस्तान सीमा पर अमेरिकी ड्रोन हमलों के कारण पाकिस्तान और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ रहा है. अमेरिका का कहना है कि पाकिस्तान सीमा पर कबायली इलाके में विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: ए जमाल

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें