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जोखिम भरा है कुंभ आयोजन

१४ फ़रवरी २०१३

पचपन दिनों में 10 करोड़ से अधिक लोगों का आना-जाना. रुकना-नहाना और धार्मिक रस्मो रिवाज. कुंभ के इतने बड़े इंतजाम में हाथ पैर फूल जाते हैं. इसीलिए सरकार दिल खोल कर खर्च करती है.

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तस्वीर: DW/S. Waheed

कुंभ पर उत्तर प्रदेश सरकार ने करीब 1200 करोड़ रुपये खर्च किये लेकिन फिर भी 36 श्रद्धालुओं को बेमौत मरने और 50 से अधिक के घायल हो जाने से बचाया नहीं जा सका.

मौनी अमावस्या पर कुंभ नगर विश्व का सबसे बड़ा, तीन करोड़ से अधिक की आबादी वाला धार्मिक शहर बन गया . वैटिकन, मक्का और येरुशलम तो दूर दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाली जापान की राजधानी टोक्यो से भी सवा करोड़ से ज्यादा लोगों वाला कुंभ नगर, और तीन करोड़ लोगों के स्नान के लिए सारी व्यवस्था आस्थायी. ये व्यवस्था नहीं चरमराई, क्योंकि सरकार का सारा जोर मेला क्षेत्र के अंदर तक ही सीमित हो गया. आवागमन की सुविधाओं को नजरअंदाज कर दिया गया. श्रद्धालुओं की करीब 20 लाख की भीड़ के लिए इलाहाबाद जंक्शन पर 24 घंटे में सिर्फ 250 ट्रेनें मौजूद थीं. हद तो ये कि लखनऊ के लिए सिर्फ तीन स्पेशल ट्रेने चलीं. मौनी अमावस्या पर 6000 बसें चलनी थीं पर चलीं मात्र 3440. इनको इलाहाबाद नहीं जाने दिया गया, चारों दिशाओं पर शहर की सीमा से 10-15 किलोमीटर पहले ही आस्थायी बस अड्डों पर रोक दिया गया. नतीजा, थके मांदे श्रद्धालु रेल के लिए स्टेशन पहुंच गए.

Indien - Massenpanik in Allahabad
तस्वीर: DW/S. Waheed

हादसे के बाद मचे घमासान में कोई नहीं बता पाया कि ये कैसे हो गया. न सरकार, न मंत्री, न अफसर. केंद्रीय रेल मंत्री पवन बंसल रेलवे को जिम्मेदार नहीं मानते. इलाहाबाद पहुंच कर उन्होंने कहा, "स्टेशन पर पर्याप्त व्यवस्था थी."

उत्तर प्रदेश के गवर्नर बीएल जोशी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव घायलों का हाल चाल पूछ आए हैं. दुर्घटना का जिम्मेदार कौन है, यह कोई नहीं बता रहा है. सरकारी हलकों में कहा जा रहा है कि मेला क्षेत्र की ही जिम्मेदारी यूपी सरकार की है. रेलवे ने जांच बिठा दी है. एक महीने बाद रिपोर्ट आएगी. पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री राम अरुण के मुताबिक भीड़ के रेले को थोड़ी थोड़ी दूर पर रोकना और जिग जैग आवागमन प्लान से ही इतनी बड़ी भीड़ को नियंत्रित किया जा सकता है. दुर्भाग्य से इस कुंभ में ये प्रक्रिया नहीं अपनाई गई. प्रबंधशास्त्र के प्रोफेसर एके सिंह के मुताबिक भीड़ नियंत्रण की कोई रूल बुक नहीं होती, ये सब इस पर निर्भर करता है कि इवेंट मनेजमेंट कैसे किया गया है, "टीवी पर जो देखा उससे साफ है कि श्रद्धालुओं के प्रति प्रशासन का रवैया संतोषजनक नहीं था."

Indien - Massenpanik in Allahabad
तस्वीर: DW/S. Waheed

अफसोसनाक

दुर्घटना के कई दिन बाद तक इलाहाबाद के अस्पताल, रेलवे स्टेशन और इधर उधर घायलों के बीच दर्जनों लोग रोते बिलखते अपने खो गए परिजनों को तलाशते रहे. करीब 10000 लोग लापता हुए. इनके रिश्तेदार बदहवास इधर-उधर भटकते रहे और प्रशासनिक अफसर मुंह छिपाते अपनी नौकरी में मशगूल. चीख-पुकार, आहें-कराहें और दौड़ा-भागी के बीच उचक्कों का मन डोला और कुचल कर मर गईं औरतों के जेवर भी वे नोच ले गए. जो मरे उनमें से दर्जन भर की शिनाख्त ही नहीं हो पाई और लापता हजारों के बारे में कोई कुछ भी बोलने की हालत में नहीं है.

अकबर के जमाने से

मुगल शहंशाह अकबर ने कुंभ के लिए संगम किनारे गंगा तट पर बांध और एक किला बनवाया. किला मौजूद है. ब्रिटिश शासकों ने मेले को लेकर 1938 में खास कानून पास किया. ब्रिटिश काल में संगम पर रेलवे स्टेशन भी बनाया गया जिससे श्रद्धालु सीधे मेले में आते थे. इसकी पटरियां अभी भी मौजूद हैं. 1954 में इन्ही रेल पटरियों पर आई ट्रेन से उतरते हुए हुई भगदड़ के बाद संगम तक रेल बंद कर दी गई.

रिपोर्टः एस वहीद, लखनऊ

संपादनः ए जमाल

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