कुंभनगर का बसना उजड़ना
३० जनवरी २०१३पौष पूर्णिमा के बाद लाखों श्रद्धालुओं ने कुंभ में एक महीने का कल्पवास शुरू किया है. कुंभ के दो हफ्ते बीत चुके हैं. श्रद्धालु आ-जा रहे हैं, लेकिन कुंभ उसके बसने-उजड़ने की कहानी अपने आप में अनोखी है. दुनिया में शायद ही ऐसा कहीं होता हो. यूपी सरकार हर बारहवें साल संगम किनारे एक अस्थाई शहर बसाती है करीब तीन-चार महीने तक यहाँ सारी जरूरी नागरिक सुविधाएं मुहैय्या कराती है और फिर अगले 12 वर्षो पर यही प्रक्रिया दोहराती है. ऐसा शायद कहीं नहीं होता है कि हर बार शहर को बसाने और उजाड़ने की बाकायदा राजाज्ञा जारी की जाती है इससे जुड़े दर्जन भर से अधिक शासनादेश जारी किये जाते हैं. इनके आधार पर सैकड़ों निर्माण कराए जाते हैं. हर बार कुंभ के लिए डीएम, एसएसपी की बाकायदा तैनाती होती है और मेला प्रशासक अलग से नियुक्त होता है.
इस बार कुंभ सबसे अधिक दिन यानी करीब 55 दिनों का पड़ा है और करीब 10 करोड़ श्रद्धालु इस कुंभ में भाग लेंगे जिनमें करीब एक लाख विदेशी श्रद्धालु भी होंगे. अबकी कुंभ के लिए बजट भी अधिक है और सरकारी ताम झाम भी. इस बार 1,936,56 हेक्टेयर भूमि को कुंभ मेला क्षेत्र घोषित किया गया है, इसे 14 सेक्टरों में विभाजित किया गया है ताकि प्रशासनिक कार्यों को बेहतर तरीके से अंजाम दिया जा सके. करीब एक साल पहले से ही कुंभ की तैयारी शुरू हो जाती है. इस कुंभ के लिए केंद्र सरकार ने करीब 1000 करोड़ रूपये की सहायता यूपी सरकार को दी है. यूपी और केंद्र सरकार के लगभग 1000 अधिकारी कुंभ की व्यवस्था संभाल रहे हैं और करीब 28 हज़ार कर्मचारी भी जुटे हैं.
बुलेट प्रूफ जैकेट और एके-47 जैसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस सुरक्षा कर्मचारी भी मेले में खूब नजर आते हैं. आईबी, एटीएस, एसटीएफ, कमांडो, महिला कमांडो, आरएएफ, सीआरपीएफ, उत्तराखंड पुलिस, जल पुलिस, 3000 ट्रैफिक पुलिसकर्मी और यूपी पुलिस मिलाकर करीब 25 हजार पुलिसकर्मी भी यहाँ तैनात हैं. इनमें 125 कंपनी केंद्रीय बल शामिल है. कुंभ नगर में 89 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं और बाकी 28 अन्य स्थानों पर, 56 वाच टावर और 30 पुलिस आउट पोस्ट बनाए गए हैं. यूपी के एडीजी (ला एंड ऑर्डर) अरुण कुमार मेला क्षेत्र में घूम घूम कर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेते रहते हैं.
बम निरोधक दस्ते के साथ साथ नेशनल सिक्युरिटी गार्ड की टीम भी यहां मौजूद है. एंटी माइन्स दस्ता भी है. मेले में 6 पार्किंग बनाई गई है, एक 100 बिस्तर वाला अस्पताल बनाया गया है जहाँ आईसीयू भी है. इसके अलावा हर सेक्टर में स्वास्थ्य सेवाएं मौजूद हैं. टूरिज्म डिपार्टमेंट का दावा है कि उसने 180 पोर्टर्स समेत 4000 लोगों को कुंभ के लिए प्रशिक्षण दिया है. करीब डेढ़ हजार ड्राइवर्स को भी विशेष ट्रेनिंग दी गई है. यूपी सरकार करीब 6000 बसें चला रही है. तीन अस्थाई बस स्टेशन बने हैं और अखाड़ों और दुकानों को छोड़ करीब आठ लाख टेंट लगे हैं. शायद सरकार के कहने या फिर मुनाफा कमाने के लिए भारतीय डाक, रेलवे और बीएसएनएल जैसे बड़े बड़े सेवा प्रदाता भी हर कुंभ में अपनी मौजूदगी जरूर दर्ज कराते हैं.
ये सब इतनी बड़ी अस्थाई व्यवस्था है जो बस जनवरी से मार्च तक के लिए की गई है. इस पर करीब 1200 करोड़ रुपये सिर्फ सरकारी कोष से खर्च हुए हैं. अखाड़ों के बसने-उजड़ने का हिसाब किताब किया जाए तो ये रकम लगभग 2000 करोड़ तक पहुंच जाती है. इतनी बड़ी धनराशि सिर्फ अस्थाई कामों के लिए खर्च की जाती है.. मेला प्रशासक मणि प्रसाद मिश्र इस सवाल पर अवाक हैं कि क्या स्थाई कुंभ नगर नहीं बसाया जा सकता. इस बारे में लखनऊ में शासन स्तर पर भी कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं होता. जबकि यूपी में एक स्थाई जिला बनाने में 1000-1200 करोड़ की धनराशि का खर्च आता है. मेला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी सुधीर कुमार पिछले साल भी मेले का काम देख रहे थे, इस पर कुछ नहीं कहते.
मेला तैयारियों के लिए हैदराबाद से विशेष रूप से बुलाए गए एस सी मेढ़ इसे परंपरा कहकर टाल देते हैं. वे भी चार कुंभ कर चुके हैं. साधु-संत भी कुछ नहीं बोलते. इलाहाबाद के ज्योतिषाचार्य प्रमोद शुक्ल के मुताबिक यही रीति रही है और धार्मिक कामों के अपने नियम कानून होते हैं. सरकारें व्यवस्था बनाने के लिए ही होती हैं बाकी सब धर्माचार्य तय करते हैं. उनके मुताबिक इसमें सरकार कुछ कर ही नहीं सकती. लेकिन इलाहबाद के एक टेंट हॉउस का कर्मचारी गोविन्द कहता है कि खाने-कमाने का भी कुंभ होता है यहाँ हर 12 साल बाद.
रिपोर्ट: एस वहीद, लखनऊ
संपादन: महेश झा