जरा सावधान रहे भारतः सू ची
१३ नवम्बर २०१२कभी दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर चुकी म्यांमार की विपक्षी नेता सू ची 1987 के बाद पहली बार इस शहर में आईं हैं. सू ची की मां नई दिल्ली में म्यामांर की राजदूत थीं. मां के साथ रहते हुए सू ची ने दिल्ली में पढ़ाई भी की है.
मंगलवार को दिल्ली पहुंची सू ची ने एक अखबार से बातचीत की. बातचीत में उन्होंने म्यांमार की दशा पर निराशा जाहिर की. म्यामांर 2010 से लोकतंत्र की राह पकड़ने की कोशिश भी कर रहा है. सैन्य शासन जुंटा धीरे धीरे देश की कमान विधायिका को देते दिखाई पड़ रहा है. इसी साल हुए चुनावों में सू ची की पार्टी को अच्छी सफलता भी मिली. 46 सीटों के लिए हुए उपचुनावों में सू ची की पार्टी 44 जगह मैदान में उतरी और 43 सीटें जीत लीं.
अप्रैल में हुए चुनावों के महीने भर बाद भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने म्यामांर की यात्रा की. म्यांमार पर चीन के प्रभाव को देखते हुए सिंह ने व्यापार बढ़ाने पर जोर दिया. भारत और म्यांमार के बीच तब 12 समझौते हुए, इनमें सुरक्षा, सीमा से सटे इलाकों में विकास, व्यापार और परिवहन के समझौते थे.
सू ची भारत के इस रुख से दुखी हैं. उनके मुताबिक भारत को म्यांमार की दिखावटी सरकार के बहकावे में नहीं आना चाहिए. भारतीय अखबार द हिंदू से बातचीत में उन्होंने कहा, "मैं निराशा के बजाए दुख शब्द का इस्तेमाल करूंगी क्योंकि भारत के साथ मेरा निजी लगाव है. दोनों देशों के बीच काफी नजदीकी है."
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता सू ची ने कहा, "अति आशावादी न रहें, लेकिन इतना साहस अवश्य होना चाहिए जिस चीज को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, उसे प्रोत्साहित करें. अति आशा से मदद नहीं मिलती है क्योंकि ऐसे में आप गलत चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं. नजरअंदाजी ठीक नहीं है और ठीक न होना ही गलत है."
सू ची मानती है कि भारत और म्यांमार के कारोबारी रिश्ते बहुत मजबूत हो सकते हैं. उनके मुताबिक म्यांमार से सटी भारत की पूर्वी सीमा पर 'सही ढंग से निवेश' किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "यह बात ध्यान में रखें कि हमने लोकतंत्र के रास्ते पर अभी शुरुआत ही की है और जैसा कि मैं बार बार कहती हूं यह रास्ता हमें खुद बनाना है. यह तैयार होकर हमारा इंतजार नहीं करेगा."
बुधवार को सू ची भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात करेंगी. वह जवाहर लाल नेहरू स्मारक में लोगों को संबोधित भी करेंगी. शुक्रवार को वह दिल्ली यूनिवर्सिटी की श्रीराम कॉलेज जाएंगी. सू ची ने 1964 में श्रीराम कॉलेज से राजनीति शास्त्र में स्नातक किया है. आखिरी बार वह शिमला में पढ़ाई कर रहे अपने पति से मिलने भारत आई थीं.
तब से अब तक हालात काफी बदल चुके हैं. लोकतंत्र की समर्थक सू ची अब 67 साल की हो चुकी है. म्यामांर में हुए 1990 के चुनावों में 80 फीसदी सीटें जीतने के बावजूद सत्ता से दूर रखी गई सू ची 15 साल नजरबंदी में काट चुकी हैं. 2010 में नजरबंदी से आजाद हुई सू ची इन दिनों दुनिया भर के दौरे पर हैं. लोकतंत्र की राह पर चलने की कोशिश करते म्यांमार से अब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने कई प्रतिबंध हटा भी दिए हैं. अमेरिका, यूरोप, चीन और भारत के कारोबारी वहां निवेश करना चाहते हैं.
ओएसजे/एनआर (एएफपी)