कश्मीर के सेब उद्योग पर जलवायु परिवर्तन के कारण खतरा
१९ अगस्त २०२२तापमान में उतार-चढ़ाव की वजह से भारत प्रशासित कश्मीर को बेमौसम बर्फबारी और समय से पहले गर्मी का सामना करना पड़ रहा है जिसकी वजह से सेब के बगीचों को काफी नुकसान हुआ है. सेब के उत्पादन में करीब तीस फीसदी की कमी ने इस इलाके के सबसे बड़े उद्योग को तगड़ा झटका दिया है और कई किसान परिवारों पर काफी कर्ज हो गया है.
कश्मीर में करीब दस लाख परिवार सेब की खेती और उससे जुड़े व्यवसाय में लगे हैं. कश्मीर में सेब उद्योग करीब 12.5 लाख डॉलर का है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल यहां 18 लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हुआ था जो कि उससे पहले साल हुए उत्पादन से करीब एक लाख मीट्रिक टन कम था.
सेब किसान महसूस कर रहे हैं गर्मी की तपिश
सेब उत्पादकों का कहना है कि अचानक तापमान गिरने से कलियां झड़ जाती हैं और इस वजह से परागण के लिए मधुमक्खियां नहीं आ पातीं. दूसरी ओर, तापमान अचानक बढ़ने की वजह से पेड़ों में संक्रामक रोग लग जाते हैं जिसकी वजह से उत्पादन गिर जाता है.
मार्च में दिन का औसत तापमान करीब 15 डिग्री सेल्सियस रहता है लेकिन इस साल मार्च में तापमान इससे काफी ज्यादा रहा जिससे कश्मीर में सेब की फसल जल्दी आ गई. इसके बाद तापमान में तेज उतार-चढ़ाव के कारण कलियां झड़ गईं और संक्रामक रोग फैलने लगे.
किसानों ने शिकायत की है कि लगातार जारी गर्म हवाओं और नमी की वजह से सेबों के ऊपर काले धब्बे दिखने लगे हैं जिसकी वजह से फसल की गुणवत्ता में कमी आई है. विशेषज्ञों ने इस बीमारी को सूटी ब्लॉच एंड फ्लाईस्पेक नाम दिया है.
उत्तरी कश्मीर के बारामुला जिले में जाने-माने सेब उत्पादक की पत्नी शमीमा हसन कहती हैं, "पिछले चार वर्षों ने हमें बुरे सपने दिए हैं. मौसम के बदलते मिजाज के चलते सेब की फसल बीमारियों की चपेट में आ गई है. फसल अच्छी होगी तो यह बीमारियों से प्रभावित होगी.”
डीडब्ल्यू से बातचीत में शमीम हसन कहती हैं कि लगातार हो रहे नुकसान के चलते उनकी आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है. वो बताती हैं कि आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते उन्हें अपनी बेटी को निजी स्कूल से निकालकर उसका दाखिला सरकारी स्कूल में कराना पड़ा जहां पढ़ाई तो मुफ्त है लेकिन पढ़ाई की गुणवत्ता ठीक नहीं है.
चौपट कारोबार
भारत प्रशासित कश्मीर का उत्तरी हिस्सा सेब के कटोरे के रूप में जाना जाता है जहां सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले सेबों का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है. कई दशकों से सेब बागान करेवा यानी ऊंचे मैदान के रूप में विकसित किए गए हैं और धान के खेतों की बजाय इन्हें सेब के बागानों में बदल दिया गया ताकि ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके. 2018 तक हसन के परिवार ने हर साल करीब तीन हजार पेटी सेब का उत्पादन किया लेकिन अब यह उत्पादन गिरकर सात सौ पेटी तक सिमट गया है.
वो कहती हैं, "आमतौर पर, इस साल हमें 4500 पेटी सेब का उत्पादन करना चाहिए था क्योंकि सेब के कई नए पेड़ फल देने लायक हो गए हैं लेकिन उत्पादन बहुत कम हो गया है.”
साल 2016 में उनके परिवार का सालाना कारोबार दो करोड़ रुपये का था लेकिन अब उन्हें इतना नुकसान हो रहा है कि वो लोग कर्ज के बोझ तले दब गए हैं. हसन कहती हैं, "हमारे ऊपर बैंकों और सेब कारोबारियों का करीब एक करोड़ रुपया बकाया है. परिवार पालने के लिए हमने तांबे के सामान की एक दुकान खोल ली है. अब तो हमें सेब के बागों में जाने से भी नफरत होने लगी है.”
मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, कश्मीर में इस साल सामान्य से 70-80 फीसद कम बारिश हुई है.
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फसल को नुकसान
कश्मीर में विज्ञान की एक अध्यापिका शबीना मलिक कहती हैं कि तापमान में बढ़ोत्तरी के कारण पेड़ों पर कीड़े लग जाते हैं और उन्हें बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. मलिक के परिवार वालों के पास करीब चालीस एकड़ सेब के बाग हैं. वो कहती हैं, "तमाम कीटनाशकों के इस्तेमाल के बावजूद ये कीड़े नियंत्रण में नहीं आ पाते.”
वो कहती हैं कि खराब कीटनाशकों का इस्तेमाल भी सेब की फसल को नुकसान पहुंचा रहा है जिसकी वजह से सेब उत्पादकों पर दोहरी मार पड़ रही है क्योंकि फसल बीमा के अभाव में वो कर्ज से लदे जा रहे हैं.
श्रीनगर स्थित शेर-ए-कश्मीर कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में फल वैज्ञानिक आशिक हुसैन कहती हैं, "बसंत के मौसम में सामान्य से ज्यादा तापमान के चलते कीटों और रोगाणुओं की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है. तीस डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को पार कर जाने के बाद सेब के बागान नष्ट हो जाते हैं क्योंकि इस तापमान पर बीज उग नहीं पाते.”
हुसैन कहती हैं कि सामान्य तौर पर कश्मीर में जून महीने में ओले नहीं पड़ते लेकिन अब उनकी तीव्रता बढ़ रही है जिसकी वजह से सेब की फसल खराब हो रही है.
कर्ज से लदे किसान अब दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं
मलिक कहते हैं कि कश्मीर में सेब उद्योग पर आए इस खतरे के कारण सेब उत्पादक किसान अब दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं. कश्मीर के सैकड़ों सेब के बागों में किसान अब गेहूं, सरसों, मक्का और दाल की बुवाई कर रहे हैं.
पेड़ों को काटने की बजाय किसानों ने उन्हीं बगीचों में गेहूं बोना शुरू कर दिया है ताकि वहां चूहे आएं और सेब के पेड़ों की जड़ों को काट डालें और धीरे-धीरे ये पेड़ अपने आप ही नष्ट हो जाएं.
बारामुला जिले के रहने वाले 57 वर्षीय गुलाम हसन बट उन किसानों में से हैं जिन्हें अपने सेब के बगीचों से बहुत लगाव है क्योंकि पिछले कई दशक से यही बगीचे उनकी आमदनी का मुख्य जरिया रहे हैं. बट करोड़ों रुपये का सेब का व्यवसाय करते थे लेकिन पिछले चार साल से लगातार हो रहे नुकसान के कारण वो भी कर्ज से लद गए हैं. इस वजह से अब वो भी सेब के व्यापार को बंद करके गेहूं की पैदावार करने पर मजबूर हो रहे हैं.
वो कहते हैं, "चूहे धीरे-धीरे सेब के पेड़ों को खत्म करेंगे, मैंने गेहूं की खेती शुरू कर दी है. सेब का व्यवसाय हमारे लिए बहुत फायदेमंद नहीं रह गया है. बैंकों और व्यापारियों से हमने जो कर्ज लिया है उसे चुकाने में तो हमारी जिंदगी बीत जाएगी.”
छोटी-मोटी नौकरियों की ओर रुख करना
सेब उद्योग में घाटे के कारण हजारों लोगों को इस क्षेत्र से दूर कर दिया है क्योंकि व्यापारी अपना व्यवसाय समेट रहे हैं. बारामुला जिले के शेखपुरा गांव के रहने वाले मुहम्मद शफी वार कहते हैं कि वो हर साल करीब पांच लाख रुपये अपने सेब के बगीचे से कमाते थे लेकिन अब उन्हें पहलगाम के एक होटल में नौकरी करनी पड़ रही है जहां उनकी आमदनी महज सात-आठ हजार रुपये महीने की है.
2018 में वार के बगीचों में एक हजार पेटी सेब का उत्पादन हुआ था लेकिन अब उत्पादन दो सौ पेटी तक सिमट गया है. वार कहते हैं कि यदि उनके सेब के बगीचों को पर्याप्त सिंचाई सुविधा मिल जाए तो वो बगीचे के पेड़ काटकर उन्हें खेत में बदल देंगे और वहां गेहूं और धान की खेती करेंगे. वो कहते हैं, "कम से कम मैं अपने परिवार का पेट भरने लायक अनाज तो पैदा कर लूंगा.”