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उत्तर प्रदेश: प्रशासन ने ढहाई मस्जिद

१९ मई २०२१

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में प्रशासन द्वारा दशकों पुरानी एक मस्जिद के तोड़ दिए जाने के बाद तनाव है. स्थानीय प्रशासन ने मस्जिद को गैर कानूनी ढांचा बताया था, लेकिन मस्जिद से जुड़े लोगों ने इन दावों का खंडन किया है.

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Indien | Moschee zerstört
तस्वीर: Mohammad Umair

मस्जिद बाराबंकी के रामसनेही घाट तहसील के बनी काड़ा गांव में स्थित थी और इसे गरीब नवाज मस्जिद के नाम से जाना जाता था. उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड और अखिल भारतीय मुस्लिम निजी कानून बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने दावा किया है कि यह मस्जिद करीब 100 साल पुरानी थी और अभी भी इसमें सक्रिय रूप से नमाज अदा की जा रही थी. हालांकि स्थानीय प्रशासन के हिसाब से मस्जिद एक "गैर कानूनी ढांचा" थी.

जिला मजिस्ट्रेट आदर्श सिंह के बयान के मुताबिक इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो अप्रैल को एक याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि मस्जिद और उसका रिहायशी इलाका गैर कानूनी था. सिंह ने बताया कि मार्च में मस्जिद से जुड़े लोगों को मस्जिद के आधिकारिक कागजात और अन्य जानकारी सामने लाने के लिए एक नोटिस दिया गया था, लेकिन नोटिस पाने के बाद वो लोग मस्जिद छोड़ कर चले गए.

सिंह ने बताया कि उसके बाद तहसील प्रशासन ने मस्जिद पर कब्जा ले लिया और अदालत के आदेश के मुताबिक मस्जिद को 17 मई को तोड़ दिया गया. लेकिन दोनों समितियों ने दावों का खंडन किया है और प्रशासन की करवाई को गैर-कानूनी बताया है. एआईएमपीएलबी के कार्यकारी महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने एक बयान जारी कर कहा कि मस्जिद को लेकर कोई विवाद नहीं था और वो सुन्नी वक्फ बोर्ड के साथ सूचीबद्ध थी.

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गरीब नवाज मस्जिद के परिसर में वहां के प्रबंधकों से बातें करते पुलिसकर्मी.तस्वीर: Mohammad Umair

अदालत के आदेश का उल्लंघन?

रहमानी ने मस्जिद तोड़ने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के निलंबन और पूरे मामले में हाई कोर्ट के एक जज द्वारा जांच की मांग की. उन्होंने यह भी मांग की कि मस्जिद के मलबे को वहां से हटाया ना जाए, वहां कोई और निर्माण कार्य शुरू ना कराया जाए, मस्जिद को फिर से वहीं बनवाया जाए और मुस्लिम पक्ष को उसे सौंप दिया जाए. ऐसे भी दावे किए जा रहे हैं कि मस्जिद को तोड़ना दरअसल हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन था.

सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर फारूकी ने बताया कि अदालत ने 24 अप्रैल को ही एक आदेश में कहा था कि चूंकि कोविड-19 महामारी की वजह से अदालत अपनी पूरी क्षमता के हिसाब से काम नहीं कर रही है, इसलिए विचाराधीन ढांचों को खाली कराने और ध्वस्त करने से संबंधित हाल में दिए गए अदालत के सभी आदेशों को कम से कम 31 मई तक रोक दिया जाए. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने अपने आप मस्जिद को तोड़ कर इस आदेश का उल्लंघन किया है. उन्होंने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड तुरंत इसके खिलाफ हाई कोर्ट में मुकदमा दायर करेगा.

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