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हिंसा के जंगल से शांति की पगडंडी पर पूर्वोत्तर भारत

३१ जुलाई २०११

हिंसा के दशकों लंबे दौर से गुजरे भारत के पूर्वोत्तर के लिए अगले हफ्ते से शांति की नई राह खुल सकती है. विद्रोही संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम यानी उल्फा के नेताओं और सरकार के बीच औपचारिक बातचीत की तैयारी हो रही है.

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अरविंद राजखोवातस्वीर: UNI

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक उल्फा नेता अरविंद राजखोवा के नेतृत्व में एक दल अगले हफ्ते अपना एक मांग पत्र केंद्र सरकार को सौंपेगा. यह मांग पत्र नागरिक समाज के लोगों की सलाह से बनाया गया है. अधिकारी ने कहा, "मेरे ख्याल से वे इस हफ्ते या अगले हफ्ते दिल्ली आ रहे हैं. वे अपने दस्तावेज देंगे जो उल्फा के साथ बातचीत की शुरुआत होगी."

अब तक उल्फा नेताओँ और केंद्र के वार्ताकार पीसी हालदार के बीच गुवाहाटी में शुरुआती दौर की बातचीत ही हुई है. सरकारी अधिकारी ने बताया कि उल्फा हिंसा का रास्ता छोड़ने की बात कह चुका है और अब वे बातचीत शुरू करना चाहते हैं तो बातचीत जरूर होगी.

क्या है उल्फा

1970 के दशक में असम में छात्र आंदोलन ने जोर पकड़ा और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में यह हिंसक हो गया. इसी आंदोलन के आधार पर 7 अप्रैल 1979 को उल्फा का गठन हुआ. इसका मकसद एक समाजवादी असम राज्य की स्थापना के लिए हिंसक संघर्ष करना बताया गया. 1983 में इस संगठन ने कार्यकर्ताओं की भर्तियां शुरू की और फिर नगालैंड और बर्मा के विद्रोहियों से ट्रेनिंग लेने के बाद हिंसक कार्रवाइयां करने लगा. 1990 में भारत सरकार ने इसे आतंकवादी संगठनों की सूची में डाल कर इस पर प्रतिबंध लगा दिया.

और फिर हिंसा से दूरी

दिसंबर 1991 में उल्फा के डिप्टी कमांडर इन चीफ हीरक ज्योति महंता की मौत के बाद बड़े पैमाने पर कार्यकर्ताओं ने आत्मसमर्पण करना शुरू कर दिया. इसका असर संगठन की ताकत पर पड़ा और उसके टुकड़े हो गए. साल 2004 के बाद से उल्फा के कुछ नेता बातचीत के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़े हैं. पहले उनकी मांग थी कि असम की संप्रभुता पर बात होनी चाहिए. हालांकि अब यह मांग भी कमजोर पड़ रही है.

Indien Politik Haldar
पीसी हालदारतस्वीर: UNI

सूत्रों का कहना है कि प्रतिबंधित संगठन उल्फा संप्रभुता की मांग पर ज्यादा जोर न देकर असम के लोगों के लिए संविधान के तहत ही स्वायत्तता और अन्य अधिकारों पर बात कर सकते हैं. हालांकि बातचीत का रुख उल्फा के मांगपत्र से ही तय होगा. इस बातचीत में केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकार के प्रतिनिधि भी हिस्सा लेंगे. राजखोवा के नेतृत्व में आठ सदस्यों के एक दल ने फरवरी में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी चिदंबरम से मुलाकात की थी.

लेकिन सिर्फ इस बातचीत से हिंसा पूरी तरह खत्म शायद न हो क्योंकि उल्फा का एक धड़ा इस बातचीत में शामिल नहीं है. उल्फा के कमांडर इन चीफ कहे जाने वाले परेश बरुआ संप्रभुता से कम पर बातचीत करने के हक में नहीं हैं. बरुआ फिलहाल सरकार की पकड़ से बाहर हैं और कयास लगाया जाता है कि वह बांग्लादेश में कहीं छिपे हुए हैं.

नगा विद्रोहियों से बातचीत हल की ओर

पूर्वोत्तर में एक और विद्रोही संगठन एनएससीएन (आईएम) के साथ भी बातचीत आगे बढ़ रही है. हाल ही में केंद्रीय वार्ताकार आरएस पांडे और एनएससीएन के महासचिव थुइंगालेंग मुइवाह ने साझा बयान जारी कर कहा था कि दोनों पक्षों के बीच मतभेद कम हुए हैं और कम से कम समय में वे एक समझौते पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.

इस नगा विद्रोही संगठन ने कुछ दिन पहले अपना मांग पत्र सरकार को सौंपा था जिसका अध्ययन किया जा रहा है. एक सरकारी अधिकारी ने बताया, "उन्होंने अपना मांग पत्र सौंपा है. हम उसे पढ़ रहे हैं. इसके बाद औपचारिक बातचीत जारी रहेगी. अब कम से कम हमारे पास मांग पत्र तो है."

साझा बयान में कहा गया है, "दोनों पक्षों के बीच मतभेद कम हुए हैं लेकिन कुछ प्रस्तावों पर और बातचीत की जरूरत है ताकि ऐसे हल पर पहुंचा जा सके जिस पर दोनों पक्ष सहमत हों."

एनएससीएन (आईएम) के साथ अगस्त 1997 में संघर्ष विराम समझौता हुआ था. मई 1998 में भारत सरकार ने स्वराज कौशल को पहला वार्ताकार नियुक्त किया. जुलाई 1999 में गृह सचिव के पद्मनाभैया ने यह जिम्मेदारी संभाली और वह 2009 तक नगा विद्रोहियों से बातचीत करते रहे. 11 फरवरी 2010 से यह काम आरएस पांडे देख रहे हैं. पांडे 1972 बैच के नागालैंड काडर के आईएएस अधिकारी हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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