हाथ मिलाते हिमालयी देश
२१ मई २०१३भारत और चीन ने भारतीय नेताओं के साथ चीनी प्रधानमंत्री की मुलाकातों के बाद कहा है कि वे तनाव कम करने के रास्तों का पता लगाएंगे. प्रधानमंत्री बनने के बाद ली केचियांग पहली बार भारत की यात्रा पर हैं. राष्ट्रपति के बाद चीन के सबसे बड़े नेता ली ने भारत के साथ "हिमालय के आर पार हाथ मिलाने" का प्रस्ताव रखा, ताकि विश्व अर्थव्यवस्था के दोनों प्रमुख देश तेजी से आगे बढ़ सकें.
मंगलवार को भारतीय उद्योग परिसंघ फिक्की को संबोधित करते हुए ली ने कहा कि दोनों विशाल पड़ोसी देश मिल कर सहयोग की नई परिभाषा गढ़ सकते हैं और सीमा विवाद भी हल कर सकते हैं, "भारत और चीन सीमा के विवाद को सुलझाने से कतरा नहीं रहे हैं. उनके बीच इतनी विवेकपूर्ण समझदारी है कि वे मेज पर बैठ कर सभी मुद्दों पर बात कर सकते हैं." उन्होंने एक चीनी कहावत का भी जिक्र किया कि दूर बैठा रिश्तेदार पड़ोसी जितना काम का नहीं हो सकता है.
दोनों देशों के बीच लंबे वक्त से सीमा विवाद चला आ रहा है, जो हाल के दिनों में तेज हुआ है. ली का कहना है, "दोनों पक्षों का मानना है कि सीमा के मुद्दों को हल करने की जरूरत है. हमें इसके लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे. हमें समझबूझ के साथ आपसी विवादों को खत्म करना है."
इससे पहले भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात के बाद दोनों नेता मुस्कुराते और आराम से बात करते हुए दिखे. दोनों देशों के बीच कारोबार पर भी कुछ बात हुई लेकिन कोई बड़ी संधि के आसार नहीं हैं. भारत और चीन के बीच करीब 4000 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है और इस मुद्दे पर 50 साल पहले दोनों देशों के बीच युद्ध भी हो चुका है.
हालांकि हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच किसी तरह की हिंसा नहीं हुई है लेकिन विवाद भी खत्म नहीं हो पाया है. इसकी वजह से आर्थिक रिश्तों पर खासा असर पड़ा है. भारत और चीन दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले देश हैं और कुल मिला कर विश्व की 40 फीसदी जनसंख्या इन्हीं दोनों देशों में रहती है.
पिछले साल दोनों देशों के बीच 66 अरब डॉलर का कारोबार हुआ लेकिन इनका मानना है कि इस आंकड़े को बहुत आगे बढ़ाया जा सकता है. हालांकि पिछली बैठकों में भी इसी तरह के वादे किए गए थे, जिनका कोई खास असर नहीं पड़ा है.
भारत का एस्सार ग्रुप चीन के साथ एक अरब डॉलर की कारोबार संधि करने वाला है, जिसके तहत वह चीन विकास बैंक और पेट्रोचाइना के साथ मिल कर काम करेगा.
भारत में स्वागत के बाद चीनी प्रीमियर का कहना है कि वह अपने पड़ोसी देश से सहयोग चाहते हैं, "विश्व शांति और स्थानीय स्थिरता भारत और चीन के अच्छे रिश्तों के बिना संभव नहीं है. इसी तरह दुनिया का विकास और समृद्धि भी इन दोनों देशों के सहयोग के बिना मुमकिन नहीं है."
चार देशों की यात्रा पर निकले ली का कहना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले भारत आने का फैसला किया, जो दिखाता है कि उनके देश के लिए भारत कितना अहम है. वह 27 साल पहले कम्युनिस्ट युवा नेता के तौर पर भारत का दौरा कर चुके हैं.
भारत में चीन मामलों के जानकार श्रीकांत कोंडापल्ली का कहना है कि गर्मजोशी से भाषण और मीडिया की कोशिशों के बावजूद दोनों देशों में बहुत अच्छे रिश्ते संभव नहीं हैं, "इस यात्रा के पहले बहुत हवा बनाई गई लेकिन नए नेतृत्व ने नए विचार सामने नहीं रखे."
ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि भारत और चीन के बीच रिश्ते सुधारने में लंबा वक्त लग सकता है. प्रधानमंत्री सिंह का कहना है कि सीमा विवाद का जल्दी हल होना जरूरी है. हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच लद्दाख के कुछ हिस्सों पर तनाव हुआ था, जबकि चीन का दावा है कि पूरा अरुणाचल प्रदेश उसके हिस्से में आता है.
इसी साल डरबन में प्रधानमंत्री सिंह और चीनी राष्ट्रपति ची जिनपिंग की मुलाकात हुई, जिसमें तय हुआ कि दोनों देशों को जल्द से जल्द इस मसले को हल कर लेना चाहिए. पिछले हफ्ते दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी यही राय रखी गई.
राजनीतिक तौर पर भारत चीन के साथ किसी भूखंड पर समझौता नहीं कर सकता है. भारत के पूर्वोत्तर और कश्मीर में ली की यात्रा का जबरदस्त विरोध हुआ, जो यहां के लोगों की भावनाओं को प्रदर्शित करता है.
सोमवार को दोनों नेताओं की मुलाकात से पहले भारतीय विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अफसर ने बताया कि इस बात में संदेह है कि चीनी नेतृत्व भारत के लिए कुछ नया लेकर आ रहा है. भारत के बाद ली पाकिस्तान और स्विट्जरलैंड के अलावा जर्मनी की भी यात्रा करेंगे. चीन अपने विदेशी कारोबार को और बढ़ाना चाहता है और ऐसे में ली की यात्रा बेहद अहम है.
एजेए/एमजे (रॉयटर्स)