हर परिवार को साल में 72 हजार देना कितना संभव?
२५ मार्च २०१९तारीख 27 जनवरी 2019. छत्तीसगढ़ के रायपुर का अटल नगर. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विधानसभा चुनाव जीत के बाद किसान आभार रैली को संबोधित कर रहे थे. अचानक राहुल बोले- कांग्रेस अगर केंद्र की सत्ता में आई तो भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम लागू करेगी. इसका मतलब देश के हर नागरिक की कुछ न कुछ आमदनी होगी चाहे वो कोई काम करते हों या न करते हों. इसके बाद से ही चर्चा शुरू हो गई कि इस योजना की रूपरेखा क्या होगी. 25 मार्च को राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी शुरुआती रूपरेखा का एलान किया.
राहुल ने कहा कि भारत में रहने वाले हर परिवार की प्रति महीने आय 12,000 रुपये की जाएगी. इस योजना का नाम "न्याय" रखा जाएगा. इस योजना के तहत आने वाले हर गरीब परिवार के लिए सालाना 72,000 रुपये की राशि रखी जाएगी. इसका मतलब है कि यदि किसी परिवार की मासिक आय 6,000 है तो उसे और 6,000 रुपये, यदि मासिक आय 10,000 है तो हर महीने 2,000 रुपये दिए जाएंगे. मतलब जिस परिवार की मासिक आय 12,000 से जितनी कम होगी उसे उतने ही पैसे दिए जाएंगे. इसके लिए राहुल ने तर्क दिया कि भारत का हर परिवार मेहनत कर कुछ न कुछ कमाता है ऐसे में बहुत कम ऐसे लोग होंगे जिन्हें पूरी मदद देनी पड़ेगी.
राहुल ने कहा कि इस योजना के तहत करीब पांच करोड़ परिवारों को सहायता मिलेगी. अगर एक परिवार में पांच सदस्य माने जाएं तो लगभग 25 करोड़ लोगों को फायदा होगा. इसके लिए अर्थशास्त्रियों के साथ मिलकर सारी गणना कर ली गई हैं. और कांग्रेस की सरकार आने पर इसे लागू किया जा सकेगा.
राहुल के मुताबिक यूपीए की सरकार के दौरान लागू हुई मनरेगा स्कीम से करीब 14 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया था. ऐसे ही इस योजना से करीब 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि मोदी उद्योगपतियों का कर्ज माफ कर उनकी मदद करते हैं लेकिन कांग्रेस गरीब की मदद करेगी. तो चलिए जानते हैं राहुल की इस यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम के बारे में. ये क्या है. साथ ही क्या कहीं ऐसा हुआ है और भारत में भी ऐसा हो सकता है?
यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम
इसका मतलब होता है किसी जगह पर रहने वाले सभी लोगों को एक नियमित आय की गारंटी. इस योजना में अधिकांशत: एक न्यूनतम राशि वहां रहने वाले लोगों को दे दी जाती है. इस राशि को वो अपने हिसाब से खर्च करने के लिए स्वतंत्र होते हैं. लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ऑरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज में प्रॉफेसर गाय स्टैंडिंग ने 80 के दशक की शुरुआत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम का सुझाव दिया था. हालांकि गाय का कहना है कि इस स्कीम के तहत सिर्फ एक खास तरह के लोगों की जगह सभी लोगों को एक निश्चित राशि दी जाए.
गाय का तर्क है कि यह फिजूलखर्ची नहीं है. जब लोगों के हाथ में पैसा पहुंचेगा तो उनके अंदर और पैसा कमाने की भावना पैदा होगी और वो ज्यादा काम करेंगे. साथ ही, जब लोगों को यह चिंता नहीं रहेगी कि वो कल भूखे रहेंगे तो वो मानसिक रूप से भी तनावमुक्त रहेंगे और अच्छे से काम कर सकेंगे.
क्या यह स्कीम कहीं लागू हुई है?
हां. कई सारे देशों में सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी ऐसी योजनाएं काम कर रही हैं जिनमें हर नागरिक के लिए एक न्यूनतम आमदनी सुनिश्चित की जाती है. जर्मनी, फ्रांस, सायप्रस, अमेरिका, ब्राजील, कनाडा, अल्जीरिया, डेनमार्क, फिनलैंड, ऑस्ट्रिया, आइसलैंड, आयरलैंड, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन, स्वि़ट्जरलैंड और ब्रिटेन में कुछ शर्तों के साथ ऐसी योजनाएं चल रही हैं.
भारत में सेल्फ एंप्लॉयड वुमेन एसोसिएशन (सेवा भारत) नाम की एक संस्था ने साल 2011 से 2016 के बीच मध्य प्रदेश में इंदौर के आठ गांवों में मध्य प्रदेश अनकंडीशनल कैश ट्रांसफर प्रॉजेक्ट (MPUCT) नाम से एक पायलट प्रॉजेक्ट चलाया. इस प्रॉजेक्ट के तहत करीब 6,000 लोगों को सीधी मदद दी गई. वयस्कों को प्रति महीने 200 रुपये और बच्चों को प्रति महीने 100 रुपये देना शुरू किया. एक साल बाद इसे बढ़ाकर क्रमश: 300 और 150 रुपये कर दिया गया. सेवा संस्था ने अपनी रिपोर्ट में इस योजना के नतीजे सकारात्मक बताए. रिपोर्ट के मुताबिक लोगों ने एक नियमित न्यूनतम आय मिलने के बाद अपनी आमदनी को बढ़ाया.
इसके लिए पैसा कहां से आएगा?
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि विकसित देशों में टैक्स प्रणाली इस तरह होती है कि सरकारी खजाने का एक बहुत बड़ा हिस्सा इनकम टैक्स से जुटाया जाता है. भारत सरकारी खजाने में केवल 17 प्रतिशत पैसा इनकम टैक्स से मिलता है. टैक्स की इस असमानता के कारण इस योजना को लागू करने में मुश्किलें हो सकती हैं. लेकिन दूसरा तथ्य यह है कि सरकारी खजाने का बड़ा हिस्सा सब्सिडी और गरीबों के लिए चलने वाली दूसरी अप्रत्यक्ष योजनाओं पर खर्च होता है. गरीब लोगों को सीधे खाते में पैसा देने के बाद ऐसी सब्सि़डी और योजनाओं की जरूरत नहीं रह जाएगी. ऐसे में इस पैसे की रिकवरी वहां से की जा सकती है.
मिनिमम बेसिक इनकम से यह बात सुनिश्चित हो सकेगी कि देश में कोई भूखा न रहे क्योंकि सबके पास इतना पैसा होगा. 119 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 103वें नंबर पर है. साथ ही 189 देशों के मानव विकास सूचकांक में भी भारत 130वां देश है. ऐसे में इस स्कीम से इन सूचकांकों में भारत की स्थिति बेहतर होगी. हर साल आने वाला आर्थिक सर्वेक्षण भी सब्सिडी के बदले मिनिमम बेसिक इनकम का सुझाव देता है. सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी की जगह अगर सीधा पैसा दिया जाए तो उससे बाजार में पैसा आएगा और लोगों की क्रय क्षमता भी बढ़ेगी.
लागू करने में क्या परेशानियां हो सकती हैं?
कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित योजना को लागू करने के लिए करीब साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी. यह राशि भारत के मौजूदा रक्षा बजट से भी ज्यादा है. इसके लिए एक रोडमैप की जरूरत है. अगर लोगों को बिना काम के घर बैठे पैसा मिलने लगा तो दूसरे लोगों में असंतोष की स्थिति पैदा हो सकती है. ऐसे में कुछ तय मानक हों जिससे सुनिश्चित हो सके कि किसी को घर बैठे या बिना कुछ किए ही पैसा न मिल रहा हो.
भारत की जीडीपी फिलहाल 207 लाख करोड़ रुपये है. और इसका 3.38 प्रतिशत यानी सात लाख करोड़ राजकोषीय घाटा है. अगर इस योजना को और मिला लिया जाए तो यह घाटा बढ़कर करीब साढ़े दस लाख करोड़ पहुंच जाएगा. भारत का स्वास्थ्य बजट जीडीपी का करीब 1.4 प्रतिशत है. इस योजना में होने वाला खर्च जीडीपी का 1.6 प्रतिशत होगा. मतलब यह सरकारी खजाने पर अतिरिक्त भार ही होगा. इसके लिए फंड जुटाना एक बड़ी चुनौती होगा.
इस योजना को 25 करोड़ लोगों तक पहुंचाना भी एक बड़ी चुनौती है. हालांकि राहुल ने दावा किया कि जिस तरह मनरेगा से 14 करोड़ लोग लाभान्वित हुए उसी तरह इस योजना को भी लागू किया जा सकेगा.
कांग्रेस का मानना है कि यह स्कीम 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके लिए गेम चेंजर साबित होगी. लेकिन जनता इस पर अपनी क्या राय रखती है वो चुनाव के नतीजों से जाहिर हो जाएगा.