हथियारों की खरीद में केवल सऊदी से पीछे है भारत
२९ दिसम्बर २०१६साल 2008 से 2015 के बीच भारत ने रक्षा हथियारों की खरीद पर करीब 34 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए. इसी अवधि में इस मद में सऊदी अरब ने 93.5 अरब अमेरिकी डॉलर खर्चे. कॉन्ग्रेशनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) ने ‘कन्वेंशनल आर्म्स ट्रांसफर टू डेवलपिंग नेशंस 2008-2015' नाम की रिपोर्ट में ये आंकड़े पेश किए हैं.
इन सात सालों में केवल हथियारों के आयात पर खर्च के लिहाज से सभी विकासशील देशों में भारत का दूसरा स्थान है. रिपोर्ट जारी करने वाली सीआरएस अमेरिकी कांग्रेस की एक स्वतंत्र रिसर्च विंग है. यह तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर रिसर्च कर अमेरिकी सांसदों को सही फैसले लेने में मदद करती है. इसकी रिपोर्टों को अमेरिकी कांग्रेस की आधिकारिक रिपोर्ट नहीं माना जाता है.
रिपोर्ट में लिखा है कि भारत अपनी सेना के आधुनिकीकरण के कदम उठा रहा है. इसी के अंतर्गत उसने हथियारों के आयात पर इतना खर्च किया. इसके अलावा जिस महत्वपूर्ण पहलू पर रिपोर्ट में ध्यान खींचा गया है वह है डायवर्सिफिकेशन. यानि भारत ने हाल के समय में हथियारों के आयात के लिए अलग अलग देशों को चुना है, जिसके कारण अमेरिका को काफी फायदा हुआ है.
रिपोर्ट में उल्लेख है, "भारत मुख्य रूप से रूसी हथियारों का ग्राहक रहा है, लेकिन हाल के सालों में अपने हथियार आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाते हुए, भारत ने 2004 में इस्राएल से फाल्कन अर्ली वॉर्निंग डिफेंस सिस्टम और 2005 में फ्रांस से बहुत सारी चीजें खरीदीं. साल 2008 में भारत ने अमेरिका से छह C130J कार्गो विमान भी खरीदे." 2010 में ब्रिटेन से भारत ने करीब एक अरब डॉलर में 57 हॉक जेट ट्रेनर लिए थे. इसी साल इटली ने भी भारत को 12 AW101 हेलिकॉप्टर बेचे.
फ्रांस ने 2011 में भारत के साथ 2.4 अरब डॉलर के हथियार सौदे पर हस्ताक्षर किए. भारत अपने 51 मिराज-2000 युद्धक विमानों को अपडेट करना चाहता था. इसके अलावा अमेरिका ने भी 4.1 अरब डॉलर में भारत को दस C-17 ग्लोबमास्टर III विमान बेचने की डील की. 2011 में तो भारत ने एक तरह की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में रूस की जगह फ्रांस के लड़ाकू विमान खरीदे. सीआरएस ने लिखा है, "भारत के हथियारों की खरीद का यह पैटर्न दिखाता है कि भारत को हथियारों की आपूर्ति करने से पहले रूस को दूसरे हथियार विक्रेताओं से कड़ा मुकाबला झेलना होगा."