सोशल मीडिया पर भी लड़ा जाएगा अगला आम चुनाव
५ दिसम्बर २०१८भारत में 18 से 65 आयु वर्ग के 27 करोड़ लोग हर महीने फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के मुकाबले देश में फेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की तादाद अब बढ़ कर दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है. फेसबुक के एडवर्टाइजिंग पोर्टल के आंकड़ों से यह बात सामने आई है. इससे 2019 में होने वाले आम चुनावों से पहले फेसबुक राजनीतिक दलों के लिए विज्ञापनों के लिहाज से एक बेहतरीन मंच के तौर पर उभरा है. पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगला आम चुनाव सड़कों व गलियों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी लड़ा जाएगा. ऐसे में फेसबुक की भूमिका बेहद अहम हो सकती है. यही वजह है कि तमाम राजनीतिक दलों में अभी से इस मौके को भुनाने की होड़ मच गई है.
पुरुषों की तादाद ज्यादा
डाटा पोर्टल 'स्टेटिस्टा' के आंकड़ों के मुताबिक, फेसबुक के ज्यादातर उपभोक्ता 30 साल से कम उम्र वाले पुरुष हैं और वह शहरी इलाकों में रहते हैं. सोशल मीडिया विशेषज्ञों का कहना है कि पारंपरिक टीवी चैनलों के मुकाबले फेसबुक की पहुंच कम होने के बावजूद इसकी एक अनूठी खासियत इसे बाकियों से अलग करती है. इसके जरिए भौगोलिक स्थिति, व्यवहार, दिलचस्पियों और दूसरे मानकों के आधार पर अलग-अलग उपभोक्ताओं के लिए खास तौर पर तैयार अलग-अलग विज्ञापन दिखाए जा सकते हैं. मिसाल के तौर पर कोई भी एक राजनीतिक दल दो अलग-अलग इलाकों में रहने वाले दो अलग-अलग लोगों को परस्पर विरोधाभासी विज्ञापन या संदेश दिखा सकता है. उन दोनों को बस वही पता लगेगा जो संबधित दल उसे दिखाना चाहता है.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने इस तकनीकी हस्तक्षेप के जरिए मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिशों को चुनावी प्रक्रिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती करार दिया था. रावत ने हाल में कहा था, "वोटरों को सीधे रिश्वत देने की बजाय अब ऐसी तकनीक के जरिए किसी खास पार्टी के पक्ष में उनको प्रभावित किया जा सकता है.”
फेसबुक पर सक्रिय उपभोक्ताओं में से ज्यादातर 20 से 30 साल की उम्र के बीच हैं. ज्यादातर राजनीतिक दल इन युवा वोटरों को ही आकर्षित करने का प्रयास करते हैं. इसलिए उनके लिए फेसबुक से बेहतर दूसरा कोई जरिया नहीं हो सकता है. आम आदमी पार्टी के मीडिया प्रमुख अंकित लाल कगते हैं, "पार्टी फेसबुक के जरिए इस आयु वर्ग के युवाओं को ही लुभाना चाहती है.”
युवा वोटरों तक सीधी पहुंच
ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि फेसबुक का इस्तेमाल करने वाले में से 63 फीसदी की उम्र 30 साल से कम है. 20 से 24 साल की उम्र की कुल आबादी में से 55 फीसदी युवाओं के फेसबुक पर अकाउंट हैं. राजनीति विज्ञान के एक विशेषज्ञ सोमेन पाल कहते हैं, "फेसबुक नए वोटरों यानी पहली बार वोट देने वालों को लुभाने का सबसे प्रभावशाली हथियार है. अगले आम चुनावों में 14 करोड़ वोटर पहली बार वोट डालेंगे. इनमें से लगभग 53 फीसदी यानी साढ़े सात करोड़ लोग फेसबुक पर काफी सक्रिय हैं.”
शहरी इलाकों में फेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की तादाद ग्रामीण इलाकों के मुकाबले काफी अधिक है. मिसाल के तौर पर तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में राज्य की महज 19 फीसदी आबादी रहती हैं. लेकिन राज्य में फेसबुक का इस्तेमाल करने वाले लोगों में से 57 फीसदी इसी शहर में रहते हैं. इसी तरह पश्चिम बंगाल में राजधानी कोलकाता और महाराष्ट्र में मुंबई के अलावा पुणे में फेसबुक यूजर्स की तादाद सबसे ज्यादा है. फेसबुक के राज्यवार आंकड़ों में भी काफी फर्क है. दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में रहने वाली 20 से 65 साल की उम्र वाली कुल आबादी में से लगभग 63 फीसदी लोग फेसबुक पर सक्रिय हैं जबकि बिहार में यह आंकड़ा महज 18.8 फीसदी है.
डाटा स्पीड है अहम वजह
एडवर्टाइजिंग प्लेटफार्म के आंकड़ों के मुताबिक, देश में फेसबुक के कुल उपभोक्ताओं में से लगभग 81 फीसदी हाई स्पीड फोर-जी कनेक्शन के जरिए इस नेटवर्क पर पहुंचते हैं. स्मार्टफोन तक बढ़ती पहुंच और मोबाइल डाटा पैक की कीमतों में आई गिरावट को इसकी अहम वजह बताया गया है. इससे ऐसे उपभोक्ताओं तक वीडियो और तस्वीरों के जरिए पहुंचना सुगम हो गया है. शहरी इलाकों में फेसबुक उपभोक्ताओं की बढ़ती तादाद के लिए भी तेज गति वाले डाटा की सहज उपलब्धता को प्रमुख वजह माना गया है.
चुनाव विशेषज्ञ डा. पार्थ प्रतिम घोष कहते हैं, "तेज गति वाले डाटा पैक और स्मार्टफोन तक आसान पहुंच ने राजनीतिक दलों की राह आसान कर दी है. अब अगर वह विज्ञापन पर पैसे नहीं भी खर्च करें तो बिना किसी खर्च के अपने पेज के जरिए नए वोटरों तक आसानी से पहुंच सकते हैं. यही वजह है कि ऐसे दलों में फेसबुक के प्रति क्रेज बढ़ रहा है.”
विशेषज्ञों का कहना है कि अगले आम चुनावों में सोशल मीडिया खासकर फेसबुक की भूमिका बेहद अहम होगी. यही वजह है कि तमाम दलों ने अभी से इसके बेहतर इस्तेमाल की रणनीति बना ली है. छोटे-छोटे राजनीतिक दल भी अब आईटी सेल का गठन करने लगे हैं ताकि युवा वोटरों को पार्टी के पक्ष में प्रभावित किया जा सके. विशेषज्ञ सोमेन पाल कहते हैं, "तमाम दलों में फेसबुक को चुनावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की होड़ मची है. इसके लिए विशेषज्ञों व सलाहकार फर्मों की सेवाएं भी ली जा रही हैं.” वह कहते हैं कि अगले चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका दिलचस्प व निर्णायक होगी.