सोने जगने का समय क्या जीन से तय होता है?
१ फ़रवरी २०१९रातों में जगने और सुबह आलसी की तरह बिस्तर में पड़े लोगों की इस आदत की वजह समझने के लिए जेनेटिक आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है. ये आंकड़े डीएनए का परीक्षण करने वाली वेबसाइट 23एंडमी और एक ब्रिटिश "बायोबैंक" से लिए गए. रिसर्च करने वाली टीम का नेतृत्व एक्सटर मेडिकल स्कूल के प्रोफेसर माइकल वीडॉन कर रहे थे. उन्होंने बताया, "यह रिसर्च अहम है क्योंकि यह इस बात की पुष्टि करती है कि सुबह और शाम की हमारी आदतें कम से कम कुछ हद तक जेनेटिक कारणों से निर्धारित होती हैं."
रिसर्च के लिए करीब 7 लाख लोगों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है. शोध के नतीजे बताते हैं कि सोने और जगने में पहले जेनेटिक कारणों को जितना जिम्मेदार माना जाता था वो उससे कहीं ज्यादा जिम्मेदार हैं. पहले रिसर्चर ऐसे 24 जीनों के बारे में जानते थे जिनका सोने के वक्त पर असर पड़ता है. नेचर कम्युनिकेशंस जनरल में छपी रिपोर्ट बताती है कि इस रिसर्च के बाद अब 327 और ऐसे जीनों का पता चला है जो नींद में भूमिका निभाते हैं.
विश्लेषण यह भी दिखाता है कि जो लोग देर से सोते हैं उनमें शिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों का खतरा ज्यादा रहता है. हालांकि रिसर्चरों ने यह भी कहा है कि इन दोनों के बीच संबंध को समझने के लिए अभी और रिसर्च की जरूरत होगी. रिसर्च के शुरुआती चरण में उन लोगों के जीनों का अध्ययन किए गया जो खुद को "मॉर्निंग पर्सन" या फिर "इवनिंग पर्सन" बताते हैं.
रिसर्चरों ने छोटे छोटे ग्रुप में उन लोगों का परीक्षण किया जो एक्टिविटी ट्रैकर्स का इस्तेमाल कर रहे थे. कलाई पर बांधे जाने वाले ट्रैकर से मिली जानकारियों के जरिए 85,000 लोगों के नींद के पैटर्न से जुड़े आंकड़ों को समझने की कोशिश की गई. रिसर्चरों ने देखा कि जिन जीनों की उन्होंने पहचान की है वह किसी इंसान के टहलने के समय को भी 25 मिनट तक इधर उधर कर सकते हैं.
रिसर्च में इस बात की भी पड़ताल की गई कि क्यों कुछ जीन लोगों के सोने और जगने के समय पर असर डालते हैं. रोशनी और शरीर की आंतरिक घड़ी का दिमाग पर पड़ने वाला असर भी अलग अलग लोगों में भिन्न होता है. सोने के पैटर्न और कुछ बीमारियों के बीच संबंध को लेकर जो पुराने सिद्धांत हैं उन्हें परखने के लिए रिसर्चरों ने "मॉर्निंग" और "इवनिंग" जीन और कई बीमारियों के बीच परस्पर संबंधों का भी विश्लेषण किया.
रिसर्चरों ने देखा कि जल्दी सोने और जगने वाले लोगों में तनाव और शिजोफ्रेनिया का जोखिम कम होता है और वो स्वस्थ रहते हैं. हालांकि वीडॉन के मुताबिक यह अभी साफ नहीं है कि सुबह उठने वाले लोगों में इन सब की वजह उनका 9 बजे से 5 तक तक काम करना तो नहीं है.
रिसर्च में इस बात के सबूत नहीं मिले कि नींद को प्रभावित करने वाले जीनों और मेटाबॉलिक बीमारियों जैसे कि टाइप 2 डायबिटीज के बीच कोई संबंध है या नहीं. हालांकि आगे की रिसर्च में उन लोगों से जुड़े मुद्दों की पड़ताल की जाएगी जिनकी प्राकृतिक नींद का रुझान उनकी जीवैनशैली से मेल नहीं खाता.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)