1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कम नींद की भरपाई वीकएंड में संभव

१ जून २०१८

नींद की कमी बीमार कर सकती है. और कौन ऐसा है जो पूरी नींद सो पाता है. अब स्वीडन के रिसर्चरों ने पाया है कि हफ्ते के दौरान सोने की कमी वीकएंड में सोकर पूरी की जा सकती है.

https://p.dw.com/p/2yo8j
Weltschlaftag
तस्वीर: Imago/Photocase

कम सोना सेहत के लिए नुकसानदेह होता है. इसकी वजह से दिल की बीमारी और डायबिटीज आदि हो सकते हैं. लेकिन हफ्ते के दौरान कम सोने वाले लोग वीकएंड में उसकी भरपाई कर सकते हैं, ताकि सेहत को नुकसान न पहुंचे. यदि नींद की कमी छुट्टी के दिन पूरी कर ली जाती है तो नींद की कमी से बढ़ने वाले मौत के खतरे का असर नहीं होता. ये बात सोने पर रिसर्च करने वालों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने जर्नल ऑफ स्लीप रिसर्च में लिखी है.

बर्लिन के प्रसिद्ध शैरिटे मेडिकल कॉलेज के नींद चिकित्सा केंद्र के प्रमुख इंगो फीत्से का कहना है कि यदि वीकएंड पर नींद की भरपाई कर ली जाती है तो रोजाना सात से साढ़े सात घंटे सोना जरूरी नहीं है. वे सोने पर हुए रिसर्च का हिस्सा नहीं थे. स्टॉकहोल्म के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट में तोरब्योर्न एकरस्टेट की टीम ने स्वीडन के करीब 44,000 लोगों के डाटा का अध्ययन किया. 13 साल की अवधि के दौरान उन्होंने देखा कि कौन से लोगों की मौत हुई. हालांकि इस बात का विश्लेषण नहीं किया गया कि क्या उन्होंने अपनी सोने की आदत इस दौरान बदली थी.

Mann schläft auf einer Couch
तस्वीर: picture-alliance/Bildagentur-online/Tetra

रिसर्चरों ने अपनी स्टडी में सेहत पर असर डालने वाले वजन, सिगरेट या अल्कोहल पीने की आदत और खेलकूद जैसे अन्य कारकों पर ध्यान जरूर दिया. औसत नींद की जरूरत के लिए सात घंटे का समय तय किया. हर रात पांच घंटे या उससे कम सोने वाले 65 साल से कम उम्र के लोगों के मरने का खतरा सात घंटे की नींद लेने वाले लोगों की तुलना में ज्यादा था. लेकिन यह खतरा उन लोगों में नहीं था जो वीकएंड के दौरान ज्यादा सोते थे और बकाया नींद पूरी कर लेते थे.

इससे रिसर्चरों ने निष्कर्ष निकाला कि नींद में कमी की भरपाई सेहत को खतरे में डाले बिना वीकएंड में पूरी की जा सकती है. जल्द मौत का खतरा सिर्फ उन लोगों को नहीं है जो औसत से कम सोते हैं बल्कि उन लोगों को भी जो उससे ज्यादा सोते हैं. रिसर्चरों ने पाया कि रोजाना 9 घंटे से ज्यादा सोने वाले 65 साल के कम आयु के लोगों में भी मरने का जोखिम ज्यादा होता है. लेकिन बुजुर्ग मरीजों में रिसर्चरों ने मौत के खतरे में कोई बदलाव नहीं पाया, चाहे वे हफ्ते के दिनों में या वीकएंड में कितना भी सोते हों.

बर्लिन के नींद एक्सपर्ट फीत्से का कहना है कि छह घंटे से कम और 9 घंटे से ज्यादा सोना जीवन दर को कम करता है और डायबिटीज या कैंसर के जोखिम को बढ़ा देता है. इसके अलावा इसका असर लोगों के दिमाग पर भी पड़ता है. फीत्से बताते हैं, "रात में छह घंटे से कम की नींद का असर मिजाज पर दिखता है." अगर आप खुशमिजाजी में दिन शुरू करना चाहते हैं तो कम से कम सात घंटे सोना जरूरी है. एक बात और आने वाले दबाव की भरपाई पहले सोकर नहीं की जा सकती.

एमजे/ओएसजे (डीपीए)

#कितना सोते हैं जर्मन लोग