सूमो फाइट की परंपरा
जापान में वसंत आते ही यासुकुनी मठ में चेरी तोड़ी जाती है और फिर सूमो फाइट की पारंपरिक शुरुआत होती है. यह रिवाज करीब 1,500 साल पुराना है.
शुरुआत का तरीका
सूमो अखाड़े के भीतर पारंपरिक पोशाक में प्रार्थना करने के साथ सूमो टूर्नामेंट यानि होनजुमो का आगाज होता है. याशुकुनी मठ में होने वाले इस आयोजन को चीन और कोरिया पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि वहां द्वितीय विश्वयुद्ध के जापानी बर्बरता का चेहरा बने योद्धाओं के स्मारक भी हैं.
अहम हैं रिवाज
सूमो पहलवानों के लिए रीति रिवाज काफी अहम होते हैं. फाइट से ठीक पहले सूमो पहलवान हवा में नमक उछालते हैं. वे मानते हैं कि ऐसा करने से अखाड़ा शुद्ध हो जाता है.
बेहद लोकप्रिय खेल
तमाम तकनीक और ग्लोबल फैशन के बावजूद सूमो फाइटिंग आज भी जापान का नंबर एक खेल है. दूसरे नंबर पर बेसबॉल और तीसरे पर फुटबॉल हैं.
दुनिया भर के पहलवान
अथाह लोकप्रियता के बावजूद जापान की युवा पीढ़ी सूमो पहलवान बनने से परहेज कर रही है. अब ज्यादा से ज्यादा पहलवान विदेशों से आ रहे हैं. इस तस्वीर में ग्रैंडमास्टर योकोजुना हाकुहो मुकाबला शुरू करवाते हुए दिख रहे हैं.
बेहद उच्च प्रर्दशन की दरकार
सूमो फाइट जीतने के लिए वजन, फुर्ती और ताकत का जबरदस्त तालमेल जरूरी है. उनके मोटे शरीर के भीतर चट्टान जैसी ताकत और गजब की संतुलन शक्ति होती है. अब तक के सबसे वजनी सूमो पहलवान का वजन 326 किलोग्राम दर्ज किया गया.
प्रशंसक और उनके हीरो
टूर्नामेंट के दौरान प्रशंसकों को अपने पसंदीदा सूमो पहलवानों के पास जाने और उनके साथ बातचीत करने व तस्वीरें खिंचवाने का मौका भी मिलता है.
विशाल बाहुबलियों का जमावड़ा
पूजा और रिवाज पूरे होने के बाद सभी पहलवान याशुकुनी मठ के खुले अखाड़े में आतें हैं. और फिर 8,000 लोग अपने पसंदीदा पहलवानों की प्रतिभा देखते हैं.