सूचना आयोग में नियुक्तियों पर उठे सवाल
३० अक्टूबर २०२०सूचना आयोग में तीन नई नियुक्तियां की गई हैं. विदेश सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी यशवर्धन कुमार सिंहा को प्रमुख सूचना आयुक्त (सीआईसी), सरोज पुन्हानी को डिप्टी सीएजी और पत्रकार उदय माहुरकर को सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया है. विवाद तब खड़ा हुआ जब आयुक्तों को चुनने के लिए बने पैनल के सदस्य कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ये नियुक्तियां उनके विरोध के बावजूद हुई हैं. अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता भी हैं.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार चौधरी ने आपत्ति जताई कि सबसे पहले तो चयन समिति ने 139 आवेदकों में से सात को शार्ट लिस्ट करने का कोई भी आधार नहीं बताया, उसके बाद एक ऐसे व्यक्ति को सीआईसी बनाया गया जिसे देश के अंदर सेवाएं उपलब्ध कराने, कानून, विज्ञान, मानवाधिकार और दूसरे जन-सरोकार के विषयों का कोई जमीनी तजुर्बा नहीं है.
यशवर्धन कुमार सिंहा 1981 बैच के आईएफएस अधिकारी हैं. अपनी 35 सालों की राजनयिक सेवा में वो श्रीलंका और ब्रिटेन में भारत के राजदूत रह चुके हैं और कई और विदेशी दूतावासों में अहम पदों पर काम कर चुके हैं. उन्हें जनवरी 2019 में केंद्रीय सूचना आयुक्त बनाया गया था. चौधरी के अनुसार सिंहा सीआईसी के पद के लिए इस कारण से भी योग्य नहीं थे क्योंकि सूचना आयुक्त वनजा सरना उनसे वरिष्ठ हैं और पद के लिए बेहतर योग्य हैं.
सबसे बड़ा विवाद माहुरकर के नाम को लेकर उठा है. इंडिया टुडे समूह के साथ काम करने वाले माहुरकर को केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के मुखर समर्थक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों पर एक किताब भी लिखी है. उनकी नियुक्ति का मामला सबसे विवादास्पद इसलिए भी है क्योंकि चौधरी के अनुसार माहुरकर का नाम आवेदकों की सूची में था ही नहीं.
नियुक्तियों पर विवाद
यह पहली बार नहीं है जब सूचना आयोग में नियुक्तियों पर विवाद खड़ा हुआ है. लंबे समय तक आयुक्तों के पदों का खाली पड़े रहना और जब नियुक्तियां हों तो उनमें पारदर्शिता का ना होना बार बार सामने आने वाली समस्या है. पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने डीडब्ल्यू को बताया कि जब उनका चयन हुआ था तब तो आयुक्तों को चुनने और नियुक्त करने की कोई प्रणाली ही नहीं थी और आज भी स्थिति चिंताजनक ही बनी हुई है.
उनका कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सूचना आयुक्तों, दूसरे आयुक्तों और यहां तक कि लोकायुक्त की भी नियुक्ति के लिए पूरी तरह से मनमानी भरी प्रक्रिया का इस्तेमाल हो रहा है. गांधी यह भी कहते हैं कि इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियां जिम्मेदार हैं क्योंकि हर पार्टी किसी ना किसी राज्य में राज्य सूचना आयोगों में भी लगातार मनमानी नियुक्तियां कर रही है.
इससे पहले राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा पर महिला विरोधी विचार रखने के आरोप लग चुके हैं और केंद्र सरकार से उनकी नियुक्ति को लेकर सवाल किए गए हैं. इसी तरह बाल अधिकार आयोग, मानवाधिकार आयोग, लोकायुक्त और यहां तक की लोकपाल में भी नियुक्ति में हुई मनमानी को लेकर विरोध होता रहा है.
उम्मीदवारों के बारे में जानकारी
शैलेश गांधी कहते हैं कि नियुक्ति में इस तरह से मनमानी की वजह से पदाधिकारियों की जवाबदेही भी सुनिश्चित नहीं हो पाती और इससे लोकतंत्र में नियंत्रण और संतुलन का नुकसान होता है. उनका सुझाव है कि और पारदर्शिता के लिए शार्ट लिस्ट किए गए सभी आवेदकों के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए और चयन से पहले उनका कम से कम एक साक्षात्कार होना चाहिए जिसके बारे में जनता को भी जानकारी हो.
सुप्रीम कोर्ट पहले ही नियुक्तियों के बारे में इस तरह के आदेश दे चुका है. अदालत के आदेश के अनुसार सर्च समिति के सदस्यों के नाम, शार्ट लिस्ट किए गए आवेदकों के नाम और उन्हें चुने जाने के मानदंडों को संबंधित सरकारी विभाग की वेबसाइट पर डाल देना चाहिए, लेकिन एक्टिविस्टों का कहना है कि इस आदेश का पालन नहीं हो रहा है.
जानकार कहते हैं कि अगर सूचना आयोग में नियुक्तियों का यही हाल रहा, तो इससे सूचना के अधिकार को और नुकसान होगा, सरकारी काम काज में पारदर्शिता कम हो जाएगी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा.
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