सुहागरात में सफेद चादर, खून के धब्बे और पिछड़ी सोच
५ मार्च २०२१हमारा समाज आज भी कितना पिछड़ा हुआ और दकियानूसी सोच रखता है, इसकी बानगी एक नए प्रोडक्ट के व्यंग्यात्मक प्रमोशनल वीडियो में दिखती है. म्यूजिक के साथ वीडियो शुरू होता है, खिड़की से दिन की रोशनी अंदर झांकती हुई दिखती है और इसी बीच एक बिस्तर के ऊपर सफेद चादर हवा में लहराती नजर आती है. अब एक व्यक्ति रंगीन बॉक्स खोलता है, जिसे फूलों से सजाया गया है. इस बॉक्स के अंदर एक सफेद चादर है.
इसी दौरान स्क्रीन पर लिखा आता है ‘ट्रैडिशनल वर्जिनिटी टेस्ट'. आगे अब इस चादर की खासियतों का जिक्र आता है, जिसमें 250 थ्रेड काउंट कॉटन, फ्लोरल एंब्रॉयडरी आदि इसकी विशेषताएं बताई गई हैं. इसके बाद जो जानकारी स्क्रीन पर आती है वह हमारी पिछड़ी सोच को दर्शाती है. ‘ब्लडस्टेन मैनटेनेंस गारेंटीड', इसका मतलब यह है कि शादी की पहली रात जब महिला पहली बार शारीरिक संबंध बनाती है तो खून निकलता है. खून के वे धब्बे इस चादर पर स्पष्ट रूप से दिखेंगे.
इस वीडियो को मोरक्को के अल्टरनेटिव मूवमेंट फॉर द डिफेंस ऑफ इंडिविजुअल फ्रीडम (माली) के लिए बनाया गया है. इस संगठन ने यह कैंपेन इसी साल फरवरी में लॉन्च किया है, ताकि उस मिथक को तोड़ा जा सके, जिसके अनुसार यह निर्धारित करना संभव है कि महिला वर्जिन (कुंवारी) है. मोरक्को की महिला अधिकार कार्यकर्ता और माली की संस्थापक इटिसाम बेट्टी लचगर कहती हैं, "सुहागरात को खून आना सिर्फ खून की बात नहीं है. चादर और खून तो सिर्फ प्रतीकात्मक हैं. यह महिला के कौमार्य से संबंधित है और पितृसत्तात्मक समाज की एक काल्पनिक अवधारणा है.”
कौमार्य परीक्षण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं
मोरक्को और कई अन्य देशों में महिलाओं की शुद्धता को बेशकीमती माना जाता है और इसके लिए उन पर नजर भी रखी जाती है. महिलाओं को अपनी कौमार्यता साबित करनी पड़ती है या फिर उन्हें तिरस्कार और हिंसा का सामना करना पड़ता है. उदाहरण के लिए, सऊदी अरब में एक व्यक्ति ने सुहागरात से पहले पत्नी को अपने परिवार के साथ कौमार्य परीक्षण के लिए अस्पताल जाने को मजबूर किया. इसके लिए हिंसा का भी सहारा लिया. यह घटना मीडिया की सुर्खियों में रही.
इस बात को लेकर सटीक आंकड़े नहीं हैं कि दुनियाभर में कितने कौमार्य परीक्षण किए जाते हैं या उनके लिए अनुरोध किया जाता है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए एक वैश्विक खतरा जरूर है. साल 2018 के इस बयान में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा, "कौमार्य परीक्षण का कोई वैज्ञानिक आधार और क्लिनिकल संकेत नहीं है. अभी तक कोई भी ऐसा परीक्षण नहीं है जो शत-प्रतिशत साबित कर सके कि महिला ने कभी सेक्स किया है या नहीं.”
चादर पर खून के धब्बों से कौमार्य निर्धारण सिर्फ एक तरीका है, जिसके खिलाफ निजी आजादी के लिए लड़ रहा संगठन माली उठ खड़ा हुआ है. महिला की पवित्रता की जांच के कई और तरीके भी हमारे दकियानूसी समाज ने बना रखे हैं. एक तरीका यह भी है कि शादी से पहले महिला को डॉक्टर के पास जाकर अपने कुंवारेपन का प्रमाण पत्र हासिल करना होता है.
दर्दनाक होता है परीक्षण
कुंवारेपन का प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए महिलाओं को अन्य प्रकार के कौमार्य परीक्षण से गुजरना पड़ सकता है. इस परीक्षण के लिए महिला की योनि में उंगली डालना भी शामिल है. कई रिसर्च में पता चला है कि पहली बार सेक्स करने पर कई महिलाओं को न तो दर्द का एहसास होता है और न ही खून आता है. यही नहीं, योनि के अंदर मौजूद हाइमन (झिल्ली) भी कई बार नहीं टूटती.
वाशिंगटन के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में फैमिली मेडिसिन की प्रोफेसर और फिजिशियंस टू ह्यूमन राइट की वरिष्ठ चिकित्सा सलाहकार रनित मिशोरी कहती हैं, "इस तरह के तथाकथित कौमार्य परीक्षण बहुत ही दर्दनाक और असुविधाजनक हो सकते हैं. इसमें आमतौर पर डॉक्टर, महिला की योनि में दो उंगलियां डालकर परीक्षण करता है. इसे टू-फिंगर टेस्ट कहा जाता है. यदि किसी महिला की इच्छा के विरूद्ध ऐसा किया जाता है तो इसे यौन हिंसा की श्रेणी में रखा जाता है.”
फ्रांस, अफगानिस्तान, मिस्र और भारत जैसे कुछ देशों ने कौमार्य परीक्षण के खिलाफ कानून और नियम बनाए हैं. हालांकि, साल 2011 में सरकार गिरने से पहले मिस्र के अधिकारी विरोध प्रदर्शनों में शामिल महिलाओं को गिरफ्तार करके उन्हें जबरन वर्जिनिटी टेस्ट के लिए मजबूर करते थे. मिशोरी कहती हैं, "इस तरह के परीक्षण मानवाधिकारों के हनन के अलावा कुछ नहीं हैं.”
पितृसत्ता का औजार है वर्जिनिटी टेस्ट
माली कैंपेन के लिए बनाए गए एक अन्य वीडियो में मोरक्को की एक महिला ने खुद को कुंवारी साबित करने की पीड़ा के बारे में बताया. 27 वर्षीय अमीरा ने बताया कि शादी से पहले की कई तैयारियों में से एक यह भी था कि मुझे क्लिनिक जाकर अपने कुंवारेपन का टेस्ट करवाना पड़ा. उनका चेहरा कैमरे पर नहीं दिखाया गया, लेकिन उनकी दर्द आवाज में साफ तौर पर झलकती है. उन्होंने आगे बताया, "डॉक्टर का टेस्ट एक बात है, लेकिन अभी असली टेस्ट (बेडशीट टेस्ट) मेरा इंतजार कर रहा था, जो सुहागरात को होना था.”
जिन लड़कियों की शादी होने वाली है उन्हें पहले कभी सेक्स नहीं करने के बावजूद, सुहागरात वाले टेस्ट (बेडशीट टेस्ट) में पास होने के लिए कई समाधान तलाशने होते हैं. इसमें नकली खून, टाइटनिंग जेल, पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज और यहां तक कि हाइमनोप्लास्टी नाम की सर्जरी शामिल है. लचगर और माली इन उत्पादों पर प्रतिबंध लगवाना चाहते हैं और उनके पीछे की भावना को खत्म करना चाहते हैं. हालांकि, एक तर्क यह भी है कि जब तक समाज में पवित्रता की अवधारणा मौजूद है तब तक यह उत्पाद तथाकथित कौमार्य को हुए नुकसान को दूर करने के साधन हैं.
महिलाओं के हित में फैसले की सलाह
उदाहरण के लिए, जर्मनी की एक कंपनी वर्जीनियाकेयर नाम से हाइमन ब्लड कैपसूल और नकली वर्जिनिटी सर्टिफिकेट जैसे उत्पाद बनाती है. इस कंपनी के निदेशक अक्सर मीडिया में कहते हैं कि उनकी कंपनी समाज की सेवा कर रही है. एक बयान में कंपनी इस बात पर सहमति जताती है कि यौन शिक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन कुछ ग्राहकों की कौमार्य को लेकर धारणा को बदलने में लंबा वक्त लग सकता है. उनके लिए महिला को खतरे से बाहर रखने के लिए ब्लड कैपसूल एक आपातकालीन उत्पाद के रूप में उपलब्ध है.
बीएमजे ग्लोबल हेल्थ इन 2020 में प्रकाशित एक पेपर में चिकित्सकों ने इन्हीं बिंदुओं पर बात की. इसमें स्वीकार किया गया कि वर्जिनिटी टेस्ट मानवाधिकारों का उल्लंघन है और इसे समाप्त होना चाहिए. इसके साथ ही इस पेपर में लिखा गया कि यदि महिलाओं को के प्रमाणपत्र नहीं दिए जाते हैं तो उन्हें सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और संभावित रूप से शारीरिक नुकसान हो सकता है.
उन्होंने उन चिकित्सकों को सलाह दी है, जिनके पास ऐसी चीजों के लिए महिलाएं आती हैं. चिकित्सकों को इस पर सावधानीपूर्वक विचार करके कम से कम नुकसान पहुंचाने वाले समाधान की सलाह देने को कहा गया है. भले ही वह चिकित्सक इस बारे में अच्छे से जानता हो कि वर्जिनिटी टेस्ट जैसी कोई चीज नहीं होती.
कौमार्य परीक्षण बंद होना चाहिए
लचगर नुकसान की भरपाई वाली बात से इत्तेफाक नहीं रखतीं. वह ऐसा तर्क देने वाले लोगों को भी अपराधी जैसा ही मानती हैं. वह कहती हैं, "ऐसे लोग अपराधियों के पक्ष में खड़े हैं. वे महिलाओं की रक्षा नहीं कर रहे. वे ऐसी संस्कृति का हिस्सा हैं, जो लड़कों और पुरुषों को सिखाती है कि लड़कियां और महिलाएं वस्तु हैं और उनकी छवि वेश्या या सिर्फ मां की होती है.”
मिशोरी भी इस बात से सहमत हैं. वह कहती हैं, ”इस तरह के कृत्य सिर्फ लैंगिक असमानता को मजबूत करने का काम करते हैं. साथ ही, महिला कामुकता, शारीरिक रचना व स्वायत्तता के पितृसत्तात्मक विचारों का समर्थन करते हैं.”
मिशोरी ने कहा, "सबसे महत्वपूर्ण उपाय तो यह होगा कि समाज को इस बात की जानकारी दी जानी चाहिए कि कौमार्य परीक्षण जैसा कोई टेस्ट होता ही नहीं है. सभी सरकारों और स्वास्थ्यकर्मियों की महिलाओं के प्रति जिम्मेदारी है कि वह हाइमन और कौमार्य परीक्षण में इसकी तथाकथित भूमिका के बारे में मिथकों को वैज्ञानिक आधार पर दूर करें.”
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