सीरिया से जर्मनी आए शरणार्थी को क्या मिला
३१ अगस्त २०२०जर्मन में "वीअर शाफेन डस" या फिर अंग्रेजी में "वी कैन डू इट" का एक ही मतलब है कि हम यह कर सकते हैं. कुछ लोग इस वाक्य को सुन कर खीझते हैं तो कुछ लोग इसे चुनौती की तरह स्वीकार करते हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से जुड़ी कौन सी बात आपको पसंद है इस बारे में आप सोच सकते हैं लेकिन उन्होंने अपने लंबे कार्यकाल में इन शब्दों को बार बार दोहराया है.
इसकी एक वजह यह है कि वो झंझावातों के समय हमेशा डटी रही हैं और स्थिरता को सुनिश्चित किया है. इन शब्दों का उनकी प्रतिष्ठा में बड़ा योगदान है, ना सिर्फ जर्मनी के बाहर बल्कि जर्मनी में भी. हर जगह उनके बारे में इन शब्दों की बात होती है.
मैर्केल को मेरी जन्मभूमि सीरिया में इन शब्दों को बोलने के बहुत पहले से ही लोग अच्छी तरह जानते हैं. वो महिलाओं की ताकत का प्रतीक हैं. पितृ प्रधान बहुत से देशों की अनेकों महिलाओं ने उनसे सीखा है कि वो भी उन कामों को करने में सक्षम हैं जो सिर्फ पुरुषों के समझे जाते हैं.
"वी कैन डू इट" यह मुहावरा इस सच्चाई को दिखाता है कि समेकन वास्तव में एक सामूहिक प्रक्रिया है. यहां "वी" से चांसलर का मतलब है जर्मन समाज से है. खासतौर से बड़ी संख्या में सामने आए स्वयंसेवकों से. (उनमें से कई मुझे 2015 में मिले थे.) यहां "इट" का मतलब है मेरे जैसे शरणार्थी और "कैन" उन्होंने सब के लिए इस्तेमाल किया. वो सारे लोग जो साथ मिल कर कुछ हासिल करना चाहते हैं."
बीते पांच सालों ने यह दिखा दिया है कि आपसी भरोसा, स्वीकार्यता और दूसरों के बारे में विचार कर हम बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं.
अनचाही उड़ान
आमतौर पर कोई भी अपना देश छोड़ कर खुश नहीं होता और ज्यादातर लोग स्वतंत्र रूप से अपनी मर्जी से यह काम नहीं करते. अपना देश हर किसी के लिए हमेशा बहुत खास होता है. जब आपके अपने इलाके में, जानी पहचानी जगहों में हर तरफ अचानक खौफ फैल जाए तो क्या होगा? जब हर चीज तोड़ी जा रही हो या फिर पहले ही तोड़ दी गई हो? जब युद्ध, उत्पीड़न या तबाही आपसे आपके सारे अधिकार छीन ले?
शरणार्थी भी लोग हैं और उनके साथ उसी तरह व्यवहार होना चाहिए ना कि किसी "बाढ़," "बहाव," "संकट" या फिर "समस्या" की तरह. इस तरह के शब्दों को सामाजिक रूप से और मीडिया में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह बहुत तकलीफ देते हैं.
अच्छे बुरे लोग हर जगह
केवल 2015 में ही 890,000 शरणार्थी जर्मनी आए. हालांकि आज भी अपराधों के सिलसिले में केवल उन्हीं के बारे में बात होती है. शरणार्थी भी इंसान हैं वो कोई संत नहीं हैं, तो यह बिल्कुल होता है कि उनमें से कुछ बेवकूफी या फिर अपराध करते हैं. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जब कोई अपराधी शरणार्थी भी होता है तो उसकी राष्ट्रीयता अहम हो जाती है. अकसर ही सारे शरणार्थियों को एक ही कतार में खड़ा कर दिया जाता है.
अच्छे और बुरे लोग हर जगह, हर देश और संस्कृति में हैं और उनका कोई धर्म नहीं होता. पूरी दुनिया में पढ़े लिखे और अशिक्षित, इज्जतदार और असभ्य, हिंसक और शांतिप्रिय लोग होते हैं.
आप्रवासन समाधान भी हो सकता है
मैर्केल के "वी कैन डू इट" कहने के बाद बीते पांच सालों में हमने बहुत कुछ किया है. यह सब चांसलर, सरकार और असंख्य स्वयंसेवकों के साथ ही समाज के खुलेपन और लोगों की वजह से संभव हुआ. निश्चित रूप से इसमें शरणार्थी बन कर आए लोगों की मेहनत का भी योगदान है.
जब आप किसी नए देश में जाते हैं तो आपको बहुत कुछ सीखना और समझना होता है. सबसे पहले तो भाषा, उसके बात तौर तरीके, जीने का ढंग और संस्कृति के पहलू. यह रातोंरात नहीं हो जाता. इसके लिए जरूरी है कि उस देश के लोग इस राह पर आपकी मदद करें, वो आपसे बात करें, आपको चीजें समझाएं और गलतफहमियों को दूर करें. साथ ही ऐसे लोग भी चाहिए जो आपके साथ खुशी के पल बांटें.
मेरे दोस्तों में लगभग हर कोई इस रास्ते से गुजरा है और अब बहुत कुछ हासिल कर लिया है. उन्हें ऐसे कारोबारी और टीचर मिले हैं जो मानते हैं कि सीरिया से जर्मनी आए लोग बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं.
शुरू से ही मुझे एक बात पता थी कि समय भले लगे लेकिन कुछ हासिल जरूर होगा. अब कोरोना के संकट ने यह साबित कर दिया है कि हेल्थकेयर सिस्टम में प्रवासी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं, साथ ही यह भी लोगों को साफ हो जाना चाहिए कि आप्रवासन ही सारी समस्याओं की जड़ नहीं है जैसा कि कभी गृह मंत्री हॉर्स्ट जेहोफर ने कहा था. वास्तव में यह कई समस्याओं का समाधान है.
आपकी याद आएगी मैर्केल
आप्रवासन आर्थिक विकास को तेज करता है और देशों के बीच के अंतर को घटाता है, साथ ही अलग अलग समाजों और संस्कृतियों को जोड़ता है. जब लोग एक दूसरे को उसकी गलतियों और खूबियों के साथ स्वीकार करते हैं तो यह हास्य भी पैदा करता है. वास्तव में यह संस्कृतियों को समृद्ध करता है.
श्रीमती मैर्केल आपके लिए मेरे मन में बहुत गहरा सम्मान है. आपकी वजह से ही मैं यह सब लिख पा रहा हूं और बहुत शुक्रिया कि आपने एक खुले, उचित और बहुरंगी समाज के लिए काम किया है. एक साल बाद जब आप चांसलर दफ्तर में नहीं रहेंगी तो मुझे आपकी याद आएगी.
खलील खलील(31) का जन्म सीरिया के अलेप्पो में हुआ और वह 2015 के आखिरी महीनों से जर्मनी में रह रहे हैं. सीरिया में उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी कर ली थी. फिलहाल वे ऑडियो विजुअल मीडिया डिजायनर के रूप में ट्रेनिंग ले रहे हैं. 2019 में उन्हें बाडेन वुर्टेमबर्ग राज्य ने संस्कृति और परंपराओं में उनके विशेष योगदान के लिए सम्मान दिया. अपनी नौकरी के लिए ट्रेनिंग के साथ ही वह शरणार्थी, एकीकरण, भाषा, बोली, लोकतंत्र और संस्कृति पर लेक्चर देते हैं.
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