सम्राट छोड़ रहे हैं गद्दी, अब जापान में क्या होगा?
३ अप्रैल २०१९आधिकारिक तौर पर अकीहीतो 30 अप्रैल तक जापान के सम्राट रहेंगे. उन्होंने 30 साल के अपने शासन के दौरान राजशाही के कई नियमों को नए सिरे से परिभाषित किया. इसके लिए उनकी तारीफ भी हुई और आलोचना भी. उनके शासनकाल को जापान में 'हेईसेई' के नाम से जाना जाता है. हेईसेई के बाद के काल को 'राइवा' नाम से जाना जाएगा.
हेईसेई युग में जापान ने कई उतार चढ़ाव देखे. इस दौरान देश की आर्थिक रफ्तार धीमी पड़ी. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का रुतबा चीन ने उससे छीन लिया. इस दौरान देश पर कर्ज भी बढ़ा तो जापानी आबादी की औसत आयु भी घट गई. हेईसेई युग में जापान में सियासी उथल पुथल भी खूब रही. इस दौरान कुल 17 प्रधानमंत्री हुए. इनमें से सिर्फ चार ही ऐसे रहे जिनका कार्यकाल दो साल से ज्यादा रहा.
इन देशों में आज भी है राजा का शासन
इस तरह की अनिश्चितता के बावजूद हेईसेई युग में सम्राट अकीहीतो और उनकी पत्नी मिचिको जापानी समाज के लिए भरोसे और विश्वसनीयता का स्रोत बने रहे. उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं के पीड़ितों को सहारा दिया. उन्होंने इंसानियत की मिसालें पेश कीं और दूसरे विश्व युद्ध की स्मृतियों को सहेज कर रखने के लिए वह जापान की नैतिक चेतना के प्रतीक भी बन गए.
जब अकीहीतो ने 1989 में जापान के सम्राट की गद्दी संभाली तो देश में राजशाही एक संकट से जूझ रही थी. दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद जापानी सम्राट ने जनता के बीच अपनी दैवीय मान्यता खो दी थी. अकीहीतो के पिता सम्राट हीरोहोती ने शाही गद्दी को लोगों के करीब लाने का प्रयास किया. लेकिन जापानी सम्राट को लेकर आम लोगों के बीच इतना ज्यादा सम्मान था कि उस दूरी को नहीं पाटा जा सका.
बदलाव के पैरोकार सम्राट हीरोहीतो अपने देश में ब्रिटेन जैसी संवैधानिक राजशाही व्यवस्था चाहते थे. उन्होंने अपने बेटे की ट्यूटर के तौर पर बच्चों की किताबें लिखने वाली अमेरिकी लेखिका एलिजाबेथ ग्रे विनिंग को चुना ताकि आने वाले सम्राट की परवरिश अलग तरह से हो. ग्रे विनिंग ने अकीहोतो को विदेशी विचारों के साथ साथ राजशाही को लेकर एक यूरोपीय समझ भी दी.
आम लोग जो शाही परिवारों के नूर ए नजर बने
अकीहीतो ने अपनी जीवनसाथी के तौर पर एक मध्यवर्गीय महिला मिचिको को चुना. उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश खुद के घर में ही की और उन्हें पढ़ने के लिए ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भेजा. गद्दी संभालने के बाद अकीहीतो ने कहा कि वह जापानी लोगों की खुशी का ख्याल रखेंगे और यह भी सुनिश्चित करेंगे कि राजशाही आधुनिक जापान के मुताबिक हो.
अकीहीतो और उनकी पत्नी ने जापानी लोगों के साथ खास रिश्ता कायम किया और वह अकसर सार्वजनिक कार्यक्रम में दिखते रहे हैं. 1991 में ज्वालामुखी फटने के बाद वह सादा कपड़ों में प्रभावित इलाकों में गए और पीड़ितों को सांत्वना दी. जापान के कट्टरपंथी उनके इस कदम से हक्के बक्के रह गए, लेकिन जापानी मीडिया और जनता ने इसे बहुत पसंद किया.
जापानी राजशाही पर विशेषज्ञता रखने वाले लोगों का कहना है कि अकीहीतो जापानी कट्टरपंथियों के दबाव में गद्दी छोड़ रहे हैं. इन लोगों का मानना है कि सम्राट बहुत बूढ़े हो गए हैं और उनकी तबियत ठीक नहीं रहती. दूसरी तरफ अकीहीतो अपने शासन की विरासत को लेकर चिंतित बताए जाते हैं. वह चाहते हैं कि उन्होंने जापानी सम्राट की जो छवि बनाई है, उसे संरक्षित रखा जाए.
सम्राट अकीहीतो और महारानी मिचिको के बेटे और मौजूदा युवराज नारुहीतो अब राजगद्दी संभालेंगे. नागोया यूनिवर्सिटी के एक विशेषज्ञ हिदेया कावानिशा का कहना है, "अकीहीतो इसलिए समय से पहले गद्दी छोड़ रहे हैं क्योंकि वह अपनी सारी गतिविधियां अपने बेटे को सौंपना चाहते हैं." क्राउन प्रिंस नारुहीतो ने फरवरी में कहा कि वह अपने माता पिता के कामों को आगे बढ़ाएंगे.
रिपोर्ट: मार्टिन फ्रित्स/एके