समलैंगिकताः देर आए दुरुस्त आए
१० जुलाई २००९समलैंगिकता को समानता का दर्जा देने के प्रश्न पर दिल्ली हाई कोर्ट के साहसिक फ़ैसले के बारे में दैनिक नोए त्स्युइरिशर त्साइटुंग का कहना है, "दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले से नेताओं पर पुरातनपंथी क़ानूनों को बदलने का दबाव बढ़ जाएगा. वर्तमान क़ानून ब्रिटिश उपनिवेशी शासन ने 1861 में बनाया था. भारत की आज की वास्तविकता के साथ उसका कोई मेल नहीं बैठता. इस बीच महानगरों में पुरुष और महिला समलैंगिकों की अच्छी ख़ासी चहल पहल है."
न्यायालय ने अपने फ़ैसले में कहा, "भेदभाव समानता का विपरीत है. समानता की मान्यता से वैयक्तिक गरिमा बढ़ती है." इसे विषय बनाते हुए म्युनिक के ज़्युइडडोएचे त्साइटुंग ने लिखा है, "यह ज्ञानबोध भारत के मानवाधिकार संगठनों, दमित समलैंगिकों, उभयलैंगिकों और हिजड़ों की बिरादरी के लिए बड़ी देर से आया है. महानगरों में बढ़ते हुए उदारवाद के बावजूद समलैंगिकों का सामाजिक बहिष्कार अब भी जारी है, ख़ासकर देहातों में. बहुतों को तो हताश होकर मौत की ही शरण लेनी पड़ती है."
कोई छोटी-मोटी बात नहीं
दैनिक वेल्ट को ख़ुशी है कि भारत भी अब 21वीं सदी में पहुंच गया है. अख़बार के मुताबिक़, "यौन भारत में एक वर्जित विषय रहा है. मीडिया और मुख्यतः बॉलीवुड ने इस बीच उसके प्रति सामाजिक चेतना को बदला है और उसे सकारात्मक रूप दिया है. एक ऐसे देश में, जहां स्त्री-पुरुष के बीच खुले आम चुंबन-आलिंगन तक से लोग भड़क जाते हैं, वहां समलैंगिकों के लिए समान अधिकार कोई छोटी-मोटी बात नहीं है."
तूफ़ान में दिया
भारत के पड़ोसी पाकिस्तान में 8 जुलाई को एक संयुक्त राष्ट्र जांच आयोग ने पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की हत्याकांड की जांच करना शुरू किया. इस पर बर्लिन के दैनिक टागेसत्साइटुंग ने लिखा, "यह आयोग तूफ़ान में दिया जलाने चला है. भुट्टो की हत्या पाकिस्तान में एक राजनैतिक बिसात है. वहां का एलीट हमेशा भारत की तरफ़ उंगली उठाता रहा है. इस पूर्वी पड़ोसी से कथित ख़तरे का मिथक ही पाकिस्तान की नींव का पत्थर है. इस मिथक को एक-से-एक बेहूदा आरोपों के द्वारा आज तक ज़िंदा रखा गया है. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के शिखर नेता, ख़ासकर भुट्टो के पति और मौजूदा राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी पत्नी की हत्या को शुरू से ही राजनैतिक हथकंडा बनाते रहे हैं. भुट्टो के मरणोपरांत प्रकाशित उनकी पुस्तक में उन्होंने स्वयं लिखा है, मुशर्रफ़ सरकार के कतिपय तत्व उन्हें मार डालना चाहते थे. इस में संदेह ही है कि संयुक्त राष्ट्र जांचकर्ता आरोपों-प्रत्यारोपों के इस घालमेल में कोई रोशनी डाल पाएंगे."
संकलनः अना लेमान/राम यादव
संपादनः ए कुमार