संक्रमण काल के पोप हैं फ्रांसिस
१४ मार्च २०१३एक बार फिर पोप चुनाव पर पुरानी कहावत सच साबित हुई. "जो पोप के रूप में कॉन्क्लेव में जाता है कार्डिनल के रूप में बाहर आता है." इस बार भी कोई टॉप फेवरिट पोप नहीं चुना गया. एक ऐसा व्यक्ति पोप चुना गया जो सादगी और मानवीय सहायता के क्षेत्र में सक्रियता के लिए जाना जाता है. अर्जेंटीना के खोर्खे मारियो बैर्गोलियो तीसरी सदी के तीसरे पोप हैं. जेसुईट फादर ने पोप के रूप में अपने लिए फ्रांसिस प्रथम का नाम लिया है. अपने देश में उन्होंने साबित किया है कि वे श्रद्धालुओं के करीब रहने वाले धर्मगुरु हैं, वो उनकी चिंताओं और परेशानियों को जानते हैं. और ये इस दुनिया की झुग्गी-झोपड़ियों, टाउनशिप और शरणार्थी शिविरों में रहने वाले कैथोलिकों के लिए उम्मीद की बड़ी किरण है. लैटिन अमेरिका में श्रद्धालु ऐसा पोप चाहते थे जो जीवन के करीब हो.
पेट्रुस का यह उत्तराधिकारी भी अनुदारवादी है, जिस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि उनके पहले के दो पोपों ने 35 साल तक सिर्फ कंजरवेटिव बिशपों को कार्डिनल का दर्जा दिया है और इस तरह उन्हें ही पोप चुनाव का मतदाता बनाया है. पोप फ्रांसिस शायद ही चर्च में सुधार लाने वाला साबित होंगे जिसकी बहुत से आलोचक उम्मीद कर रहे हैं. उन्होंने सामाजिक विषमता की साफ शब्दों में आलोचना के कई मौके इस्तेमाल किए हैं, लेकिन वे अत्यंत अनुदारवादी कैथोलिक संगठन क्म्युनियोने ए लिबरासियाने के करीब माने जाते हैं. लैटिन अमेरिका का आजादी का धर्मशास्त्र उनके लिए परेशानी रहा है. क्या ऐसा पोप कैथोलिक धर्मशास्त्र के मील के पत्थरों पर सवाल उठा पाएगा.
और क्या ऐसे पोप को चुने जाने के लिए बधाई दी जा सकती है. 76 वर्षीय पोप के सामने जिम्मेदारियां और चुनौतियां विशाल हैं. सबसे पहले उन्हें भरोसा वापस जीतना होगा. कैथोलिक पादरियों द्वारा बच्चों और किशोरों के साथ यौन दुराचार के मामलों ने उनके गिरजे की छवि को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया है और खासकर पश्चिमी देशों में बड़े पैमाने पर चर्च से लोगों के इस्तीफे की वजह बना है.
पोप फ्रांसिस को फौरन चर्च के आंतरिक सुधारों को अंजाम देना होगा. वहां पादरियों और गैर अधिकारियों में बंटे दो वर्गीय समाज को खत्म करना होगा और चर्च में मजबूत करनी होगी. गिरजे के सामान्य काम काज में बड़ी भूमिका निभानेवाली महिलाओं की स्थिति सुधारे जाने की जरूरत है. ब्रह्मचर्य के फायदे और नुकसान पर खुला संवाद भी होना चाहिए. इसके अलावा धार्मिक तौर पर तलाक लेकर फिर शादी करने वालों और विभिन्न संप्रदायों के दंपत्तियों के साथ होने वाले बर्ताव में बदलाव की जरूरत है. गैर कैथोलिक गिरजों, खासकर प्रोटेस्टेंट गिरजे के साथ संबंधों पर पुनर्विचार होना चाहिए. अंतरधार्मिक संवाद आगे बढ़ना चाहिए.
लेकिन वैटिकन में भी बदहाली है. पोप के दस्तावेजों की चोरी वाला वैटिलीक्स कांड हो या चर्च प्रशासन के अंदर साजिशें, ये सब इस बात का सबूत हैं कि हालात ठीक नहीं हैं. 1.2 अरब कैथोलिकों के धर्मगुरु से ईर्ष्या नहीं की जा सकती. उनकी उम्र भी यह संदेह पैदा करती है कि वे भविष्य के नेता हैं. उनके चुनाव से ऐसा लगता है कि कार्डिनलों ने फिर से एक अंतरिम पोप चुना है, नई राहों वाला पोप नहीं. कैथोलिक गिरजे की हालत को देखते हुए शायह कॉन्क्लेव ने एक मौका गंवा दिया है. लेकिन कभी कभी आस्था पहाड़ को भी हिला देती है.
रिपोर्ट: क्लाउस क्रेमर/एमजे
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी