श्रीलंका की सरकार एक बार फिर राजपक्षे परिवार के हाथ में
२१ नवम्बर २०१९गोटाबाया और महिंदा राजपक्षे श्रीलंका में तमिल अलगाववादियों के साथ चल रहे गृहयुद्ध को खत्म करने का श्रेय लेते हैं. करीब एक दशक पहले के गृहयुद्ध में देश की कमान महिंदा राजपक्षे के हाथ में थी और सुरक्षा बलों की कमान गोटाबाया के हाथ में. महिंदा राजपक्षे दो बार पहले ही देश के राष्ट्रपति रह चुके हैं इसलिए इस बार उन्होंने चुनाव में अपने छोटे भाई गोटाबाया को आगे कर दिया. शनिवार को हुए चुनाव के बाद जब गोटाबाया ने जीत हासिल कर ली तो प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद गुरुवार को गोटाबाया ने महिंदा राजपक्षे को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त किया. एक संक्षिप्त समारोह में महिंदा राजपक्षे ने देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.
70 साल के गोटाबाया सिंहली और बौद्ध समुदाय में अपनी लोकप्रियता के बल पर देश के राष्ट्रपति चुने गए हैं. तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यकों में बेहद लोकप्रिय होने के बावजूद उदार नेता सजिथ प्रेमदासा को हार का मुंह देखना पड़ा. अप्रैल में हुए आत्मघाती हमले में 269 लोगों की जान जाने के बाद राजपक्षे ने देश की सुरक्षा के नाम अपना चुनाव अभियान चलाया.
अतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इसी महीने कहा था कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था आत्मघाती हमले के असर से बाहर निकल रही है. इस हमले के बाद से देश के पर्यटन उद्योग को खासा नुकसान पहुंचा था. इस साल यहां विकास की दर 2.7 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है जो अगले साल 3.5 फीसदी तक जा सकता है. 2018 में यह दर 3.2 फीसदी थी.
इसी महीने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 1.5 अरब डॉलर का बेल आउट पैकेज श्रीलंका को दिया है. यह मदद 2018 के अक्टूबर में संवैधानिक संकट पैदा होने के बाद निलंबित कर दी गई थी. अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिश का कहना है कि इस पैसे के साथ ही बॉन्ड जारी होने की भी संभावना है और इस तरह से श्रीलंका के कर्जों की चिंता फिलहाल टल जाएगी. हालांकि फिश के मुताबिक, "बाहरी कर्ज का भुगतान 2020-2023 के बीच 19 अरब डॉलर रहेगा जब कि देश के पास कुल रिजर्व महज 7.8 अरब डॉलर का होगा." फिश का कहना है कि पिछली सरकार के चलाए आर्थिक सुधार कार्यक्रम से पीछे हटने का असर श्रीलंका और आईएमएफ के रिश्तों पर पड़ सकता है.
श्रीलंका के सेंट्रल बैंक ने फिश की इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है. श्रीलंका के सेंट्रल बैंक ने बयान जारी कर कहा है, "फिश रेटिंग की तरफ से जारी बयान से ऐसा लगता है कि यह पूरी तरह से हार के अनुमानों पर तैयार किया गया है जिसकी पुष्टि नहीं की जा सकती."
2005 से 2015 के बीच जब देश के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे थे तब श्रीलंका ने बुनियादी निर्माण की परियोजनाओं के लिए 7 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज लिया. इनमें से ज्यादातर परियोजनाएं सफेद हाथी साबित हुईं और श्रीलंका कर्ज के दलदल में फंस गया.
शुक्रवार को जब नए प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे अपनी कैबिनेट का एलान करेंगे तब शायद यह अंदाजा लगाया जा सकेगा कि श्रीलंका की नीतियां अब किस ओर जाएंगी.
महिंदा राजपक्षे 2004-2005 के बीच और पिछले साल के संवैधानिक संकट के दौरान 52 दिन के लिए प्रधानमंत्री रहे थे हालांकि बाद में उनकी नियुक्ति को देश की सर्वोच्च अदालत ने असंवैधानिक ठहरा दिया था. फिलहाल वो एक अल्पमत सरकार का नेतृत्व करेंगे क्योंकि देश में मार्च से पहले संसदीय चुनाव नहीं हो सकते. उनकी पिछली सरकार को अंतरराष्ट्रीय आलोचना भी झेलनी पड़ी थी क्योंकि गृहयुद्धों के दौरान मारे गए करीब 40 हजार से ज्यादा आम लोगों के मौत की जांच नहीं कराई गई थी.
एनआर/एमजे (एएफपी)
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