शार्क से बचाएगा अलार्म
२७ मई २०१४ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक एक ऐसी ही बॉय तैयार कर रहे हैं जिसमें फिट उपकरण शार्क या उसके जैसे अन्य सिग्नल भांप कर अलार्म बजा देगी. इससे तैराक शार्कों के हमले से बच सकेंगे और समुद्र में तटरक्षकों के साथ होने वाले हादसों को कम किया जा सकेगा. बॉय ये संदेश सैटेलाइट के जरिए भेजेगी.
इस तकनीक पर काम कर रही संस्था शार्क मिटिगेशन सिस्टम के सहसंस्थापक हैमिश जॉली कहते हैं, "हम तट पर काम करने वाले एक ऐसे डिटेक्शन सिस्टम पर काम कर रहे हैं जो तट के आसपास के इलाके में आने वाली सभी शार्कों पर नजर रखता है."
इसमें वही तकनीक इस्तेमाल की गई है जिसे पानी के अंदर रहने वाली सील मछली को तेल के स्रोतों के पास जाने से बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक की खासियत यह है कि यह शार्क का चेहरा पहचान सकती है. जॉली के अनुसार चेहरा पहचानने वाले सोनार सॉफ्टवेयर को विकसित करना इस उपकरण को तैयार करने में सबसे बड़ी चुनौती रही.
जॉली ने बताया, "हमने इस बात की पुष्टि कर दी है कि हम सोनार की मदद से शार्क को देख सकते हैं. हमने सिस्टम को शार्क की आहट के अनुसार भी ढाला है. लेकिन अब इतना और करना बाकी है कि सिस्टम शार्क या किसी अन्य जीव के बीच अंतर कर सके." जॉली ने बताया कि समुद्र के तल में स्थापित किया गया सोनार पानी पर तैरते बॉय से सिग्नल के जरिए संपर्क स्थापित करेगा. शार्क के बॉय के आसपास न होते हुए भी दूर से ही उसके आने की खबर मिल जाएगी और शार्क के कारण होने वाले हादसों को रोका जा सकेगा.
बीते सालों में ऑस्ट्रेलियाई तटों पर शार्कों के हमलों में मारे गए लोगों की संख्या बढ़ी है, जिसने ऑस्ट्रेलिया के लिए चिंता खड़ी कर दी है. इससे बचने के पारंपरिक तरीके नेट लगाना या इलेक्ट्रॉनिक टैगिंग है. पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तटों पर इन तरीकों से शार्कों को मारने और पकड़ने का चलन बढ़ा है.
जॉली ने बताया, "यह तरीका शार्कों को मारने पर आधारित नहीं है. यानि इससे तट पर आने वाले भी सुरक्षित रहेंगे और शार्क भी मारी नहीं जाएंगी." अब तक इससे संबंधित टेस्ट सफल रहे हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि 2015 के मध्य तक यह उपकरण बाजार में होगा.
जानकारों का कहना है कि समय के साथ जैसे जैसे आबादी बढ़ी है और लोगों की पानी के खेलों में दिलचस्पी बढ़ी है, वैसे वैसे शार्क के कारण हादसे भी बढ़े हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में पिछले 100 सालों में शार्क के करीब 170 खतरनाक हमलों के मामले सामने आए हैं.
एसएफ/एमजे (एएफपी)