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शरीर के भीतर हीरे कैंसर से लड़ेंगे

३ अप्रैल २०११

कैंसर से निपटने के लिए शरीर में दवा के साथ नैनो डायमंडस डाले जाएंगे. यह नैनो डायमंड ट्यूमर के अंदर दवा पहुंचाने में लाभकारी हो सकते हैं. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कैंसर के आखरी स्टेज के लिए एक उपचार ढूंढ निकाला है.

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तस्वीर: Flickr/jurvetson

आम तौर पर आखरी स्टेज पर कैंसर इतना गंभीर रूप धारण कर चुका होता है कि उसका इलाज करना मुमकिन नहीं होता. लेकिन वैज्ञानिकों ने एक अनोखा इलाज निकाला है जिसमें कीमोथेरेपी की दवा के साथ शरीर में कार्बन के छोटे छोटे कण भेजे जाएंगे. इन कणों को 'नैनो डायमंड' का नाम दिया गया है. यह तकनीक ब्रेस्ट कैंसर और लीवर कैंसर के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाएगी. शिकागो यूनिवर्सिटी के डॉक्टर डीन हो की प्रयोगशाला में हीरों की चमक नहीं दिखाई देती. रासायनिक तौर पर नैनो डायमंड किसी आम हीरे की ही तरह महंगा है लेकिन यहां ये हीरे पिसे हुए हैं. डीन हो कहते हैं, ''नैनो डायमंड कार्बन से बने होते हैं और दो से आठ नैनोमीटर बड़े होते हैं. लेकिन उसकी खासियत लाजवाब है. उसकी सतह पहले को दवाई को बांध लेती है और फिर बाद में शरीर में रिलीज करती है.थोड़े अम्ल, पिसाई और अल्ट्राशाल सपाट पार्टिकल बना देते हैं. और इनकी खास रचना चिकित्सा के लिए इतनी रोचक है.''

चूहों पर इस तकनीक का प्रयोग किया जा चुका है. डॉक्सोरुबिसिन नाम की दावा को कीमोथेरेपी के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जब नैनो डायमंड्स को इस दावा के साथ शरीर में भेजा जाए तो उस से ट्यूमर के अंदर घुसने में सफल हो पाती है. साइंस ट्रांसलेशनल पत्रिका में यह बात कही गई. आम तौर पर यह दवा ट्यूमर के अंदर घुस नहीं पाती है क्योंकि नैनो डायमंड होते तो बहुत छोटे हैं लेकिन इन्हें पंप नहीं किया जा सकता है. डीन हो कहते हैं कि नैनो डायमंड से कीमोथैरेपी का प्रभाव बढ़ सकता है. जर्नल में लिखा गया है कि यदि दवा को अधिक मात्रा में दिया जाए तो उससे मरीज की जान भी जा सकती है. अध्ययन के संलेखक डीन हो ने बतया, "इस अध्ययन से जो सबसे दिलचस्प बात निकल कर सामने आई है वो यह है कि जब हमने दवा को अधिक मात्रा में देने की कोशिश की तो उसका असर इतना जहरीला हुआ कि चूहे अध्ययन पूरा होने तक भी जीवित नहीं रह पाए. सामान्य तौर पर दवाई को असर करने का ही समय नहीं मिलता है. क्योंकि कैंसर की दवाई तुरंत बाहर निकाल ली जाती है. हमारे मॉडल में ट्यूमर तेजी से बढ़ता रहा और जानवर की मौत हो गई, लेकिन जब हमने नैनो डायमंड के साथ दवाई डाली तो दवाई कैंसर कोषिकाओं में अधिक समय रही और चूहे एक सप्ताह की बजाए लंबे समय तक जीवित रहे. यह निश्चित ही बेहतरी है.''

इतना ही नहीं. बहुत ज्यादा मात्रा वाली दवाई न केवल कैंसर कोषिकाओं में एक्टिव रही और इसका शरीर पर खराब असर भी नहीं हुआ. इसका कारण यह है कि यह दवाई स्वस्थ शिराओं में जा ही नहीं पाती. जबकि ट्यूमर में शिराएं बहुत पारगम्य हो जाती हैं.

नैनोडायमंड से किसी और अंग को तो खतरा नहीं इस बारे डॉक्टर डीन हो शोध कर रहे हैं, ''अगर हम यकृत, वृक्क, प्लीहा की बीमारियों को देखें तो पता चलता है कि उन पर भारी डोजेस के कारण कोई सूजन नहीं आती. लीवर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता. नैनो डायमंड फायदेमंद लगते हैं. हालांकि अलग अलग जानवरों के शरीर पर प्रभाव भी समान नहीं होंगे. इसलिए हम अब दवाई का असर खरगोश पर देखना चाहते हैं.''

हो ने बताया कि उन्होंने सब से पहले तीन साल पहले नैनो डायमंड्स इस्तेमाल करने के बारे में सोचा. लेकिन इस उपचार को अस्पतालों तक पहुंचने में कुछ सालों का समय लगेगा.

रिपोर्ट: आभा मोंढे

संपादन: ओ सिंह

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